क्या बिगड़ रहे हैं संबंध, अफगानिस्तान की बैठक में रूस ने पाक चीन को बुलाया, भारत को नहीं?

रूस और अमेरिका दुनिया के 2 सबसे ताकतवर देश माने जाते हैं भारत की आजादी के बाद से ही लगातार रूस ने हर मसले पर भारत का सहयोग किया है दुश्मन देशों से हुई लड़ाई हो और सीमा सुरक्षा के मसले पर भी रूस ने भारतीय सेना को मजबूत करने का काम किया है।

ऐसे में सवाल उठता है कि भारत रूस के संबंध क्या अब कमजोर हो रहे हैं?

पिछले कुछ वर्षों में भारत और रूस के संबंधों में उदासीनता आई है बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में जहां पिछले कुछ दशकों में अमेरिका की ताकत बढ़ी है भारत में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद अमेरिका से भारत की दोस्ती भी और मजबूत हुई है । लेकिन भरोसे के मामले में रूस हमेशा से ही अमेरिका के मुकाबले भारत के लिए ज्यादा कारगर साबित हुआ है पाकिस्तान से लड़ाई के दौरान अमेरिका ने जहां भारतीय हितों की खिलाफत करते हुए पाकिस्तान को मदद पहुंचाई थी वह रूस भारत के पक्ष में मजबूती से खड़ा था। लेकिन अफगानिस्तान के ताजा हालातों में यह स्पष्ट हो रहा है कि रूस की प्राथमिकता में अब भारत पहले जैसा नहीं है । पिछले कुछ महीनों में भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान में आतंकी संगठन तालिबान और अधिक मजबूत हुआ है वहां हिंसा बढ़ती जा रही है जिसको लेकर दुनिया चिंता में है। अफगानिस्तान के मसले पर रूस ने 11 अगस्त को एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है खास बात यह है कि रूस ने इस बैठक में चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित किया है लेकिन भारत को आमंत्रित नहीं किया है जबकि भारत अफगानिस्तान का एक महत्वपूर्ण साझीदार है। अफगानिस्तान से उसके हित जुड़े हुए हैं और अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत ने करोड़ों डॉलर का निवेश किया है।

आखिर क्यों रूस भारत को उपेक्षित कर रहा है क्या एक बड़ा सवाल है।

जानकारों के मुताबिक अमेरिका और पश्चिमी देशों से भारत की बढ़ती नजदीकियों से नाराज है रूस। अफगानिस्तान में तालिबान के वर्चस्व को कम करने और शांति समाधान ढूंढने के लिए रूस की अगुवाई में इसके पहले 18 मार्च और 30 अप्रैल को भी बैठक आयोजित की गई थी इन बैठकों में भी भारत को नहीं बुलाया गया था जबकि चीन पाकिस्तान को बुलाया गया था । 11 अगस्त को कतर में आयोजित बैठक में चीन पाकिस्तान रूस और अमेरिका के शामिल होने की उम्मीद है इन बैठकों को मास्को फॉर्मेट और विस्तारित ट्रोइका समझौतों पर आधारित माना जा रहा है । उद्देश है अफगानिस्तान में शांति व्यवस्था और लोकतंत्र को बाहर करना लेकिन भारत अफगानिस्तान में अहम साझीदार होते हुए भी इस बैठक से दूर किया जा रहा है। जानकारों के मुताबिक रूस संदेश देना चाहता है कि वह भारत और अमेरिकी नजदीकियों से नाराज है ।
पिछले दिनों रूस के विदेश मंत्री सरगेई लावरोव ने कहा था कि अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के गठबंधन के प्रभाव के चलते भारत और उससे दूर हो रहा है हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई है कि भारत और रूस के पुराने संबंध मजबूत बने रहेंगे लेकिन सच्चाई यह है कि पिछले कुछ सालों में भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान और चीन से रूस के संबंध तेजी से बेहतर हुए हैं और रूस चीन और पाकिस्तान को कई बड़े हथियार भी बेच रहा है।

20 सालों से लगातार चल रहा भारत रूस शिखर सम्मेलन 2 सालों से अधर में:

भारत और रूस के राष्ट्राध्यक्षओं के बीच पिछले 20 वर्षों से लगातार प्रत्येक वर्ष एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित होता है जिसने दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष संबंधित मंत्री और सभी विभागों के वरिष्ठ अधिकारी एक दूसरे से मुलाकात करते हैं और परस्पर हितों और साझेदारी की चर्चा करते हैं। पिछले 2 वर्षों से यह बैठक आयोजित नहीं हुई है पहले इसे कोरोना की वजह से टाल दिया गया था लेकिन इस बीच दुनिया में तमाम गतिविधियों को आगे बढ़ाया जा रहा है फिर भी यह बैठक अधर में लटकी है।
बताया जा रहा है कि रूस ने इस बैठक को टाल दिया है ।रूसी विदेश मंत्रालय का मामला मानना है कि अमेरिका के दबाव में भारत अब रूस से उस तरह हथियारों की खरीदारी नहीं कर रहा है जैसे वह पहले करता था। मिसाइल रोधी सुरक्षा प्रणाली S-400 खरीदने के मसले पर भी भारत को अमेरिका का दबाव झेलना पड़ा था इसके अलावा भारत में रूसी ऑटोमेटिक राइफल ak-203 की फैक्ट्री लग चुकी है लेकिन रूस से सहयोग के अभाव में अभी ऑटोमेटिक रायफलों का उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है । भारत अभी तक रूस का सबसे बड़ा हथियार खरीदार रहा है जिसे रूस को काफी आमदनी होती रही है विगत कुछ वर्षों में भारत ने पश्चिमी देशों से भी आधुनिक हथियार लिए हैं और रूस को इस बात की नाराजगी है वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों के अनुसार भारत हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए भी प्रयासरत है इसलिए वह हथियार खरीदने की बजाय हथियारों की टेक्नोलॉजी हासिल करके उन्हें अपने ही देश में निर्माण पर जोर दे रहा है जबकि रूस चाहता है कि भारत हथियारों का खरीदने के मामले में रूस को हमेशा तरजीह देता रहे।

भारत के प्रधानमंत्री दोनों ताकतवर देशों से संतुलित संबंध चाहते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय हितों को सबसे ऊपर रखने की नीति पर काम कर रहे हैं इसलिए वह दुनिया के सभी ताकतवर देशों से संतुलित संबंधों के पक्षधर हैं वह किसी एक बड़े देश की ओर ज्यादा झुकाव नहीं रखना चाहते हैं और सभी ताकतवर देशों से टेक्नोलॉजी हासिल करके भारत को आत्मनिर्भर बनाने की नीति पर काम कर रहे हैं रक्षा सौदों के मामले में भी वह रूस के साथ-साथ अमेरिका से भी आवश्यक सहयोग लेना चाहते हैं दुनिया के बड़े हिस्से पर अभी भी रूस से ज्यादा अमेरिका का प्रभाव बना हुआ है इसलिए भारत अपने हित में सभी दरवाजे खोल कर रखना चाहता है ।जबकि कांग्रेस शासनकाल में भारत रूस पर निर्भर रहता था रूस यही चाहता है कि भारत उसे अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखें और हाल के वर्षों में भारत की प्राथमिकता में अमेरिका को ज्यादा दखल मिली है इसी वजह से रूस और भारत के बीच दूरियां बनी है। हालांकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विदेश मंत्री एस जयशंकर को रूप से संबंधों को एक बार फिर मजबूत करने के मिशन में लगा रखा है उम्मीद है कि रूस के द्वारा अफगानिस्तान के मसले पर आयोजित होने वाली 11 अगस्त की महत्वपूर्ण बैठक में भारत को भी देर सवेर बुलावा जरूर भेजा जाएगा।

इंटरनेशनल डेस्क
द इंडियन ओपिनियन :नई दिल्ली

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