मुरादाबाद जिले और करीबी क्षेत्रों का सुबह का लज़ीज़ नाश्ता दाल चने।

पिछले लगभग एक दशक या कुछ अधिक समय से मुरादाबादी दाल शादी व सामाजिक अवसरों पर बिछाए जाने वाले दस्तरखान की एक मुख्य विशेषता होती है। धुली मूँग की यह दाल जब पत्तल या दोने में चटनी, मक्खन, मसालों, मूली और टमाटर के कस के साथ परोसी जाती है तो किसी के भी मुँह में पानी आ जाता है, हाजमे पर हल्का यह स्वादिष्ट व्यंजन आजकल बहुत पसंद किया जाने लगा है।

पिछले कुछ दिनों चंदौसी में था जो पहले मुरादाबाद ज़िले की एक तहसील हुआ करती थी परंतु वर्तमान में संभल ज़िले के अंतर्गत आती है। बरेली – अलीगढ़ रेलवे लाइन पर स्थित यह तहसील देसी घी और मेंथा के व्यापार के कारण जानी जाती है। रेलवे का ट्रेनिंग कॉलेज और बहुत पुराना शिक्षा का केंद्र ,एस एम कॉलेज इसकी पहचान हैं।

सुबह किसी भी तरफ निकाल जाइए आपको पीतल के चमकते हुए बर्तनों से सुसज्जित दाल चने बेचने वालों के ठेले मिल जाएँगे, उत्सुकता थी किसी ठेले वाले से बात करने की, मेरी यह उत्सुकता मुझे ब्रह्मबाज़ार में खड़े होने वाले हंसमुख मुरारी लाल चने वाले के ठेले पर ले गई, बात का सिलसिला शुरू करने के लिए एक पत्ता दाल चने, मक्खन डाल के बनाने को कहा, उसने अंगीठी पर चढ़े तवे पर थोड़ा पानी डालकर उसमे दाल और चने को मिलाया फिर एक सवाल , बाबूजी मिर्च मसाला तेज़ रहेगा या हल्का …मक्खन के साथ लेंगे या सादा ? मेरे स्वाद अनुसार मसालों को डालकर आपस में मिलाया और एक दोने में कर दिया फिर मक्खन, चटनी और मूली टमाटर, गाजर का कस ऊपर से डाल दिया और तैयार हो गया आपका दाल चने का एक पत्ता उसका स्वाद लेते लेते बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।

ठेले वाले ने बताया की पिछले कई दशकों से उसके परिवार में यह काम होता है। पहले उसके पिता यहाँ ठेला लगाते थे और अब वह यह काम करता है। मूँग की धुली दाल और छोटा काबुली चना इस्तेमाल होता है दाल चने बनाने में सुबह चार बजे उठकर तैयारी शुरू की जाती है तब 7 बजे ठेला लग पाता है। कुछ लोग सिर्फ दाल या सिर्फ चने लेना पसंद करते हैं जबकि अधिकांश ग्राहक दोनों को मिलवाकर खाना पसंद करते हैं। दाल चनों के साथ लोग जलेबी भी खूब स्वाद के साथ खाते हैं। पिता के समय में दो आने, चार आने से शुरू हुआ दाल चने का पत्ता अब बीस रुपए में मिलता है , शाम को सिर्फ दाल की मांग रहती है।

अगर आप कभी मुरादाबाद जाते हैं तो सुबह के समय दाल चने का लुत्फ ज़रूर उठाइएगा। ये मेरा वादा है की —You can’t stop at just one.

आलेख – विकास चन्द्र अग्रवाल

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