भारतीय शास्त्रीय संगीत….हमारी अनमोल धरोहर
शास्त्रीय संगीत हमारी अनमोल धरोहर है परन्तु धीरे धीरे संगीत की इस विधा की लोकप्रियता कम होती जा रही है। कहाँ सुनाई देता है शास्त्रीय संगीत आज कल? शायद उन विद्यालयों में जहाँ वह सिखाया जाता है या फिर संगीत समारोहों में या फिर गिने चुने पूजा स्थलों में ।अगर आज हम अपनी नई पीढ़ी अथवा आम जनता से पांच रागों या शास्त्रीय गायकों के नाम पूछें तो शायद हताशा ही हाथ लगेगी ।
एक वक्त था जब शहनाई वादन के बिना शादी का आयोजन अधूरा माना जाता था । वक़्त के साथ बदलाव आया शहनाई बजाने वालों की जगह शहनाई के रिकार्ड्स ने ले ली और फिर फ़िल्म संगीत ने । उस्ताद बिमिल्ला ख़ान ने शहनाई वादन को आसमान की बुलंदियों तक पहुँचा दिया था ।अब तो शहनाई बजाने वाले और शहनाई सुनने वाले दोनों ही लुप्तप्राय से होते जा रहे हैं ।
वर्षा ऋतु आती है और चली जाती है पर कजरी सुनने को जी लरज के रह जाता है । तीज आती है और बिना झूला सुनाए चली जाती है। अब बच्चे के होने पर न सोहर सुनाई देता है और न ही बधाई ।अब सूरज की लाली न भैरवी के साथ आती है और न ही यमन के साथ अस्त होती है ।
शायद गलती हमारी ही है हमने शास्त्रीय संगीत को राजघरानों से उठा कर सीधे संगीत समारोहों में पहुँचा दिया । हम इसे कभी भी फ़िल्म संगीत की तरह आम आदमी तक नहीं पहुँचा पाए। हम शास्त्रीय संगीत को नई पीढ़ी के समक्ष फ़िल्म संगीत और पाश्चात्य संगीत के एक विकल्प के रूप में कभी रख ही नहीं सके । हम उनको नहीं बता सके कि जितना भी कर्णप्रिय फ़िल्म संगीत है वह किसी न किसी राग पर आधारित होता है और जितने भी सफल गायक हैं उनकी गायकी का आधार शास्त्रीय संगीत ही है।
ऐसा कहना भी सही नहीं होगा कि नई पीढ़ी का शास्त्रीय संगीत से कोई लगाव ही नहीं है । टीवी कार्यक्रमों में नए बच्चों की तैयारी देख कर, उनको सुरों के साथ खेलता देख कर ,उनकी ऊपर के सुरों और खरज दोनों पर ही पकड़ देखकर ,उनकी मुर्कियों को सुनकर मन में भरोसा पैदा होता है ,पर शायद इतना पर्याप्त नहीं है ।
लखनऊ जैसे शहर में शास्त्रीय संगीत के गिने चुने ही आयोजन होते हैं । अगर हमें अपनी इस धरोहर को सुरक्षित रखना है तो हमें इस तरह के आयोजनों की संख्या बढ़ानी होगी , रेडियो और टीवी पर इनका नियमित प्रसारण करना होगा ।
एचसीएल ने लखनऊ शहर में इस तरह के संगीत समारोहों का आयोजन कर एक प्रशंसनीय कार्य किया है । उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, भातखण्डे संगीत महाविद्यालय व इस क्षेत्र में कार्यरत सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं , संगीत घरानों के दिग्गजों और कॉरपोरेट वर्ड को इस दिशा में अहम व अग्रणी भूमिका निभानी होगी ।
हर कोई शास्त्रीय संगीत में पारंगत हो जाये ऐसा कोई मन्तव्य इस लेख का नहीं है। हम अपनी धरोहर को जानें और पहचानें , इतने से ही इस लेख के उद्देश्य की पूर्ति हो जाती है ।
आलेख–विकास चन्द्र अग्रवाल