महान फुटबॉलर और 1962 में एशियन गेम्स की विजेता टीम के कैप्टन रहे चुन्नी गोस्वामी का गुरुवार को निधन हो गया। वह 82 साल के थे।

रिपोर्ट – अराधना शुक्ला

कोलकाता में ही अपने निवास स्थान के पास स्थित एक नर्सिंग होम में उन्होंने आखिरी सांस ली। उनको दिल का दौरा पड़ा था, जिससे उनकी सांसे थम गई और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
वे अपने पीछे अपनी पत्नी बसंती और बेटा सुदीप्तो को छोड़ गए हैं।

कुछ महीनों पहले ही उनके साथी खिलाड़ी पीके बनर्जी का भी निधन हो गया था। गोस्वामी, बनर्जी और तुलसीदास बलराम भारतीय फुटबॉल टीम के फारवर्ड लाइन का हिस्सा थे। 1962 के एशियाई खेलों में  इस तिकड़ी नें अपनी टीम को रजत पदक दिलाया था। इस टीम के कैप्टन चुन्नी गोस्वामी थे।

चुन्नी गोस्वामी का जन्म अविभाजित बांग्लादेश के किशोरगंज जिले में 15 जनवरी 1938 को हुआ था। इनका वास्तविक नाम सुबिमल गोस्वामी था, लेकिन इनको इनके निकनेम से ही जाना जाता है।
गोस्वामी का कैरियर -1946 में इन्होंने मोहन बागान क्लब को ज्वाइन किया था तब इनकी उम्र 8 साल की थी, और ये जूनियर टीम का हिस्सा थे। 1968 तक जब तक वे रिटायर नहीं हुए, तब तक मोहन बागान क्लब की तरफ से ही खेलते रहे थे। चुन्नी गोस्वामी का अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में पदार्पण 1956 में हुआ था। यही वह साल था जब ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम को चौथा स्थान प्राप्त हुआ था। भारत ने चीन को 1-0 से शिकस्त दी थी। गोस्वामी फुटबॉल के अलावा क्रिकेट भी खेलते थे। 1962 -63 में वह बंगाल की रणजी क्रिकेट टीम का हिस्सा थे। फुटबॉल से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान क्रिकेट खेलने पर लगाया था। 46 प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैचों में उन्होंने 1552 रन और 47 विकेट लिए थे।

पुरस्कार- 1962 में एशिया के सर्वश्रेष्ठ स्ट्राइकर का पुरस्कार इन्होंने जीता था। इसके बाद 1963 में अर्जुन पुरस्कार और 1983 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। भारतीय डाक विभाग नें जनवरी में उनके योगदान के लिए विशेष डाक टिकट भी जारी किया था। 1970 के दशक में भारतीय फुटबॉल के चयनकर्ता भी थे और 1996 में जब राष्ट्रीय फुटबॉल लीग की शुरुआत हुई, तो वह सलाहकार समिति का हिस्सा भी थे।

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ ने व्यक्त किया शोक- अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने चुन्नी गोस्वामी के निधन पर शोक व्यक्त किया है ।उन्होंने कहा, “यह सुनकर दुख हुआ कि भारत के सबसे महान फुटबॉलर ओं में से एक चुन्नी दा नहीं रहे भारतीय फुटबॉल में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि,”वह भारतीय फुटबॉल की स्वर्णिम पीढ़ी का पर्याय बने रहेंगे, चुन्नी दा आप हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहोगे।”
चुन्नी गोस्वामी उस दौर के फुटबॉल खिलाड़ी थे, जब भारत में फुटबॉल का स्वर्ण था।

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