मध्य पूर्व एशिया में एक बार फिर जंग जैसे माहौल का आगाज हो चुका है।अमेरिकी राष्ट्रपति के टि्वटर हैंडल पर अमेरिकी झंडे की पोस्ट यह बताने के लिए काफी थी कि उन्होंने अपने मिशन को अंजाम दे दिया है। सुलेमानी का मारा जाना अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि ईरान से उसकी दुश्मनी जो अभी तक सिर्फ व्यापारिक प्रतिबंध तक सीमित थी वह अब आमने-सामने की लड़ाई में तब्दील होगी। न सिर्फ अमेरिका, पूरा मध्य-पूर्व एशिया प्रभावित होगा, बल्कि भारत भी इसकी जद में आएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस घटना को चुनावी प्रोपेगंडा के तौर पर ट्रम्प इस्तेमाल करेंगें,इससे भी इंकार नही किया जा सकता।अप्रैल 2019 में ही अमेरिका ने आई आर जी सी को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था। इससे एक बात तो साफ हो गई थी कि अमेरिका के पास ही अधिकार हो गया था कि वह बिना किसी खास कारण के आईआरजीसी पर हमला कर सकता है। अमेरिका को बहाना भी मिल गया। अमेरिका का कहना है कि सुलेमानी अमेरिकी दूतावास में रह रहे अमेरिकी नागरिकों पर हमला करने और उन को अगवा करने की योजना बना रहे थे। अमेरिका ने जो किया वह अपने बचाव के लिए किया।अमेरिका का यह भी कहना है कि उसने हमला इसलिए किया कि भविष्य में ईरान उसके लोगों पर हमला न करे।
हालांकि ईरान ने कड़े शब्दों में अमेरिका को चेतावनी दी है कि सुलेमानी की हत्या का बदला जरूर लिया जाएगा।
ईरान में सुलेमानी की मौत से जहाँ एक तबका गम में डूब हुआ है वहीं एक तबका ऐसा भी है जहाँ लोग खुश हैं।
अमेरिका सुलेमानी की मौत को यह कहकर जायज ठहरा रहा है कि वह एक आतंकवादी गुट के मुखिया थे। और राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रम्प का कहना है कि वह अपनी जनता की सुरक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इसके लिए चाहे किसी को मारना ही क्यों न पड़े। 1 जनवरी को ईराक में अमेरिकी दूतावास में हुए हमले के बाद ट्रम्प ने कहा था कि इसकी कीमत ईरान को चुकानी पड़ेगी। और अमेरिका ने बदला ले लिया। आई आर जी सी पर आरोप लगाए जाते रहे हैं कि वह अमेरिका विरोधी हर गतिविधि में शामिल होता रहा है।
ईरानी जनरल को ईराक में मारने के पीछे की वजह
ईरान में भी कुछ महीनों से हो रही अमेरिका को लेकर सियासत
ईराक में इस समय जनता अपनी कई तरह की मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। उसमें से एक अमेरिका विरोधी प्रदर्शन भी है और ईरान विरोधी भी। इन प्रदर्शनों का फ़ायदा ईरान ने उठाया और सारा गुस्सा अमेरिका की तरफ मोड़ दिया। ईराक में इस तरह के प्रोपेगेंडा फैलाए जाने लगे कि ईराक की जो भी हालत है उसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ अमेरिका है। ईराक के कुछ प्रदर्शनकारियो के साथ मिलकर आई आर जी सी ने बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास को निशाना बनाया।
सुलेमानी को मारकर अमेरिका ने ईरान को बता दिया है कि अगर किसी दूसरे देश की जमीन का इस्तेमाल उसके खिलाफ किया जाएगा तो उसका यही हाल होगा।
अमेरिका और सुलेमानी के रिश्ते
मेजर जनरल सुलेमानी रेओलुशनरी गार्ड्स के कुड्स फ़ोर्स के कमांडर थे और अमेरिका नेआई आर जी सी को आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ था। जबकि आई आर जी सी ईरान की इलीट सेना है, जिसका मकसद सीमा की सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा के साथ- साथ सत्ता का संतुलन बनाना है।
ईरान में अमेरिकी समर्थक शाह पहलवी के पतन के बाद ईरान में नए हुकूमत आई तो सरकार को लगा कि अब एक ऐसी सेना की जरूरत है जो नए निजाम और क्रांति के मकसद को पूरा कर सके और इसीलिए 1989 में ईरानी क्रांति के बाद उस समय के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खुईमेनी के निर्देश में रिवॉल्यूशनरी गार्ड का गठन हुआ जो राष्ट्रपति की बजाय वहां के सुप्रीम लीडर को रिपोर्ट करती हैं।
ट्रंप के सत्ता में आते ही बिगड़ने लगे थे अमेरिका ईरान के संबंध
भू- राजनीतिक परिदृश्य में कोई भी घटना त्वरित नही होती है, इसके लिए पृष्टभूमि पहले ही बनी होती है। ईरान वाले मामले में भी यही हुआ है। ईरान में 1989 की क्रांति और अमेरिका समर्थित सरकार के तख्ता पलट के बाद से ही अमेरिका की डेढ़ी नजर ईरान पर बनी हुई थी।
समय-समय पर अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबन्ध लगाए जाते रहे हैं। ईरान पर यह आरोप लगाए जाते रहें हैं कि वह छिप-छिपकर न्यूक्लिर टेस्ट कर रहा है।
बराक ओबामा के कार्यकाल मे ईरान के प्रतिबंधों मे थोड़ी ढील दी गई और ईरान से नजदीकियाँ भी बढ़ी। पर जैसे ही अमेरिका मे 2016 के राष्ट्रपति चुनाव हुए और डोनाल्ड ट्रंप नए राष्ट्रपति चुनकर आए उन्होंने तरह-तरह के अपने बेतुके बयानों से वहाँ की जनता को खुश करने का प्रयास किया। उनमे से एक यह भी था कि वे ईरान पर जिस संधि पर ओबामा के कार्यकाल में हस्ताक्षर किये थे, अब उसको आगे नही बढ़ाया जाएगा। बात यहीं खत्म नहीं हुई उन्होंने ईरान के रेउलूशनरी गार्ड्स को आतंकवादी संगठन तक घोषित कर दिया।
13 जून 2019 को ओमान की खाड़ी में अमेरिका के दो तेल टैंकर पर ईरान के रेओलुशन गार्ड्स ने हमला करके नष्ट कर दिया था।इस पर भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों से कहा कि ईरान से व्यपारिक रिश्ते खत्म कर दें। अमेरिका भारत पर भी दबाव बनाना चाहता था,किंतु क्योंकि वह जानता है कि एशिया में अगर चीन को घेरना है तो एकमात्र विकल्प भारत ही है।
अमेरिका ईरान के बीच तनाव का भारत समेत ज्यादातर विकासशील देशों पर पड़ेगा असर
सुलेमानी की मौत का असर पूरे विश्व में देखने को मिलेगा। ईरान पूरी दुनिया का 10% तेल सप्लाई करता है। और अगर मध्य-पूर्व में आस्थिरता बनती है तो एक बार फिर तेल की कीमतों में उझाल देखने को मिल सकता है। न सिर्फ तेल की कीमतों में बल्कि सोने- चांदी के दामो में भी उछाल देखा जा सकता है।
भारत पर असर
ईरान से तेल लेने वाला भारत तीसरा बड़ा आयातक देश है। ऐसे में ईरान में तनाव बढ़ने से भारत और ईरान दोनों के नुकसान की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि भारत ईरान से तेल खरीदना कम कर चुका है लेकिन अभी इसकी खरीद में उसका बड़ा हिस्सा है कि ईरानी जनरल की मौत की खबर के बाद ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ गए थे और इसका सीधा असर भारत के बाजारों में दिखा जहां तेल के दाम तुरंत बढ़ गऐ।भारतीय तेल मार्केटिंग कंपनियों के शेयर गिर गये। इस इलाके में किसी तनाव या जंग का असर मध्य -पूर्व के देशों में काम कर रहे लगभग 80 लाख भारतीयों पर भी पड़ेगा।
पश्चिमी देश चीन और भारत या दूसरे देश जो ईरान से कारोबार करना चाहते हैं उसका सबसे बड़ा जरिया निजी कंपनियां है अब जबकि कंपनियां वहां जाएगी ही नहीं या उनके जाने में बाधा होगी तो फिर कारोबार कैसे होगा?
चाबहार प्रोजेक्ट भी हो सकता है प्रभावित
ईरान और अमेरिका के बीच तनाव का असर भारत और ईरान के चाबहार प्रोजेक्ट भर भी पड़ेगा। अफगानिस्तान में भारतीय सप्लाई पहुंचाने के लिए चाबहार परियोजना बेहद अहम है, पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के बाजार तक भारतीय पहुंच के लिए भी यह काफी अहम प्रोजेक्ट है। कुल मिलाकर भारत पाकिस्तान श्रीलंका बांग्लादेश समय दक्षिण एशिया के ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम विकासशील देश अपनी तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा इरान से पूरा करते हैं ईरान और अमेरिका के बीच कोई भी बड़ा युद्ध समूचे मुस्लिम जगत का ध्यान अपनी ओर खींचेगा और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा सबसे ज्यादा विकासशील देशों पर क्योंकि उनके लाखों नागरिक मुस्लिम देशों से अपने व्यापार और रोजगार को लेकर जुड़े हैं।
रिपोर्ट – आराधना शुक्ला