सामाजिक समरसता सबसे बड़ी आवश्यकता:अधिवक्ता अमित अवस्थी और चर्मशिल्पकार विजय जी के प्रेम को देखकर आंखें नम हो जाएगी!

ब्राह्मण और हरिजन के बीच सदियों से स्थापित प्रेम को तोड़ने की सियासी कोशिश अमित और विजय जैसे संवेदनशील लोगों की वजह से बेकार हो रही है!

The Indian Opinion
Barabanki

दोस्तों सदियों से भारतीय समाज अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़कर वैश्विक इतिहास में लंबे समय तक स्थापित रहने वाली संस्कृति के रूप में पूरे विश्व के लिए शोध और कौतूहल का विषय बना हुआ है . दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता में शामिल भारतीय सनातन सभ्यता में कर्म आधारित जाति व्यवस्था थी जो कि समाज के सभी लोगों को रोजगार और आर्थिक संपन्नता सुनिश्चित करती थी कालांतर में विदेशी आक्रमणों और लंबे समय तक रहे विदेशी शासन की वजह से तमाम कुरीतियों समाज में प्रभावित होने लगी जिसकी वजह से वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को लोगों ने जन्म आधारित समझना शुरू कर दिया लेकिन समाज में अभी भी बहुत से संवेदनशील लोग हैं जो समाज के सभी वर्गों को प्रेम संवेदनशीलता और समरसता की भावना के साथ जोड़कर रखते हैं.


ऐसे ही एक युवा अधिवक्ता हैं अमित अवस्थी जो कि समाज सेवा के कार्यों और अपने संवेदनशील व्यवहार के लिए काफी लोकप्रिय भी हैं . अमित अवस्थी समाज को जातिवाद की जकड़न से मुक्त करने के लिए संघर्षरत हैं भीषण गर्मी में रेल यात्रियों को निशुल्क जलपान की व्यवस्था करने से लेकर ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासतों को सहजने तक और समाज में भेदभाव को दूर करके समरसता स्थापित करने की अभियान को गति देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है .


पिछले दिनों अमित अवस्थी ने अपनी 14वीं वैवाहिक वर्षगांठ का एक संस्मरण सोशल मीडिया पर शेयर किया जिसमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार से उनके विवाह में उन्होंने जी चर्मशिल्पकार से जूते खरीदे थे आज भी उनका प्रेम और व्यवहार इस प्रकार का है कि दोनों ने अमित अवस्थी की शादी की सालगिरह पर एक दूसरे को मिठाई खिलाई और अमित अवस्थी ने अंग वस्त्र देकर धर्मशिल्पकार विजय का आभार व्यक्त किया . तस्वीरों में आप दोनों की भावनाओं को साफ देख सकते हैं .

 

इस खबर के साथ इस पोस्ट को भी शेयर किया जा रहा है आप इस पोस्ट को पढ़िए और चर्म् शिल्पकार विजय और अमित अवस्थी के बीच प्रेम के बंधन का आभास करिए.

“????!विक्रम जी सम्मानित!????
????️ प्रिय धर्मसेवक बन्धुओं! अपने पुरखों की कृपा से आज मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को अपने विवाह की १४वीं वर्षगांठ पूरी होने पर अपने विवाह संस्कार सम्बन्धी रीति की महत्वपूर्ण कड़ी रहे आदरणीय विक्रम जी को अंगवस्त्र,मिष्ठान सहित नेग भेंटकर सम्मानित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ क्योंकि विक्रम जी द्वारा मात्र तीन अंको के मूल्य में ऐसे जूते दिये गए थे जिन्हें देखकर हमारी साली साहिबा का उन पर दिल आ गया किसी प्रकार से दोनों न मिलने पर एक ही चुरा लिया। ऊपर से मुझ कंजूस से चोरी की नेग मांगने लगीं, ऐसे में भला हो मेरे छोटे भाइयों का जिन्होंने रात भर नाच गाना के बावजूद किसी प्रकार इतनी बड़ी समस्या से पीछा छुड़ाया।
वास्तव में हिंदू विवाह एक संस्कार है जिसके माध्यम से केवल वर और वधू ही नहीं बल्कि पूरे समाज को एक दूसरे से जुड़ने का अवसर मिलता है मनु महाराज की वर्ण व्यवस्था में पहले कार्य के आधार पर बंटवारा हुआ अर्थात कोई भी अपने कर्म के अनुसार किसी भी वर्ण में प्रविष्ट हो सकता था शनैः शनैः जो जिस कार्य को करते आ रहे थे वही उनकी जाति बन गई। विक्रम अपने नाम के आगे कोई जाति नहीं लगाते लेकिन इस जाति के लोग स्वयं के नाम के आगे राम, गौतम, रैदास, रविवंशी, रविदास, जाटव आदि लिखते हैं। विक्रम चमड़े के परम्परागत व्यवसायी हैं आज भी परंपरागत व्यवसाईयों का भारत के अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान है और माना जाता है कि यदि कोई परंपरागत व्यवसाई है तो उसकी कार्य कुशलता अन्य व्यक्ति से अच्छी होगी।
विक्रम कहते हैं कि हमारे समाज के लोगों ने इस व्यवसाय को लगभग तिलांजलि दे दी है फलस्वरुप अन्य लोग इस व्यवसाय में हावी हो रहे हैं जिससे हमारे समाज के लोग मजदूरी करने को विवश हो गए हैं। विक्रम जी दिव्यांग और आर्थिक रूप से कमजोर हैं ऐसे में उन्हें मिल रही पेंशन का उनके जीवन यापन करने में महत्वपूर्ण योगदान है वे अपनी चप्पल जूतों की दुकान घर के पास आवास विकास बाराबंकीधाम में रानी लक्ष्मीबाई स्कूल के पास लगाते हैं।”

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