त्रिवेणी के तट पर कुंभ में मिले अपार स्नेह और सम्मान से अभिभूत किन्नर अखाड़ा के मंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण ने क्या कहा आप भी सुनिए…
{प्रयागराज}हजारों वर्षों से आयोजित हो रहे कुंभ के स्वर्णिम इतिहास में एक और सुंदर अध्याय जुड़ गया है ..सर्वे भवंतु सुखिनः यानी सभी लोग सुखी रहे.. के सूत्र वाक्य चरितार्थ करते हुए संतों ने समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग यानी किन्नरों को प्रतिष्ठित करते हुए न सिर्फ उनकी भव्य शोभायात्रा पेशवाई निकलवाई बल्कि त्रिवेणी संगम में उन्होंने सबसे पहले जूना अखाड़े के साथ भव्य शाही स्नान भी किया l
सनातन धर्म का संदेश की विश्व का कल्याण हो प्राणियों में सद्भावना हो.. यह वाकई में संगम तट पर चरितार्थ होता दिखाई दिया जब ट्रैक्टरों पर बने रथों पर सजे बजे किन्नरों के अखाड़े मेला क्षेत्र की सड़कों पर निकले तो जैसे पूरा संगम तट देव मय हो उठा l आस्था और भक्ति के वातावरण में किन्नरों के अखाड़े और उनके शाही स्नान से मानो एक ऐसा संदेश निकला की.. सनातन धर्म की परिभाषा और उसका परिवार अनंत है ,सनातन आदिकाल से अंत काल तक है और सब को अपना मानता है पेड़ पौधे पशु पक्षी सभी सनातन परिवार के सदस्य हैं और मनुष्य से तो किसी प्रकार के भेदभाव का प्रश्न ही नहीं उठता l इसीलिए दलित पिछड़ा ही नहीं किन्नर भी संत हैं साधु सन्यासी हैं और महामंडलेश्वर भी हैं l
यहां सब समान हैं जो आस्था और धर्म के प्रति समर्पित है वही सर्वश्रेष्ठ है वही प्रतिष्ठित है l
मनुष्य योनि में भी जन्म लेकर स्त्री और पुरुष के भेद से भी जो रहित हैं और इसके बावजूद इसी भेद से समाज का भेदभाव झेल रहे है उस किन्नर समाज को शीर्ष.. स्थान सबसे ऊंचा स्थान देकर सनातन धर्म ने प्रयागराज के कुंभ में वास्तव में ऐसा लगता है कि सोशल इंजीनियरिंग का एक अनोखा ऐतिहासिक अविस्मरणीय अध्याय लिख दिया है और दुनिया को यह बताने की कोशिश की है की… सर्वे भवंतु सुखिनः केवल धर्म ग्रंथों का वाक्य नहीं है इसे वास्तविक मानव जीवन में उतारने के लिए सनातन धर्म संकल्पित है .