बहुचर्चित पूर्व विधायक जवाहर यादव पंडित हत्याकांड में सोमवार को सजा सुनाई गई ।एडीजे बद्री विशाल पांडे की अदालत में उम्र कैद की सजा सुनाई गई ।करवरिया बंधु, पूर्व सांसद कपिल मुनि करवरिया एवं उनके भाई पूर्व विधायक उदय भान करवरिया व पूर्व एमएलसी सूरज भान करवरिया तथा उनके फुफेरे भाई रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। 31 अक्टूबर यानी दिवाली के चौथे रोज अदालत ने इन चारों पर दोष सिद्ध किया था। 4 नवंबर की तारीख तय की गई थी इस मुकदमे में सजा के बिंदु पर सुनवाई करने के लिए ।उल्लेखनीय है कि आज से 23 साल पहले 13 अक्टूबर 1996 को शहर के सिविल लाइंस में जवाहर यादव पंडित की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
एक नजर सजा व जुर्माने पर:
* धारा 302/ 149 भारतीय दंड संहिता :प्रत्येक अभियुक्त को आजीवन सश्रम कारावास व प्रत्येक पर 11 लाख जुर्माना जुर्माने की राशि देने पर 2 वर्ष का अतिरिक्त कारावास ।
*धारा 307 /149 भारतीय दंड संहिता :प्रत्येक अभियुक्त को 10- 10 वर्ष का कठोर कारावास वह प्रत्येक पर 50 ₹50000 जुर्माना न देने पर एक 1 साल का अतिरिक्त कारावास ।
*धारा 147 भारतीय दंड संहिता: प्रत्येक को 2 वर्ष का कठोर कारावास व प्रत्येक पर ₹10000 जुर्माना देने पर 3 माह का अतिरिक्त कारावास ।
*धारा 148 भारतीय दंड संहिता: प्रत्येक को 2 वर्ष का प्रत्येक को तीन-तीन वर्ष का कठोर कारावास व ₹20,000 -20,000 का जुर्माना ।जुर्माने की राशि न देने पर 6 माह का अतिरिक्त कारावास ।
*7 अपराधिक विधि संशोधन अधिनियम छह माह का कारावास।
पूर्व विधायक व स्वर्गीय जवाहर यादव उर्फ पंडित की पत्नी विजमा यादव ने कहा कि , “न्याय की जीत हुई है मुझे अदालत पर पूरा भरोसा था अभियुक्तों को मृत्युदंड की सजा मिलने की उम्मीद थी । जरूरत पड़ने पर ऊपरी अदालत में भी कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी ।”
वहीं पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पत्नी विधायक नीलम करवरिया ने कहा, “यह समय परिवार के लिए परीक्षा की घड़ी है न्याय के लिए हाई कोर्ट में जल्दी अपील की जाएगी अभी इतना ही कहूंगी कि फैसला परिवार की प्रोफाइल को ध्यान में रखते हुए दिया गया है।”
एक नजर डालते हैं 13 अगस्त 1996 से लेकर 4 नवंबर 2019 तक के सफर पर:
कब -कब क्या -क्या हुआ-
*13 अगस्त 1996 को घटना हुई उसी रात सिविल लाइंस थाने में मुकदमा दर्ज हुआ।
* 20 जनवरी 2004 को कोर्ट में आरोप पत्र पेश किया गया। *वर्ष 2008 में मामले की अग्रिम विवेचना हुई।
* 2013 में हाईकोर्ट के मामले की कार्यवाही में स्टे खारिज हुआ।
* 1 जनवरी 2014 को पूर्व विधायक उदयभान करवरिया ने आत्मसमर्पण किया ।
*2015 में मुकदमा परीक्षण के लिए जिला न्यायालय के सुपुर्द किया गया ।
*अप्रैल 2015 में हाईकोर्ट से पुणे स्थगन आदेश जारी हुआ। *मई 2015 में आरोप तय हुए ।
सितंबर, 2015 में सरकारी पक्ष की गवाही शुरू हुई जो अक्टूबर में पूरी हुई।
* अक्टूबर 2017 मैं बचाव पक्ष की गवाही शुरू हुई ।
*नवंबर 2018 में शासन की ओर से मुकदमा वापसी की अर्जी दी गई ।
*फरवरी 2019 में शासन की तरफ से मुकदमा वापसी की अर्जी खारिज कर दी गई ।
*अगस्त से सितंबर 2019 तक सरकारी पक्ष की बहस शुरू हुई सितंबर से अक्टूबर 2019 तक बचाव पक्ष की ओर से बहस की गई ।
*31 अक्टूबर 2019 को सभी आरोपी दोषी करार दिए गए।
* 4 नवंबर 2019 को सजा सुनाई गई।
इस पूरे मामले में एक गवाह और एक आरोपित की मौत हो चुकी है:
हत्याकांड के चश्मदीद गवाह सुलाकी यादव की बीमारी के कारण मौत हो चुकी है वहीं नामजद आरोपित श्याम नारायण करवरिया उस मौला की मौत भी हो चुकी है इस वजह से उसके विरुद्ध चल रही कार्यवाही समाप्त हो चुकी है मुकदमे में सुलाकी यादव की गवाही हो चुकी थी।
जवाहर पंडित हत्याकांड:
साल था 1981 जब नाम और शोहरत कमाने का सपना लेकर जवाहर यादव जौनपुर के एक छोटे से गांव खैरतारा से निकलकर इलाहाबाद की तरफ कदम रुख किया, और यही शहर के अशोक नगर इलाके में मकान बनवाकर रहने लगे। सब मिला यहां ।पर कुछ जो सबसे कीमती था, वह चला गया। जवाहर यादव पंडित ने पहले तो शराब और बालू के ठेकों से दौलत और शोहरत कमाई। और फिर इसे शोहरत की बदौलत झांसी में सियासत का किला बनाया ।जिसको लंबे समय तक कोई भेद नहीं पाया ।ठेका , अपराध औरअपराधियों से गठजोड़ से जवाहर पंडित ने खुद को इलाहाबाद की राजनीति में मजबूती से स्थापित कर लिया था ।और शायद यही कारण था कि करवरिया बंधु उनके दुश्मन बन बैठे।
अपने गांव में दबंग युवकों में शुमार जवाहर ने जल्द ही आसपास के लोगों से मेलजोल बढ़ाया और शराब के धंधे में लग गए।अब यदि किसी के साम्राज्य में कोई बिना अनुमति के आ जाएगा और वही अपना कब्जा करने लगे तो दुश्मनी तो होगी ही ।कुछ ऐसा ही हुआ जवाहर याद और करवरिया बंधुओं के बीच ।उस समय झूसी में बालू के ठेकों में करवरिया बंधुओं और उनके लोगों का अधिकार कायम था जवाहर यादव के पास पैसा कमाने की चाह दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी।और उसने अब बालू के ठेके में हाथ डालना शुरू किया। बस अब क्या था जो होना था वही हुआ ।करवरिया बंधु और जवाहर यादव के बीच अनबन शुरू हो गई ।धीरे-धीरे जवाहर यादव ने बालू के ठेकों पर वर्चस्व जमाना शुरू किया । पैसा खूब आ ही रहा था और पंडित का दबंगई में रुतबा भी बढ़ रहा था ।अब अगला कदम था राजनीति में आने का 1989 के आम चुनावों से पहले जवाहर यादव ने किसी के माध्यम से मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की। यह मुलाकात ऐसी रही कि पंडित ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे वह इलाहाबाद में मुलायम के करीबी लोगों में शुमार होता गया। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद जवाहर पंडित ने राजनीति करने की ठान ली।धीरे धीरे उन्होंने झूंसी मे अपनी सियासी जमीन तैयार की ।और पहली बार मुलायम की पार्टी से 1991 में चुनाव लड़े ,लेकिन महज 642 वोटों से चुनाव हार गए ।लेकिन खुद का सियासी रसूख स्थापित कर लिया था। उनका रसूख बढ़ते ही बालू के ठेकों में उनका दखल और बढ़ गया और दुश्मनी गाढ़ी होने लगी।
1993 में सपा बसपा गठबंधन हुआ तो जवाहर पहली बार विधायक बने। सत्ता मिली तो जवाहर पंडित का सियासी रसूख बड़ी तेजी से बढ़ने लगा। बताया जाता है कि उस समय इलाहाबाद की सपा की राजनीति दो जवाहरों के बीच घूमती थी। मुलायम सिंह जवाहर सिंह यादव की बात सुनते थे या फिर जवाहर पंडित की। हत्या से पहले तक वह जवाहर मुलायम सिंह के करीबी बने रहे। 1996 में उनकी हत्या से तीन महीने पहले ही विधान सभा भंग हो गई थी। उनकी हत्या की खबर सुनकर मुलायम सिंह खुद यहां पहुंचे थे और परिवार के लोगों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया था। बाद में उन्होंने उनकी पत्नी विजमा को विधायकी का टिकट और वह जीती थीं।
विजमा दो बार बनीं विधायक:
जवाहर पंडित की मौत के बाद उनकी सियासी विरासत उनकी पत्नी विजमा को मिली। अब तक सिर्फ घर संभाल रहीं विजमा ने जवाहर की विरासत को बखूबी संभाला और दो बार लगातार विधायक बनी। उनकी बेटी ज्योति ने पिछले बार फूलपुर से ब्लाक प्रमुख का चुनाव लड़ा था, मगर हार गई थीं।
कोर्ट के फैसले पर विजमा ने जताया संतोष, बांटी मिठाई:
जवाहर यादव ऊर्फ पंडित हत्याकांड में करवरिया बंधुओं को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद पत्नी विजमा यादव तथा परिवार के अन्य सदस्यों के चेहरे पर संतोष के भाव दिखे। न्यायालय के आदेश को लेकर उनमें उत्साह था तथा मिठाइयां भी बांटी गईं लेकिन 23 वर्ष पहले हुई पति की हत्या तथा संघर्षों की चर्चा के दौरान विजमा की आंखें कई बार छलक पड़ीं। फैसले पर सपा नेता पूर्व विधायक विजमा ने कहा, 23 वर्ष बाद न्याय मिला है। सरकार ने तो मुकदमा वापस ले लिया था लेकिन न्यायालय पर पूरा भरोसा था। न्यायालय के आदेश से भरोसा और मजबूत हुआ है। यदि वे लोग (करवरिया बंधु) हाईकोर्ट गए तो वहां भी संघर्ष जारी रहेगा। न्याय के लिए जहां भी जाना पड़ेगा वहां जाएंगे।
अशोक नगर स्थित विजमा यादव के आवास पर लगातार लोगों का जमावड़ा बना रहा। वहां जीत का उत्साह तो था लेकिन खामोशी भी रही। न्यायालय के आदेश तथा आगे की संभावित न्ययायिक प्रक्रिया एवं अन्य गतिविधियों पर चर्चा होती रही। विजमा का कहना था, 23 वर्ष तक बहुत संघर्ष किया। शादी के साढ़े छह साल बाद ही पति की हत्या कर दी गई। पहली बार एक-47 का उपयोग किया गया था। मैं कभी घर से नहीं निकली थी लेकिन न्याय की लड़ाई के साथ बच्चों का पालन, राजनीति, अन्य जिम्मेदारी बहुत संघर्ष किया। (डबडबाई आंखों के साथ) विजमा कहती हैं, ‘चार साल का बेटा विरेंद्र और तीन वर्ष की बेटी ज्योति को एक दिन पहले ही लखनऊ स्थित स्कूल के हॉस्टल छोड़ा था। घटना से पांच मिनट पहले ही उनका (पति) फोन आया था। कुछ देर बाद ही फिर फोन आया और …। जैसे सबकुछ खत्म हो गया। छोटी बेटी ज्योत्सना तो मात्र 10 महीने की थी। वह पापा भी नहीं बोल पाई थी…।’ तीन नन्हें बच्चों की सुरक्षा और उनका भविष्य, इसके अलावा परिवार की मर्यादा को बनाए रखना… बहुत संघर्ष किया। इस दौरान लोगों ने साथ दिया। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह और अखिलेश यादव का भरोसा मिला। 23 साल लग गए लेकिन न्याय मिला। आगे भी न्याय की पूरी उम्मीद है। उनका कहना है कि संघर्ष जारी रहेगा। राजनीति जारी रहेगी और चुनाव भी लड़ूंगी।
विधायक नीलम करवरिया ने किया फैसले को लेकर अधिवक्ताओं से विमर्श:
पति और परिवार के अन्य सदस्यों को न्याय दिलाने के लिए अब विधायक नीलम करवरिया ऊपरी अदालत की शरण में जाने की तैयारी कर रही हैैं। रविवार को उन्होंने छठ पूजा के बाद अपने अधिवक्ताओं से मशविरा भी किया।
उदयभान पर घोषित हुआ था पांच हजार इनाम:
विधायक जवाहर पंडित हत्याकांड में लगभग 17 साल बाद वर्ष 2013 में आरोपित पूर्व विधायक उदयभान करवरिया पर पुलिस ने पांच हजार रुपये इनाम घोषित किया था। यही नहीं डुगडुगी पिटवाकर पुलिस ने मुनादी भी कराई थी। दरअसल, मामले में कपिलमुनि और सूरजभान के पास अरेस्ट स्टे था, जो बाद में निरस्त हो गया था। उदयभान को अरेस्ट स्टे नहीं मिला था।
नहीं बदली जाएगी बैरक:
बहुचर्चित विधायक जवाहर यादव उर्फ पंडित हत्याकांड के मामले में दोषी करार दिए गए करवरिया बंधु की बैरक सजा मिलने के बाद भी नहीं बदली गई। उनके नाम नैनी जेल के सजायाफ्ता रजिस्टर में जरूर दर्ज किए जाएंगे। उन्हें जेल नियमों के तहत सजायाफ्ता कैदियों की तरह काम करना पड़ेगा।
जेल नियमों के तहत सजायाफ्ता कैदियों की तरह ही काम करना पड़ेगा
हत्याकांड के आरोपित पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया, उनके भाई पूर्व विधायक उदयभान, पूर्व एमएलसी सूरजभान व रामचंद्र मिश्रा उर्फ कल्लू सेंट्रल जेल नैनी के मालवीय सदन बैरक में बंद हैं। यह साधारण बैरक हंै। मामले में दोष सिद्ध होने के बाद करवरिया बंधु के दिनचर्या में अभी बहुत बदलाव नहीं आया है।
जेल में मुलाकातियों की बढ़ गई थी भीड़:
दोषी ठहराए जाने के बाद करवरिया बंधुओं से जेल में मिलने वालों की संख्या बढ़ गई। उनसे दर्जनों लोगों ने मुलाकात की और कुशल क्षेम पूछा जा रहा था। कहा जा रहा है कि इससे पहले तमाम लोग अपनी समस्या भी लेकर करवरिया बंधु के पास जेल में मिलने पहुंचते थे। वहीं अब स्थितियां बदल गई हैं। जेल पहुंचने वाले ज्यादातर समर्थक, करीबियों ने उनका हाल जानने के बाद सजा के एलान को लेकर चर्चा की।
जेल में बंद कपिलमुनि की तबीयत बिगड़ी थी:
जेल में बंद पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया की पिछले शनिवार को अचानक तबीयत बिगड़ गई थी। इस पर उन्हें स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल ले जाया गया। इस दौरान उनकी पत्नी कल्पना समेत अन्य लोग भी मौजूद थे। डॉक्टरों ने आंत और पेट में समस्या बताई थी, जिसका उपचार किया गया। वहीं जेल अधिकारियों ने इसे रूटीन चेकअप बताया।
बोले नैनी सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक:
नैनी सेंट्रल जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक एचबी सिंह ने कहा कि सजा मिलने के बाद कपिलमुनि समेत अन्य कैदियों की बैरक नहीं बदली जाएगी। सजायाफ्ता रजिस्टर में उनका नाम दर्ज कर जेल नियमों का पालन कराया जाएगा। शनिवार को रूटीन जांच के तहत कैदी को अस्पताल भेजा गया था।