कठुआ कांड में मासूम की हत्या कि वह सच्चाई ..जिसे जाने बगैर लोग राजनैतिक और सांप्रदायिक षड्यंत्रों का हो रहे हैं शिकार … कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे राजनैतिक दल 2019 के चुनाव के पहले देश को सांप्रदायिक विभाजन और हिंदू मुस्लिम राजनीति की ओर धकेलने की साजिश कर रहे हैं..
…जम्मू कश्मीर के कठुआ में 8 मासूम वर्षीय बच्ची आसिफा की हत्या 12 जनवरी के आसपास की गई उसका शव गांव के रास्ते पर बरामद हुआ जब की अफवाह फैलाई जा रही है कि बच्ची का शव मंदिर के अंदर बरामद हुआ.. दरअसल जिस मंदिर में बच्ची को बंधक बनाकर 8 दिनों तक रखे जाने और बलात्कार किए जाने की चर्चा मीडिया में फैलाई जा रही है.. वह मंदिर तीन गांव के लोगों का संयुक्त मंदिर है जहां प्रतिदिन पूजा होती है.. और हफ्ते में एक बार भंडारा होता है.. और आस-पास के गांव के लोग महिलाएं वहां प्रतिदिन पूजा इबादत के लिए जाते हैं
ऐसे में बच्ची को 8 दिनों तक मंदिर के भीतर बंधक बनाए रखना कहां तक संभव है जबकि मंदिर में कोई दूसरा कमरा नहीं पूरा मंदिर एक हॉल के रूप में है जिसकी खिड़कियों पर पल्ले भी नहीं है केवल सलाखे लगी हैं यानी अंदर से बाहर का नजारा और बाहर से अंदर का नजारा देखा जा सकता है..
… यह बच्ची बकरवाल समुदाय की बच्ची है बकरवाल समुदाय मुस्लिम समाज का खानाबदोश समुदाय है जिसकी मदद से सेना ने कारगिल घुसपैठ के खिलाफ कार्रवाई करके पाकिस्तान को धूल चटाई थी बकरवाल लोगों ने ही सेना की मदद करके करगिल घुसपैठ की जानकारी दी और कार्रवाई में सेना को मदद भी पहुंचाई खुफिया सूत्रों को अंदेशा है की जम्मू में सक्रिय पाकिस्तानी एजेंसियों के स्लीपर सेल्स ने बकरवाल समुदाय को चोट पहुंचाने और हिंदू मुस्लिम तनाव भड़काने के लिए इस घटना को अंजाम देकर बड़ी साजिश की है जिस से जम्मू जम्मू कश्मीर का अमन-चैन फिर से छिन जाए ..
कई साल पहले आसिफा के माता-पिता की संदिग्ध मौत कथित हत्या हो गई थी आखिर किन कारणों से उनकी मौत हुई थी कौन इसके लिए जिम्मेदार था.. आसिफा का रिश्तेदार का पालन पोषण कर रहा था आसिफा के नाम संपत्ति भी थी उसकी मौत से किसे फायदा होने वाला है..
एक बार पुलिस की जांच पूर्ण होने के बाद आखिर क्यों फिर से जांच बदल दी गई और इस मामले को जम्मू कश्मीर को सबसे बदनाम पुलिस अधिकारी को क्यों जांच के लिए सौंपा गया जो पहले भी गलत कार्यवाही के आरोप में दंडित हो चुका था
उसी बदनाम पुलिस अधिकारी पर हत्या के मामले को गैंगरेप के बाद हत्या में बरतने का आरोप लग रहा है
..जिस व्यक्ति सांझी राम को मुख्य आरोपी बनाया गया है वह एक वृद्ध व्यक्ति है जोकि कई साल पहले सरकारी नौकरी से रिटायर हुआ है और उसके सगे बेटे और उसके भतीजे को इस घटना में मुख्य आरोपी बनाया जा रहा है.. कश्मीर क्राइम ब्रांच के अधिकारी कि यह रिपोर्ट लोगों के गले से नहीं उतर रही की वृद्ध पिता उसका जवान बेटा और उसका सगा भतीजा एक ही साथ बच्ची के साथ 6 दिनों तक मंदिर के अंदर गैंगरेप कर रहे थे.. जबकि मंदिर पर लोगों का आना जाना लगा रहता है और मंदिर में कोई दूसरा कमरा नहीं है इसी बात को लेकर जम्मू में पुलिस के खिलाफ कई दिनों से बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं ..
एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि जनवरी में हुई इस घटना की जांच पुलिस के द्वारा एक बार पूरी की जा चुकी है जम्मू-कश्मीर पुलिस की पहली जांच में एक लड़के को आरोपी बनाया गया था जोकि आसिफा का दोस्त था और उसके साथ जंगल में घूम कर घोड़े चराया करता था पुलिस की पहली जांच रिपोर्ट के अनुसार उसी लड़के ने आसिफा के साथ रेप का प्रयास किया परंतु आसिफा के विरोध करने से डर गया और रेप किए बगैर ही पत्थर मारकर उसने आसिफा की हत्या कर दी.. पुलिस की पहली इन्वेस्टीगेशन में इसी लड़के को आरोपी बनाया गया था पहली जांच रिपोर्ट में मंदिर का कहीं पर कोई जिक्र नहीं था और सांझी राम और उसके बेटे का भी ज़िक्र नहीं था..
.. लेकिन इसके बाद अचानक किसी राजनीतिक दबाव में सीएम महबूबा मुफ्ती के दखल के बाद मामले की क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को दे दी गई जिसके बाद वृद्ध पिता जवान बेटे और सगे भतीजे को सामूहिक बलात्कार और निर्मम हत्या का दोषी ठहराया जा रहा है ..और यह कहा जा रहा है कि 6 दिनों तक मंदिर को बंद करके उसके अंदर रेप किया गया और बच्ची की हत्या करके शव को गांव के रास्ते पर डाल दिया गया.
दरसल जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी तेजी से अलोकप्रिय हो रही है और उन्हें फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के नेशनल कांफ्रेंस से कड़ी चुनौती मिल रही है बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज का सपोर्ट नेशनल कांफ्रेंस की ओर खिसक रहा है.. नरेंद्र मोदी और महबूबा मुफ्ती की नज़दीकियां स्थानीय अलगाववादियों और कट्टरपंथियों को काफी समय से नाराज कर रही हैं महबूबा के राजनीतिक विरोधी स्थानीय बहुसंख्यक मुस्लिम समाज को उनके विरुद्ध भड़काकर बड़े वोट बैंक को नेशनल कान्फ्रेंस की ओर आकर्षित करने में सफल होते जा रहे हैं ..कहा जा रहा है कि नेशनल कांफ्रेंस की चुनौती से निपटने के लिए और स्थानीय मुस्लिम समाज का समर्थन अपनी और वापस पाने के लिए महबूबा मुफ्ती कठुआ कांड में किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार है और उन्हीं के निर्देश पर क्राइम ब्रांच ने चार्जशीट तैयार की है..
जानकारी के मुताबिक कश्मीर पुलिस की चार्जशीट पर इसलिए भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं क्योंकि चार्जशीट तैयार कराने में और आरोपियों और मंदिर से जुड़ी कहानी बनाने में विवादित पुलिस अधिकारी इरफान वानी की भूमिका महत्वपूर्ण है इरफान वानी पर पहले भी कई आरोप रह चुके हैं.. और इनके खिलाफ पूर्व में कार्यवाही भी हो चुकी है ..कहा जा रहा है कि इरफान पुरानी पुलिस रिपोर्ट के विपरीत नई पुलिस रिपोर्ट तैयार कर मामले को सांप्रदायिक रूप देने की वजह से चर्चा में हैं कश्मीर पुलिस की जिस चार्जशीट के आधार पर मीडिया और सोशल मीडिया में सारी खबरें फैलाई जा रही हैं वह चीज चार्जशीट सीट तैयार करने वाला पुलिस अधिकारी खुद ही हत्या और रेप के मामले का आरोपी रह चुका है.. ऐसे पुलिस अधिकारियों के द्वारा सगे पिता पुत्र और भतीजे के द्वारा मंदिर में कई दिनों तक सामूहिक दुष्कर्म की कहानी सामने लाए जाने पर लोगों का नाराज होना स्वाभाविक है..
राजनीतिक फायदे के लिए कठुआ कांड की स्क्रिप्ट को हिंदू बनाम मुस्लिम की स्क्रिप्ट के रूप में तैयार किया जा रहा है और इस मामले को मीडिया और सोशल मीडिया पर बढ़ा-चढ़ाकर इसीलिए पेश किया जा रहा है जिससे सांप्रदायिक विभाजन का लाभ महबूबा मुफ्ती के पक्ष में जा सके और वह नेशनल कांफ्रेंस यानी अब्दुल्ला परिवार को राजनीतिक रुप से मात दे सकें और 2019 में पीडीपी के ज्यादा सांसद लोकसभा पहुंच सकें..
दरअसल रिटायरमेंट के बाद सांझी राम स्थानीय हिंदू संगठन से जुड़ गया था इसीलिए वृद्ध सांझी राम और उसके बेटे भतीजों को गैंगरेप और हत्या का आरोपी बनाए जाने से जम्मू क्षेत्र के हिंदू संगठनों और भाजपा नेताओं में काफी नाराजगी है.. लेकिन कश्मीर की राजनैतिक सजा में सांप्रदायिक तनाव नेताओं के लिए शुरू से ही फायदेमंद रहा है
यह भी हैरानी की बात है कि उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पुलिस के एडीजी से लेकर डीजीपी तक के रिपोर्ट और इन्वेस्टीगेशन को जो मीडिया और विपक्षी पार्टियां मानने को तैयार नहीं थी और सीबीआई की जांच को सही मान रही है ..वही मीडिया और विपक्षी पार्टियां कश्मीर पुलिस की पहली इन्वेस्टीगेशन को अनदेखा करके उसकी दूसरी इंवेस्टिगेशन को सही मान रही है.. और आसिफा कांड की CBI जांच की मांग को अनसुना किया जा रहा है. आसिफा के मामले में महबूबा सरकार की नियत पर इसलिए भी सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि देश भर में तमाम संवेदनशील मामलों की जांच सबसे विश्वसनीय एजेंसी सीबीआई से कराई जाती है इस मामले में आम जनता के द्वारा बार-बार कहे जाने के बावजूद राज्य सरकार सीबीआई जांच नहीं करवा रही.. लोगों का कहना है कहीं ना कहीं ऐसी बात है जिसे महबूबा सरकार छुपाना चाहती है और राज्य की पुलिस से मनमानी कार्रवाई कराना चाहती है.
इस मामले में झूठी जानकारियों और बड़े पैमाने पर अफवाहें फैलाई जाने की वजह से हालात इतने खराब हो चुके हैं की मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया के पास भी सही जानकारियां देने के लिए भरोसेमंद और जिम्मेदार सूत्रों का अभाव हो गया है और ज्यादातर मीडिया हाउस भी राजनैतिक और सांप्रदायिक विभाजन में शामिल होकर अपने पूर्वाग्रह के हिसाब से और राजनीतिक दलों से नज़दीकियों के हिसाब से खबरें दे रहे हैं अथवा एक दूसरे की खबरों का अनुसरण करके अपनी खबरें तैयार कर रहे हैं..
कुल मिलाकर देश में दुनिया में कहीं भी किसी भी मासूम के साथ हैवानियत करने वालों के खिलाफ निसंदेह कठोरतम कार्रवाई होनी ही चाहिए लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि कठुआ कांड के बहाने 2019 के लोकसभा चुनाव में हिंदू-मुस्लिम विभाजन की स्क्रिप्ट लिखने की शुरुआत कर दी गई है.. पीडीपी नेशनल कांफ्रेंस कांग्रेस और भाजपा की राजनैतिक खींचतान के बीच देश के आम जनमानस देश के हिंदू और मुसलमानों के बीच ग़लतफ़हमियां पैदा करके सियासी लाभ लेने की कोशिश इस देश में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने तमाम मौकों पर की है..
देश की मुख्यधारा की मीडिया ने भी राजनीतिक दलों के साथ सांप्रदायिक राजनीति का खेल खेलने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है ..
ऐसे में आम जनता को बहुत होशियारी से इस देश की बेहतरी और अमन चैन के लिए दुआ करने की जरूरत है और सबसे बड़ी जिम्मेदारी न्यायपालिका के ऊपर है कि वह सरकारी एजेंसियों की घटती विश्वसनीयता और बढ़ते राजनीतिक दखल के बीच किसी भी आपराधिक मामले में वास्तविक दोषियों को सजा दिलाएं और निर्दोषों की रक्षा करें..