*क्रांतिकारी त्रिमूर्ति भगत सिंह राजगुरु सुखदेव के विचार सदियों तक भारतीयों के दिल व दिमाग में आग लगाते रहेंगे*

बलिदान दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में याद किए गए अमर शहीद
शहीदे आजम भगत सिंह राजगुरु सुखदेव के बलिदान दिवस पर भारतीय नागरिक परिषद द्वारा आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि वरिष्ठ विचारक व चिंतक संजय जोशी ने कहा कि क्रांतिकारी त्रिमूर्ति भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव अपने विचारों चिंतन और दर्शन के लिए कई सदियों तक प्रासंगिक बने रहेंगे।

उनके विचार सदियों तक आम भारतीयों के दिलों और दिमाग में आग लगाते रहेंगे उन्होंने भगत सिंह को महान क्रांतिकारी के साथ महान युग दृष्टा बताते हुए कहा कि भगत सिंह के स्मरण का अर्थ है कि हर क्षेत्र हर दल और विचार में घुसी जातीय विद्रूपताओं को हम अपने व्यवहार से खत्म करें ,दहेज कन्या भ्रूण हत्या, स्त्री का असम्मान,अंधविश्वास यह सब भगत सिंह की क्रांतिकारी ज्वाला में भसम हो तभी उनका स्मरण सार्थक होगा। जहां भी अन्याय जुल्म और अनाचार है उसके खिलाफ उठने वाली हर आवाज भगत सिंह है। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता वरिष्ठ कर्मचारी नेता शैलेंद्र दुबे ने कहा कि भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के बलिदान के 88 साल बाद भी उनके सपनों का भारत नहीं बन सका है ।भगत सिंह कहते थे क्रांति बम या पिस्तौल की संस्कृति नहीं है। उत्पादक अथवा श्रमिक समाज के आवश्यक तत्व हैं ,लेकिन सोशक उन्हें श्रम के फल और मौलिक अधिकार से वंचित रखे हुए हैं। सबके लिए अन्य आने वाला कृषक भूखा सोता है, कपड़े बनाने वाला पूरे वस्त्र नहीं बन पाता, भवन निर्माण, लोहार बढ़ई गिरी के काम करने वाले शानदार महल बनाते हैं किंतु खुद गंदी बस्तियों में रहने को विवश हैं। उन्होंने कहा कि भगत सिंह का यह वाक्य कि युद्ध तब तक जारी रहेगा जब तक कुछ शक्तिशाली लोग आम भारतीयों पर श्रमिकों की आय के संसाधनों पर एकाधिकार जमाए रखाएंगे चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज शासक या भारतीय ही क्यों न हो पूरी तरह सत्य है। वरिष्ठ अधिवक्ता रमाकांत दुबे ने कहा कि निसंदेह भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रांतिकारियों में है। भगत सिंह राजगुरु सुखदेव की क्रांति त्रि मूर्तियों का भयंकर खौफ ब्रिटिश राज्य पर इस कदर हावी था कि उन्होंने कानून का सरे आम उल्लंघन करते हुए निर्धारित तिथि से 1 दिन पहले ही तीनों क्रांतिकारी देशभक्तों को गुपचुप तरीके से फांसी पर लटका दिया और रावी नदी के किनारे एक ही चिता पर मिट्टी का तेल डालकर जला दिया। इसके पूर्व भारतीय नागरिक परिषद के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश अग्निहोत्री व महामंत्री रीना त्रिपाठी ने कहा कि आज ही के दिन 1931 में देशभक्ति की अनूठी अटूट व अनुकरणीय त्रिमूर्ति रात्रि 7:33 पर अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे। अंग्रेजों को भली-भांति एहसास था कि यदि निर्धारित समय पर इस तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया तो देशभर में जलजला आ जाएगा और बगावत के शोले भड़क उठेंगे। संगोष्ठी में उपस्थित लोगों ने महान क्रांतिकारियों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लियाl