केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि बिल का विरोध कुछ किसान संगठन कर रहे हैं और अब इस आंदोलन में पंजाब का आढ़ती एसोसिएशन भी खुलकर शामिल हो गया है पहले संगठन गोपनीय रूप से यह विरोध किसानों को आगे करवा कर कर रहे थे। एसोसिएशन नें तीनों कृषि बिल के विरोध में प्रस्ताव पास किया है। एएसपी का कहना है कि इससे 28000 लाइसेंसधारी आढ़ाती उनके क्लर्क और पंजाब के 1860 मंडियों के मजदूर प्रभावित होंगे। इसके अलावा तकरीबन सात लाख लोगों की रोजी-रोटी छिन जाएगी।
इससे पहले रविवार को पंजाब के स्कूल शिक्षा और लोक निर्माण मंत्री विजय इंद्र सिंगला ने अढ़तिया एसोसिएशन के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा था कि, “हम यह बात गर्व के साथ कह सकते हैं कि अढ़तिया सरकार और किसान के बीच की सबसे मजबूत कड़ी हैं।” इसके अलावा उनका यह भी कहना था कि केंद्र सरकार को बिहार राज्य से भी सबक लेना चाहिए जहाँ 2006 में मंडी व्यवस्था को बंद कर दिया गया था। अगर एक बार ये ख़त्म हो गई तो बाजार में बेईमान व्यापारी किसानों को लूटना शुरू कर देंगें।
आढ़तिये ही होते हैं जो फसल की कीमत तय करते हैं। एक यही होतें हैं जो तय करते हैं कि किसानों को गेहूं के मूल्य 1925 रुपए प्रति कुन्तल से कम न मिले वहीं बिहार के किसान को 1050 से 1090 रूपए ही मिलते हैं।
●पंजाब में आढ़तियों का बोलबाला पंजाब में बिचौलियों की सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 1860 मंडियों में तकरीबन 28000 लाइसेंसधारी आढ़ाती हैं जो प्रत्यक्ष रूप से किसानों की फसल का मूल्य निर्धारण करते हैं।
कृषि उत्पाद बाजार समिति यानी एपीएमसी की मंडियों में इन बिचौलियों को सरकार की तरफ से लाइसेंस दिया जाता है जिससे ये किसानों से फसल खरीदकर व्यापारी को बेचते हैं। इस प्रक्रिया में इनको 2.5% का मुनाफा कमीशन के रूप में होता है।
कृषि उत्पाद बाजार समिति की मंडियों में किसानों को टैक्स भी देना होता है। पंजाब की मंडियों में किसानों को कुल 8.5% टैक्स देना पड़ता है जिसमें 3 प्रतिशत मार्केट चार्ज, 3 प्रतिशत रूरल डेवलपमेन्ट चार्ज तथा 2.5 प्रतिशत बिचौलियों को देना होता है।
●पंजाब में बिचौलियों की ऊँची पहुँच
आढ़तिया समुदाय ने प्रस्ताव पास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इन तीनों बिलों को वापस लेने की मांग की है। गौरतलब है कि पंजाब में आढ़त व्यापारी और कमीशन एजेंट्स की बेहद गहरी पैठ है। इनका खेती-किसानी और राजनीति में समान रूप से प्रभाव है। माना जा रहा है कि अकाली दल ने भी इस समुदाय के विरोध के कारण ही बिल के खिलाफ सुर तेज किए हैं। इसी क्रम में केंद्र सरकार में मंत्री रहीं हरसिमरत कौर बादल ने भी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है।
आलेख -आराधना शुक्ला