आज फिर हो सकती है केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश


नई दिल्ली: अविश्वास प्रस्ताव का मसला संसद में एक बार फिर फंसता नजर आ रहा है। सोमवार को लोकसभा में प्रस्ताव के नोटिस पर एक बार फिर बात आगे नहीं बढ़ सकी. 12 बजे के बाद टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और एआईएडीएमके के सांसदों के हंगामे के चलते स्पीकर ने लोकसभा की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी थी। वहीं सरकार ने कहा है कि वो अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार है लेकिन विपक्ष का आरोप है कि एआईएडीएमके जैसी पार्टियों के जरिए सरकार सदन में हंगामा करवा कर अविश्वास प्रस्ताव पर बहस से सरकार भाग रही है। दोनों ही पक्षों के रुख में बदलाव के कोई संकेत अब तक नहीं दिखे हैं। लिहाजा आज भी संसद में हंगामा होने के आसार हैं।

वाइएसआर कांग्रेस ने अपने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर आज संसद में मौजूद रहने के लिए कहा है. टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए तीन नोटिस दिए हैं। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न मिलने से नाराज टीडीपी पहले एनडीए से अलग हुई और अब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर रही है।

कैसे आता है अविश्वास प्रस्ताव

अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए सबसे पहले सभापति को लिखित में सूचना देनी होती है. इसके बाद सभापति को सूचना देने वाली पार्टी के किसी सांसद से प्रस्ताव पेश करने के लिए कहते हैं. लेकिन प्रस्ताव मंजूर हो, इसके लिए जरूरी है कि 50 सांसदों का समर्थन हो. इसके बाद वोटिंग कराई जाती है या फिर समर्थन करने वाले सांसदों को खड़ा कर गिनती की जाती है।

सरकार के पास है पर्याप्त नंबर

गणित पर गौर किया जाए तो टीडीपी के पास 16 और वाईएसआर कांग्रेस के पास 9 सांसद हैं. ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने भी प्रस्ताव का समर्थन किया है. उसके पास 34 सांसद हैं. ऐसे में तीनों पार्टियों के सांसद को मिलाकर ये संख्या 59 हो जाती है जो कि प्रस्ताव पेश करने के लिए काफी हैं।
गौरतलब है कि अविश्वास प्रस्ताव आने पर मोदी सरकार पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है. लोकसभा में बीजेपी के 273 सांसद हैं।

ऐसे में वो यह परीक्षा आराम से पास कर जाएगी. हालांकि, सरकार के लिए थोड़ी मुश्किल सहयोगी दलों के छिटकने और गठबंधन के साथियों के नाराज होने की खबरों को लेकर जरूर है. विपक्षी एकता एक तरफ लामबंद होने के लिए प्रयास कर रही है और सरकार के सहयोगी दलों का दूर होना जरूर मोदी और बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए आगामी लोकसभा चुनावों में सिर दर्द बन सकता है।