मो. शकील की खास रिपोर्ट
बाराबंकी स्थित हाजी वारिस अली शाह की दरगाह देवा कस्बे में स्थित है, देवा क्षेत्र प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक क्षेत्र रहा है और पुराने समय में यहां देवल ऋषि का आश्रम था । जिन्होंने समाज को मानवता और विश्व बंधुत्व की शिक्षा दी थी ।काफी समय बीतने के बाद जब एक बार अपने समाज में बुराइयां चरम पर पहुंचने लगी, और जाति धर्म का भेदभाव बढ़ता ही जा रहा था। तब ईरान के एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने वाले हाजी वारिस अली शाह के परिवार का बाराबंकी के देवा कस्बे में आगमन हुआ, और इस पवित्र भूमि को उन्होंने अपना आवास बना लिया (1819- 1905 ) बाल्यकाल से ही हाजी वारिस अली शाह परम तेजस्वी व्यक्तित्व के स्वामी थे । और उनकी सज्जनता और सद्व्यवहार की वजह से लोग उनका सम्मान करते थे । बताया जाता है ,कि हाजी वारिस अली शाह ने अपने जीवन में अनेक बार हज किया,और वह दैवीय शक्तियों के स्वामी थे। उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान करने की शिक्षा दी और लोगों को बताया कि सभी धर्म एक ही परमात्मा एक ही ईश्वर अल्लाह तक पहुंचने का मार्ग बताते है । हाजी साहब का सभी धर्मों के लोग हृदय से सम्मान करते थे, और वह स्वयं भी हिंदू मुस्लिम में कोई भेदभाव नहीं करते थे, बल्कि हिंदू और मुस्लिमों को जाहिलियत से दूर रहकर आपसी प्रेम और सहयोग को अपनाने की शिक्षा देते थे। हाजी साहब ने अपने हिंदू मुस्लिम शिष्यों को यह स्पष्ट किया इस संसार में सभी प्राणियों का एक ही मालिक है। एक ही ईश्वर अल्लाह है अलग-अलग धर्म मजहब होने से इंसान अलग नहीं, होता क्योंकि परम पिता के नाम अलग-अलग रखे जा सकते हैं । लेकिन परमपिता का अस्तित्व और प्राणी मात्र से परम पिता का संबंध समान ही है होता है ।हाजी साहब ने हिंदुओं के धर्म परिवर्तन का विरोध किया ,और हिंदुओं को ब्राह्मणों में विश्वास करते हुए सनमार्गों पर चलने की शिक्षा दी। इसी प्रकार उन्होंने मुसलमानों को भी सभी बुराइयों से दूर रहते हुए ईमान पर कायम रहने की शिक्षा दी । हाजी वारिस अली शाह अपने हिंदू भक्तों को भगवान राम और भगवान कृष्ण से जुड़ी बातें बताया करते थे ,और इसी प्रकार अपने मुस्लिम भक्तों को इस्लामिक शिक्षाएं भी दिया करते थे , बहुत से हिंदू भक्त और ब्राह्मण भी उनसे शिक्षाएं ग्रहण करते थे । हाजी साहब ने संदेश दिया कि जो रब है वही राम है विश्व मानवता को उन्होंने सार्वभौमिक प्रेम और एकता का ऐसा संदेश दिया , कि उनके जीवन काल से ही हिंदुओं और मुसलमानों में समान रुप से उनकी लोकप्रियता स्थापित हो गई थी। इसीलिए हाजी साहब हिंदुओं के त्योहारों में भी शामिल होते और होली दीपावली जैसे त्यौहार को भी मिल जुलकर मनाने की शिक्षा देते थे। जानकारों के मुताबिक हिन्दू धर्म के प्रति हाजी वारिस अली शाह के सम्मान से प्रभावित हो कर हिन्दू शिष्यो और राजाओं ने उनकी दरगाह में बढ़चढ़ कर योगदान दिया ।
शायद देश और दुनिया की यह अकेली दरगाह है ,देवा शरीफ की दरगाह जहां दरगाह परिसर के अंदर सभी बंधनों को भूलकर बड़ी संख्या में हिंदू मुसलमान हाजी और नमाजी होली के रंगों में रंग जाते हैं ,और पूरी दुनिया को यह संदेश आज भी दे रहे हैं कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है , और मानवता और आपसी प्रेम एक दूसरे का सम्मान करना धर्म और मजहब की वास्तविक शिक्षा है।