कक्षा 5 में स्कूल छोड़ा, विभाजन का दर्द झेला, दिल्ली में तांगा चलाया!परिश्रम से बने “पदमविभूषण” एमडीएच के महाशय धर्मपाल!

नहीं रहे मसालों के शाहंशाह

देश की जानी-मानी मसाला कंपनी एमडीएच के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के माता चंदन देवी हॉस्पिटल में आज सुबह 5:38 बजे आखिरी सांस ली। महाशय कोरोना से भी संक्रमित थे हालांकि वह उससे ठीक हो चुके थे। उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ।

निधन की खबर आने पर नहीं हुआ विश्वास

आज जब महाशय धर्मपाल गुलाटी के निधन की खबर आई तो किसी को विश्वास नहीं हुआ दरअसल कई बार उनके देहांत की झूठी अफवाहें फैलाई गई थी। ऐसी ही एक ख़बर 7 अक्टूबर 2018 को फैलाई गई थी तब उनके परिजनों ने वीडियो जारी करके कहा था कि वह पूरी तरह स्वस्थ है और जीवित हैं।

पद्म विभूषण से हो चुके हैं सम्मानित

व्यापार और उद्योग खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में बेहतर योगदान देने के लिए 2019 के गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

महाशय धर्मपाल की कामयाबी की दास्तान

1947 में देश के विभाजन के दौरान उनका परिवार दिल्ली आ गया था यहां आने के बाद एक दिन वह चांदनी चौक गए वहां कुछ लोग तांगा बेच रहे थे उन्होंने उसे 650 रुपए में खरीद लिया और लगभग 2 साल तक दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक तांगा चलाया। तांगे से उन्हें प्रति सवारी दो आना मिलता था। इस कमाई से उनके परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था लिहाजा उन्होंने इसे बेच दिया।
1953 में चांदनी चौक में महाशय ने एक दुकान किराए पर ली और महाशयन दी हट्टी नाम से मसालों का व्यापार शुरू किया। इसके बाद सियालकोट की देगी मिर्च ने कमाल कर दिया और महाशय का कारोबार चल पड़ा। आज एमडीएच किसी पहचान का मोहताज नहीं है। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि मेहनत, लगन और ईमानदारी की वजह से आज उनका लन्दन से लेकर दुबई तक कारोबार है।

एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले धर्मपाल अपने शुरुआती जीवन में साधारण ही थे जब पर पांचवी कक्षा में थे तब एक बार टीचर ने क्लास के सामने डांट लगा दी जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया बड़े होने के बाद उन्होंने बढ़ई का काम किया। धर्मपाल के पिताजी की मसालों की दुकान थी जो देश के विभाजन के बाद पूरी तरह से बर्बाद हो गई। आगे चलकर धर्मपाल नें दिल्ली में ऐसी ही एक दुकान खोली और सफलता की कहानी लिखी जो आज सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।

आलेख – दीपक मिश्रा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *