AC दफ्तर AC गाड़ी AC बंगलो में रहने वाले नीति निर्माताओं, नेताओं, जनता को भी प्रदूषण के जहर से बचाओ! The Indian Opinion


NCR के बाद लखनऊ और आसपास के जिलों में भी जानलेवा हो रहा प्रदूषण, सरकार के पास नहीं कोई ठोस एक्शन प्लान।

पिछले कई वर्षों से हर साल जाड़े की शुरुआत में राजधानी दिल्ली और दिल्ली के चारों तरफ के निकटवर्ती जनपद और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और पश्चिमी यूपी के तमाम जनपदों में भयंकर प्रदूषण के काले बादल लोगों की सांसो में जहर घोलते हैं। मीडिया में हाय तौबा होती है, सरकार मीटिंग करती है चेतावनी जारी करती है।

कुछ उद्योगों और पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई करती है और जब प्रकृति धीरे-धीरे यह जहर खुद पी जाती है, वातावरण कुछ सामान्य होने लगता है तो फिर से सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। हवा में जहर भरने वाले गैर जिम्मेदाराना लोग साल भर अपना काम जारी रखते हैं सरकार की कार्रवाई में इतना दम नहीं होता कि ऐसे लोग सुधर सके।

सरकारी प्रतिबंध के बावजूद निगरानी तंत्र के अभाव में गैर जिम्मेदार लोग हर रोज पूरे प्रदेश में हजारों लाखों स्थानों पर कूड़ा जलाते हैं नगर निकायों के अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाही से शहरों और कस्बों में बड़े पैमाने पर कूड़ा जलाया जाता है। कूड़े में प्लास्टिक रबड़ और तमाम हानिकारक पदार्थों के जलाए जाने की वजह से घातक कार्बन उत्सर्जन होता है जिसकी वजह से काले हुए की परत वातावरण को घेर लेती है और हवा को जहरीला बना देती है।

तमाम दुकानदार और बहुत से गृह स्वामी अपने घरों का दुकानों का कूड़ा इकट्ठा करके हर रोज सुबह जला देते हैं, इसके अलावा कंबाइन मशीनों से धान की फसलें काटने के बाद धान के बचे हुए अवशेष यानी पराली को बड़े पैमाने पर हरियाणा पंजाब और उत्तर प्रदेश के भी किसान अपने खेतों में जलाते हैं। इसके लिए भी पिछले कई वर्षों से सरकार किसानों को चेतावनी जारी कर रही है एडवाइजरी जारी कर रही है, लेकिन व्यापक प्रचार-प्रसार और निगरानी तंत्र के अभाव में बहुत से किसान सरकार की नहीं सुनते हैं और हजारों एकड़ खेतों में फसल अवशेष बेरोकटोक जलाए जा रहे हैं जिसकी वजह से काली धुए की परत वातावरण को जहरीला बना रही है और लोग जहरीली हवा में सांस लेने के लिए बीमार होने के लिए मजबूर हैं।

सांस से संबंधित बीमारियों की वजह से हर साल लोगों की बड़ी संख्या में मौत हो रही है लेकिन लगातार ऐसी में रहने वाले अधिकारियों और नेताओं को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता इसीलिए इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता।

जब समस्या विकराल हो जाती है, जब आंखों में जलन होने लगती है, सांस लेना मुश्किल होने लगता है, लोगों का दम घुटने लगता है, अस्पतालों में भीड़ होने लगती है, तब जाकर सरकार की नींद टूटती है, बैठक छापेमारी नोटिस और कार्रवाई हंगामा किया जाता है।

ऐसे में बड़ा सवाल है कि जब सरकार को पता है कि पिछले कई वर्षों से प्रदूषण के चलते स्थिति भयावह होती जा रही तो आखिर पहले से ठोस उपाय और कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? धान की फसल तैयार होने के पहले ही सरकारी तंत्र और ग्राम पंचायतों में समन्वय स्थापित करके किसानों को इसके लिए क्यों नहीं समझाया जाता?

सवाल यहां पर सिर्फ किसानों का नहीं है परिवहन विभाग की लापरवाही के चलते सड़कों पर काला धुआं उगलते हजारों लाखों वाहन दौड़ रहे जिनके प्रदूषण जांच के लिए ठोस कार्रवाई नहीं हो रही।
तमाम उद्योग हवा में काला धुआं छोड़ रहे हैं पहले से ही वायुमंडल में इतना ज्यादा प्रदूषण है और जब जाड़े की शुरुआत में किसान पराली जलाने शुरू कर देते हैं तो पहले से ही भारी प्रदूषण से थक चुका वायुमंडल जहरीले हवा का बोझ उठाने से इनकार करने लगता है और नतीजा यह होता है कि हमारे आस पास ही धरती की सतह के बिल्कुल नजदीक ही काले धुएं के बादल ठहर जाते हैं और हमें जहरीले काले धुएं में सांस लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

राजधानी लखनऊ बाराबंकी उन्नाव सीतापुर रायबरेली जैसे जनपदों में भी प्रदूषण की वजह से लोग परेशान हैं। दिल्ली के साथ-साथ फरीदाबाद नोएडा गाजियाबाद मेरठ तक के लोग प्रदूषण से कराह रहे हैं प्रदूषण को लेकर केंद्र सरकार को पूरे देश में प्रभावी नीति और कठोर नियमों को लागू करने की जरूरत है, क्योंकि जब इंसानों की जिंदगी ही सुरक्षित नहीं रहेगी तो हर तरह का विकास बेमानी साबित हो जाएगा।

रिपोर्ट – आलोक कुमार