व्रत और त्योहार पर प्रयोग में आने वाले मखाने को बनाने की ये है पूरी प्रक्रिया! जानिए कहा होता है सबसे ज्यादा मखाना

मखाना बनाने के लिए सबसे पहले Gorgon Plant से बीज निकाले जाते हैं। पौधों से बीज निकालना कोई मामूली बात नहीं है। इसके लिए कुशल लोगों की ही जरूरत पड़ती है। यदि इन्हें ठीक न निकाला जाए तो ये खराब हो जाते हैं।

व्रत और त्योहार पर प्रयोग में आने वाले मखाने को बनाने की ये है।

पूरी प्रक्रिया ऐसे तैयार होते हैं। मखाने पूर्णिया में मखाना तैयार करते मजदूर।
मखाना हम सभी खाते रहते हैं। बीते कुछ समय से इसे खाने के तरीके भी बदल रहे हैं। पहले मखाने को पूजा में इस्तेमाल किया जाता था।फिर प्रसाद में खाया जाता था। इसके अलावा मखाने को खीर या सेवई जैसे पकवानों में मिलाकर खाया जाता था। समय बदला और फिर मखाने को नमकीन में भी मिलाकर खाया जाने लगा।

लेकिन अब इसमें नमक और मसाला मिलाकर नमकीन ही बना दिया गया है। अब मखाने को हम सभी किसी न किसी रूप में खा ही रहे हैं। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। जिन्हें इस बारे में मालूम है।कि मखाने बनते  कैसे है। दरअसल मखाने एक खास बीज से निकलते हैं। यह बीज कमल जैसे दिखने वाले पौधों में पाए जाते हैं। जिन्हें Gorgon Plant कहा जाता है। यह पौधे भी कमल की तरह ही पानी में होते हैं।आइए अब जानते हैं। कि आखिर मखाने कैसे तैयार होते हैैं।

कई प्रक्रियाओं से गुजर कर बनता है। मखाना

मखाना बनाने के लिए सबसे पहले Gorgon Plant से बीज निकाले जाते हैं। पौधों से बीज निकालना कोई मामूली बात नहीं है। इसके लिए कुशल लोगों की ही जरूरत पड़ती है। यदि इन्हें ठीक न निकाला जाए तो ये खराब हो जाते हैं। पानी में होने वाले इन पौधों से बीज निकालकर उन्हें सुरक्षित तरीके से इकट्ठा कर लिया जाता है।जब सभी बीज इकट्ठे हो जाते हैं।

तो उन्हें अच्छी तरह से साफ किया जाता है। और फिर धूप में सुखाया जाता है। यह बीज गहरे लाल रंग के होते हैं।जो कई बार भूरे और काले रंग के भी दिखाई देते हैं। इन बीज को सुखाने के बाद इन्हें कई एक-एक करके 5 पतीलों में भूना जाता है। दरअसल अलग-अलग 5 पतीलों में भूनना इसे मखाना बनाने के लिए तैयार करने की ही एक प्रक्रिया है। जब इन्हें भूनने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। तो इन्हें लकड़ी के एक मोटे पटरे पर रखकर लकड़ी के हथौड़े से ही पीटा जाता है। जैसे ही भुने हुए बीजों पर चोट पड़ती है।वह फूटकर मखाना बन जाते हैं।

बिहार में होता है। सबसे ज्यादा मखाना

यहां आपको एक बात बतानी बहुत ज्यादा जरूरी है।कि लकड़ी के पटरे पर बीजों को पीटना एक पुराना और पारंपरिक तरीका है। इस प्रक्रिया के तहत कई बीज खराब भी हो जाते हैं। इसलिए किसानों को मखाने की खेती में अच्छा लाभ नहीं मिल पाता। हालांकि बाजारों में अब मखाना पॉपिंग मशीन भी उपलब्ध है। यह मशीन ज्यादा बीजों का नुकसान नहीं होने देती और ज्यादा से ज्यादा मखाना बनाती है। बताते चलें कि भारत में सबसे ज्यादा मखाना बिहार में होता है। बिहार के 9 जिलों मधुबनी, दरभंगा, कटिहार, सीतामढ़ी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, सहरसा और सुपौल में मखाने की खेती होती है।इसके अलावा मणिपुर के भी कुछ पहाड़ी इलाकों में भी मखाने की खेती की जाती है।

खेती के साथ-साथ बिजनेस में भी लाभदायक है मखाना

मखाना की गिनती नकदी फसल में होती है। लिहाजा इसकी खेती और बिजनेस दोनों में ही गजब का मुनाफा होता है। बिहार में पहले मखाने की इतनी खेती नहीं हुआ करती थी। लेकिन इसके नकदी महत्व को ध्यान में रखते हुए किसान अब बड़े स्तर पर इसकी खेती करने लगे हैं। मखाने के मामले में किसानों के लिए सबसे अच्छी बात ये है। कि इसकी खेती में न तो खाद की जरूरत पड़ती है।और न ही कीटनाशक की इसके अलावा अब सभी छोटे-बड़े बाजारों में मखाने की डिमांड बढ़ रही है। क्योंकि इसमें अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में रसायनों की मौजूदगी लगभग न के बराबर होती है। मखाने की खेती में किसानों को काफी कम लागत लगानी पड़ती है। जबकि इसकी बिक्री में बड़ा लाभ मिलना तय होता है।

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