“बापू की वसीयत” !! गांधीजी की अंतिम इच्छा खारिज ही रही !!

part 2 of 2

इतिहास से प्रश्न पूछा जा सकता है कि यदि सरदार पटेल बापू के प्रस्ताव को नकार कर कांग्रेस अध्यक्ष बन जाते? प्रधानमंत्री नियुक्त हो जाते? तो क्या होता ? आंकलन स्पष्ट है कि नेहरु उस पुरानी पार्टी कांग्रेस को तोड़ देते। वही हरकत जो उनकी इकलौती पुत्री ने तीन बार चुकी हैं। सिंडिकेट को हटाकर कांग्रेस इंडिकेट बनाया। कम्युनिस्ट सांसदों की बैसाखी पर केन्द्र सरकार चलायी। अपने कांग्रेसी प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डि को हराकर बागी निर्दलीय वीवी गिरी को राष्ट्रपति निर्वाचित करा दिया। एस. निजलिंगप्पा, देवराज अर्स, देवाकांत बरुझ, कासु ब्रह्मानन्द रेड्डि को बर्खास्त कर स्वयं पार्टी की सरबराह बन गयीं। पराकाष्ठा आई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रायबरेली में भ्रष्ट आचरण के जुर्म में इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया। प्रधानमंत्री ने कुर्सी के लिये आपातकाल लगा दिया। बाकी सब आज का जानामाना इतिहास है, हर एक को पता है।

बापू की वसीयत — 29 जनवरी 1948। ''भारत को सामाजिक, नैतिक व आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर लोकसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है। हमें कांग्रेस को राजनीतिक दलों और साम्प्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना है। ऐसे ही कारणों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नीचे लिखे नियमों के अनुसार 'लोक सेवक संघ' के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है।'' गांधीजी (बापू) की राय थी कि भारत की आजादी का लक्ष्य पूरा हो जाने के बाद राजनीतिक दल के रुप में कांग्रेस के बने रहने का अब कोई औचित्य नहीं है। अतएव इसे भंग करके लोक सेवक संघ बना देना चाहिए और कांग्रेस के नेताओं को सामाजिक कार्यों में जुट जाना चाहिए। गांधीजी ने अपनी हत्या के तीन दिन पहले यानी 27 जनवरी 1948 को एक नोट में लिखा था कि : ''अपने वर्तमान स्वरूप में कांग्रेस अपनी भूमिका पूरी कर चुकी है। अतएव इसे भंग करके एक लोकसेवक संघ में तब्दील कर देना चाहिए।'' यह नोट एक लेख के रूप में 2 फरवरी 1948 को ''महात्मा जी की अंतिम इच्छा और वसीयतनामा'' शीर्षक से ''हरिजन'' पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। अर्थात् गांधीजी की हत्या के दो दिन बाद यह लेख उनके सहयोगियों द्वारा प्रकाशित कराया गया था। यह शीर्षक गांधीजी की हत्या से दुःखी उनके सहयोगियों ने दे दिया था। इसी तरह से उन्होंने कांग्रेस का संविधान और स्वरुप दोनों बदल डालने की बाबत स्वयं एक मसौदा 29 जनवरी की रात को तैयार किया था, जिसे उनकी हत्या के बाद कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव आचार्य युगल किशोर (बाद में उत्तर प्रदेश के काबीना मंत्री) ने विभिन्न अखबारों को प्रकाशनार्थ जारी किया था। मगर बापू की वसीयत कोई स्वीकार नहीं करता। यीशू मसीह ने सूली पर चढ़ते वक्त ईश्वर से कहा था, ''इन नासमझों को क्षमा कर दो। वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं?'' बापू का उत्सर्ग अपरिहार्य था। गोडसे तो विधि का बहाना था। निजी सहायक वेंकटरामन कल्याणम का भावार्थ यही था। उनके निधन पर शोक संवेदना।

आलेख – के. विक्रम राव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *