Devvrat Sharma–
यह वाकई में सोचने वाली बात है कि देश की राजधानी दिल्ली में दिसंबर 2019 के मध्य में भी व्यापक हिंसा हुई थी और उसी मुद्दे को लेकर फिर फरवरी के अंतिम सप्ताह में भी हिंसा फैलाई गई और पुलिस की रणनीति पूरी तरह विफल दिखाई पड़ रही हैl दिसंबर की हिंसा से दिल्ली पुलिस ने कोई सीख नहीं ली।
पूरे देश की कानून व्यवस्था को संभालने वाले गृह विभाग के लिए यह वाकई में शर्मनाक है कि देश की राजधानी दिल्ली ढाई महीनों के भीतर दूसरी बार सुनियोजित हिंसा से सुलग रही है।
दिसंबर 2019 के दूसरे हफ्ते में नागरिकता कानून संशोधन के विरोध में उपद्रवियों ने दिल्ली में भयंकर हिंसा और तांडव का नंगा नाच किया थाl
उस दौरान भी करोड़ों की संपत्ति को जलाकर राख कर दिया गया था पुलिसकर्मियों पर पथराव हुए थे वाहनों में तोड़फोड़ हुई थी सरेआम देश की राजधानी में गुंडागर्दी और अराजकता का वातावरण बनाया गया था लेकिन उस घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने कोई सीख नहीं ली।
उस समय की औपचारिक कार्यवाही के बाद पुलिस शांत बैठ गई पुलिस ने पुलिस ने उपद्रव और हिंसा फैलाने वाले असली मास्टरमाइंड गोपनीय हिंसक कार्यकर्ताओं और उन्हें हिंसा के लिए निर्देश देने वाले सफेदपोशो पर कोई कार्रवाई नहीं की।
इतना ही नहीं दिल्ली पुलिस नागरिकता कानून के विरोध में हिंसक प्रदर्शन आयोजित करने वाले राष्ट्र विरोधी नेटवर्क पर भी ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई, यही वजह है कि लगभग ढाई महीने बाद फिर फरवरी के अंतिम सप्ताह में दिल्ली का बड़ा हिस्सा दंगे के हवाले हो गया और एक बहादुर पुलिसकर्मी समेत कई लोगों की जान भी चली गई।
दिल्ली पुलिस की लोकल इंटेलिजेंस और उनके थानों की इंटेलिजेंस पूरी तरह से फेल साबित हो गई दिल्ली पुलिस के जिम्मेदार अधिकारी यह जान ही नहीं पाए कि कब हजारों उपद्रवियों की भीड़ सड़क पर पहुंच गई और पूरी तैयारी के साथ आए उपद्रवियों और दंगाइयों ने पेट्रोल पंप और हथियारों का इस्तेमाल करके दिल्ली के बड़े बड़े हिस्से को आग के हवाले कर दिया लोगों के घर दुकान जला दिए गए सैकड़ों वाहनों में भी आग लगा दी गई।
पिछले 2 दिनों से दिल्ली की सड़कों पर तांडव हो रहा है लेकिन दिल्ली पुलिस का पूरा सिस्टम दंगाइयों के आगे बेबस बना हुआ है खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि पुलिस कठोर कार्यवाही नहीं कर रही और पुलिस फोर्स की तैनाती भी दंगाइयों से निपटने के लिए सही तरीके से नहीं की गई है।
अब यहां पर बड़ा सवाल यह उठता है कि जब दिसंबर के दूसरे सप्ताह में दिल्ली में बड़े पैमाने पर नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा हुई थी तो फिर दिल्ली पुलिस ने उससे निपटने की रणनीति क्यों नहीं बनाई दिसंबर की हिंसा से सबक लेते हुए आगे हिंसा ना हो सके इसके लिए पहले से ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए?
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर अमूल्य पटनायक के खिलाफ एक सवाल खड़ा है और यह बड़ा सवाल है क्योंकि वह देश की राजधानी के पुलिस कमिश्नर हैं और देश की राजधानी में यदि अराजकता और हिंसा फैलती है तो पूरे देश के लिए यह शर्मिंदगी की बात होती है।
उस समय जब देश में विदेशी मेहमान आए हैं अमेरिका के राष्ट्रपति आए हो उस समय भी देश की राजधानी में हिंसा होना अराजकता होना, कहीं ना कहीं और देश की सुरक्षा तंत्र के लिए चिंता का विषय है।
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर निश्चित तौर पर वह रणनीति बनाने में विफल रहे जिससे दिल्ली पुलिस को पूरी दिल्ली में शांति व्यवस्था बनाए रखने में कामयाबी मिलती पुलिस यदि शुरू से ही ठोस कार्रवाई करती और हालात बिगड़ने से पहले ही संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा बलों की पर्याप्त तैनाती की गई होती तो हिंसक विरोध प्रदर्शन करने वाले हिम्मत न जुटा पाते और जिसे भी विरोध जताना हो वह शांतिपूर्ण तरीका अपनाकर अपनी बात कहने की कोशिश करता।
लेकिन जब पुलिस तंत्र लापरवाह होता है तो कुछ लोग पुलिस और सरकार को लापरवाह मान के मनमानी हिंसा अराजकता और दंगा फैलाने पर उतारू हो जाते हैं और यही दिल्ली में हुआ है।