बच्चों की मौत, संवेदनहीन राजनैतिक नेतृत्व प्रियंका माया के बीच “बहस”

राजस्थान के कोटा में सरकारी अस्पताल में बड़ी संख्या में मासूम बच्चों की मौत ने एक बार फिर देश के सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा की पोल खोलते हुए हमारे देश में आम आदमी कमजोर आदमी गरीब आदमी सरकार की प्राथमिकता सूची में किस स्थान पर है इसकी और खुलासा कर दिया है।

आज जब राज्य और केंद्र की सरकारों में शामिल सत्ताधारी नेताओं विपक्ष के नेताओं व्यापारियों और अधिकारियों को बड़े-बड़े वीआईपी अस्पतालों की सुविधाएं हासिल हैं जहां अपने ताकत अथवा पैसे के बल पर वह विश्व स्तरीय चिकित्सा सुविधाएं हासिल करके अपनी और अपनों की जीवन रक्षा करते हैं वहीं दूसरी तरफ इस देश का मतदाता इस देश का साधारण जनमानस सरकारी अस्पतालों की घटिया व्यवस्था में सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता और अपने दुर्भाग्य का दंश झेल रहा है।

भारतीय समाज और परिदृश्य में सुबह-सुबह समाचार पत्रों को खोलते ही जैसे हमें दुःखित कर देने वाले या चिन्तित कर देने वाले क्षुब्ध कर देने वाले समाचारों को प्रायः पढ़ने की हमारी आदत और नियति तथा मजबूरी बन गई है।

रोज कहीं न कहीं से आग में मरने,रेल या सड़क दुर्घटनाओं में मरने,कहीं पुलिस द्वारा ही मारने आदिआदि की दुःखद घटनाओं को पढ़ने,सुनने की एक आदत सी बन गई है।

शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो,जिस दिन इन व्यथित कर देने वाले समाचारों की जगह कुछ सुखद समाचार पढ़ने को मिलें।

समाचार पत्रों में राजस्थान के कोटा शहर के सबसे बड़े ‘जेके लोन ‘नामक अस्पताल से कुव्यवस्था की वजह से,जब समूचा देश नये साल के आगमन के जश्न में खुशियों और आतिशबाजी करने में मशगूल था, वहाँ छोटे-छोटे बच्चों के खिड़कियों में शीशे न होने,कमरे गर्म न होने, ऑक्सीजन की सामान्य आपूर्ति न होने और दवाइयों के अभाव में,लगातार मरने की खबरे छाईं हुईं हैं। समाचार पत्रों की खबरों के अनुसार वहाँ नन्हें बच्चों के मौतों का सिलसिला काफी दिनों से चल रहा है,उदाहरणार्थ 2014 में इसी अस्पताल में 1198 बच्चों की मौत हुई थी,यह क्रम हर साल जारी रहते हुए दिसम्बर 2019 में 103 बच्चों की मौत के साथ इस अस्पताल में अब तक कुल 6646 बच्चों की मौत हो चुकी है।

जले पर नमक छिड़कने वाली बात यह है कि इन विचलित कर देने वाली दुर्घटनाओं के बाद, यहाँ के सत्ता के कर्णधार इतने अमार्यादित बयान दे देते हैं कि लगता है ये सत्ता के कर्णधार जनता के जीवन से कोई मतलब ही नहीं रखते,मसलन राजस्थान का स्वास्थ्य मंत्री ने यह बयान दिया कि ‘मरने वाले बच्चों का वजन कम था। गोरखपुर में बच्चों की हुई मृत्यु पर शर्मनाक राजनीत हुई थी मुज्जफरपुर में बच्चों की मृत्यु पर वहाँ के एक मंत्री ने ‘लीची खाने का कारण बताया था।

‘ राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है बच्चों की मौत के बाद कई दिनों तक कांग्रेस की सरकार संवेदनहीन बनी रही जब मीडिया में शुरू हुआ विपक्ष ने सवाल खड़ा किया तब वहां के स्वास्थ्य मंत्री अस्पताल में कार्पेट डलवा कर कर दौरा करने गए।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस मामले में जिम्मेदारी का परिचय नहीं दिया मायावती ने जब ट्वीट करके प्रियंका गांधी से जवाब मांगा, तो उन्होंने उल्टा मायावती से सवाल कर दिया कि” आप क्यों नहीं कोटा गई” प्रियंका गांधी यह भूल गई कि जनता के प्रति संवेदनशीलता का धर्म वह उत्तर प्रदेश में तो निभा रही हैं लेकिन राजस्थान में अगर उनकी सरकार है तो क्या वहां संवेदनशीलता नहीं दिखाई जानी चाहिए।

कितने दुःख या अफ़सोस की बात है कि हमारे देश में प्रतिवर्ष हजारों लोग आग से, ट्रेन या सड़क एक्सीडेंट में, भूख से, ठंड से, बाढ़ में डूबकर, दवाइयों के अभाव में मर जाते हैं, परन्तु यहाँ के लगभग सभी राजनैतिक दलों के नेताओं का एकमात्र लक्ष्य केवल सत्ता सुख भोगना एकमात्र लक्ष्य रह गया है, न कि इन समस्याओं का समाधान करना! क्या यह गहन दुःख की बात नहीं है कि ये क्रूर, अमानवीय और जनविरोधी चरित्र वाले, अपराधी और दागी हमारी देश की व्यवस्था में छिपकर शामिल हो गए हैं और देश को अवनति के गर्त {नरक } की तरफ धकेल रहे हैं! इस दुःस्थिति का शमन होना ही चाहिए।

रिपोर्ट – राजीव रंजन मिश्रा