* खारिज हुआ दीपक मिश्रा पर महाभियोग का प्रस्ताव*


नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दलों ने महाभियोग प्रस्ताव राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वैंकया नायडू के समक्ष पेश किया था जिसको वैंकया नायडू ने नामंजूर कर दिया और कहा कि सीजेआई पर लगाए गए सभी आरोप गलत हैं,
मैंने प्रस्ताव में सीजेआई पर लगाए गए पांचों आरोपों और उसके संबंध में पेश किए गए दस्तावेजों को परखा। कोई भी तथ्य सीजेआई के खराब बर्ताव की पुष्टि नहीं करता है।सीजेआई पर पांच आरोप 
1. विपक्षी दलों ने कहा कि पहला आरोप प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से संबंधित हैं. इस मामले में संबंधित व्यक्तियों को गैरकानूनी लाभ दिया गया। इस मामले को प्रधान न्यायाधीश ने जिस तरह से देखा उसे लेकर सवाल है। यह रिकॉर्ड पर है कि सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है। इस मामले में बिचौलियों के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत का ब्यौरा भी है। प्रस्ताव के अनुसार इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की इजाजत मांगी और प्रधान न्यायाधीश के साथ साक्ष्य साझा किये. लेकिन उन्होंने जांच की इजाजत देने से इनकार कर दिया। इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए।

 

2. दूसरा आरोप उस रिट याचिका को प्रधान न्यायाधीश द्वारा देखे जाने के प्रशासनिक और न्यायिक पहलू के संदर्भ में है जो प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में जांच की मांग करते हुए दायर की गई थी। 

 

3. तीसरा आरोप भी इसी मामले से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि यह परंपरा रही है कि जब प्रधान न्यायाधीश संविधान पीठ में होते हैं तो किसी मामले को शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश के पास भेजा जाता है। इस मामले में ऐसा नहीं करने दिया गया।

 

4. गलत हलफनामा देकर जमीन हासिल करने का लगाया है। प्रस्ताव में पार्टियों ने कहा कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने वकील रहते हुए गलत हलफनामा देकर जमीन ली और 2012 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने के बाद उन्होंने जमीन वापस की, जबकि उक्त जमीन का आवंटन वर्ष 1985 में ही रद्द कर दिया गया था।

 

5. प्रधान न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय में कुछ महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील मामलों को विभिन्न पीठ को आवंटित करने में अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग किया।

अब जब सभापति वैंकया नायडू ने दीपक मिश्रा के महाभियोग प्रस्ताव को ठुकरा दिया है तो अब विपक्षी दलों के पास सुप्रीम कोर्ट के पास जाने का रास्ता बचता है। हालांकि कांग्रेस ने ये पहले ही कह दिया था कि अगर सभापति प्रस्ताव को नामंजूर करते है तो वो सुप्रीम कोर्ट का रूख करेंगे। लेकिन विपक्षी पार्टियों का ये भी कहना है कि आखिर किस आधार पर सभापति ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया।