क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में प्रोन्नति प्रक्रिया और उससे जुड़े कुछ सवाल ??

प्रमोशन या प्रोन्नति एक ऐसा शब्द है जिसका ज़िक्र आते ही किसी भी कर्मचारी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है | प्रोन्नति का तात्पर्य है वर्तमान पद से अधिक महत्वपूर्ण , अधिक वेतन , अधिक ज़िम्मेदारी व अधिक प्रतिष्ठा वाले पद पर चयन एवं नियुक्ति।

प्रोन्नति कर्मचारी व संस्था , दोनों ही के लिए महत्वपूर्ण होती है क्योंकि जहां कर्मचारी प्रोन्नति की लालसा में बेहतर से बेहतर कार्य क्षमता का प्रदर्शन करते हैं वहीं संस्था को उच्च पदों की ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए उपयुक्त अभ्यर्थी मिल जाते हैं।

प्रोन्नति से कर्मचारियों को बेहतर कार्य प्रदर्शन की प्रेरणा मिलती है ताकि भविष्य में उनका चयन उच्च पदों के लिए किया जा सके। यह नितान्त आवश्यक है की प्रोन्नति की प्रक्रिया बिना किसी पूर्वाग्रह और भेद भाव के , पारदर्शी ढंग से सभी को समान अवसर प्रदान करते हुए सम्पन्न की जाये और सुपात्र और सक्षम अभ्यर्थियों का चयन किया जाय। जहाँ, पक्षपात पूर्ण ढंग से की गई प्रोन्नति प्रक्रिया किसी भी संस्था के कर्मचारियों में असंतोष पैदा कर उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करती है वहीं दूसरी तरफ उच्च पदों पर गलत अभ्यर्थियों का चयन संस्था की प्रगति में बाधक बन सकती है।

इन्ही तथ्यों के मद्देनजर वित्त मंत्रालय भारत सरकार ने देश में कार्यरत ग्रामीण बैंकों में प्रोन्नति की प्रक्रिया को सही ढंग से संपादित करने के लिए अधिसूचना S.O. NO. 1663(E) DATED 13.7.2010 जारी की हुई है और इसी के अनुपालन में ग्रामीण बैंकों द्वारा पिछले एक दशक से प्रोन्नति प्रक्रिया पूर्ण की जा रही है।

लेकिन धीरे धीरे महसूस किया जाने लगा है कि जिन पदों पर सीधे साक्षात्कार और कार्य निष्पादन आख्या के आधार पर चयन किया जाता है उनमें संबन्धित बैंक के अध्यक्षों का प्रभुत्व और दखल बहुत अधिक बढ़ गया है और जातिवाद , रसूक, और भी कई कारकों के प्रभाव के आरोप समय समय पर अपना सिर उठाते रहे हैं। समय कि माँग है कि इन नियमों में कुछ बदलाव किया जाय ताकि यह नीयम ग्रामीण बैंकों के कर्मचारियों/अधिकारियों की उम्मीद पर खरा उतर सकें-

• समान्यतः ऐसा देखा गया है कि प्रशासनिक कार्यालयों खास तौर पर प्रधान कार्यालय में कार्य करने वाले अभ्यर्थियों का प्रोन्नति में सफलता का प्रतिशत शाखा में कार्यरत अभ्यर्थियों के मुक़ाबले काफी अधिक होता है | शायद इसलिए कि शाखाओं पर कार्यरत अभ्यर्थियों की कार्यक्षमता को परखने के मापदंड अधिक सख्त और संख्या में अधिक होते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है की नियमों में बदलाव कर एक पद से दूसरे पद पर प्रोन्नति की न्यूनतम आहर्ताओं में यह जोड़ा जाये की ज़रूरी अनुभव का कम से कम 50% शाखा स्तर पर कार्य कर हासिल किया गया हो। उदहारण के तौर पर यदि स्केल III से स्केल IV पद पर प्रोन्नति के लिए , स्केल III के पद पर 4 वर्षों का अनुभव आवश्यक है तो इनमें से कम से कम दो वर्ष का अनुभव शाखा स्तर पर कार्य करते हुए होना चाहिए ताकि अभ्यर्थियों के बीच एक संतुलन बनाया जा सके।
• कार्य निष्पादन आख्याओं में ,किसी अभ्यर्थी को लाभ पहुँचाने की गलत नीयत से बदलाव करना एक दूसरी बड़ी समस्या है। इसके लिए नियमों में बदलाव कर सभी ग्रामीण बैंक के लिए यह आवश्यक कर दिया जाना चाहिए कि सभी ग्रामीण बैंक, वार्षिक लेखा बंदी के तीन माह के अंदर कार्य निष्पादन आख्याओं का कार्य पूर्ण कर उन को डिजिटल फ़ारमैट में परिवर्तित कर एक प्रति सुरक्षित कर लें ताकि इसमें बाद में कोई बदलाव नहीं किया जा सके।
• अगर चयन बोर्ड किसी अभ्यर्थी का चयन न कर उससे निचली वरिष्ठता वाले अभ्यर्थी का चयन करता है तो बोर्ड को विस्तार में इसके कारण अंकित करने चाहिए। यह प्रक्रिया वहाँ और भी ज्यादा ज़रूरी हो जाती है जहां 5 या उससे अधिक अभ्यर्थियों का चयन न कर वरिष्ठता क्रम में नीचे किसी अभ्यर्थी का चयन किया जाता है।

हमें याद रखना होगा की प्रोन्नति प्रक्रिया का मूल उद्देश्य तब विफल हो जाता है जब इस प्रक्रिया में ईमानदारी, नेक नियति और पारदर्शिता के साथ सम्झौता किया जाने लगता है। चयन बोर्ड के सदस्यों को नहीं भूलना चाहिए कि उन को भी इस प्रक्रिया से कभी न कभी गुजरना होता है। जिस ईमानदारी और साफ़गोई कि उम्मीद वह अपने चयन बोर्ड से अपने लिए रखते हैं उसी का पालन उन्हें ग्रामीण बैंक के अभ्यर्थियों का चयन करते समय करना चाहिए।

आलेख-विकास चन्द्र अग्रवाल

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