*राजनीतिक बहनों एवं दीदियों पर भारी पड़ सकता है प्रियंका का जलवा ? कांग्रेस ने चलाया लोकसभा चुनाव से पहले ब्रह्मास्त्र!भीषण होगा चुनावी महाभारत! भाजपा सहित गैर कांग्रेसी दल हुए सतर्क पढ़िए………….. “द इंडियन ओपिनियन” पर कृष्ण कुमार द्विवेदी उर्फ “राजू भैया” का लेख*


*कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)* वरिष्ठ पत्रकार

*कृष्ण कुमार द्विवेदी( राजू भैया)*
लखनऊ। कांग्रेस ने डंका बजाते हुए लोकसभा चुनाव से पहले अपना ब्रम्हास्त्र चला दिया । कांग्रेस अध्यक्ष भाई राहुल गांधी की अब तक पर्दे के पीछे से मदद करने वाली प्रियंका गांधी अब खुल कर सियासी पारी खेलेंगी। कांग्रेस के इस दांव से भाजपा सहित अन्य गैर कांग्रेसी दल भी सतर्क हो गये हैं। जबकि लोकसभा चुनाव अब भीषण होगा इसके आसार बढ़ चलें है!

देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की पोती एवं स्वर्गीय राजीव गांधी की पुत्री तथा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बन गई है ।आज जैसे ही खबर आम हुई देश के राजनीतिक घरानो में इसे लेकर चर्चा का बाजार गरम हो गया ।हर तरफ सियासी दरबार में प्रियंका के मैदान में उतरने से होने वाले नफे और नुकसान पर चर्चा प्रारंभ गई। जहां तक सवाल है कांग्रेस का तो नए घटना क्रम से कांग्रेस परिवार उत्साह व उत्सव के सागर में डूब गया ।वहीं दूसरी ओर भाजपा सहित अन्य विपक्षी दल इसे लेकर सतर्क हो गए। यूपीए की सर्वेसर्वा रही सोनिया गांधी की रणनीतिकार पुत्री प्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए कितनी सफल होंगी, वे राहुल गांधी के लिए अब कितनी बड़ी मददगार साबित होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा ।लेकिन यह जरूर है कि प्रियंका ने सियासी मैदान उतरकर देश के कई बडे सियासतदानों के चेहरे पर चिंता की लकीरे खींच दी है। यह अलग बात है कि गैर कांग्रेसी दल इस पर गंभीर टिप्पणी न कर रहे हो लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर ऐसे सभी दलो में सतर्कता जरूर बढ़ चली है।

कांग्रेस ने प्रियंका को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उन्हें उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके की जिम्मेदारी दी गई हैं ।यह कोई साधारण बात नहीं है बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत ऐसा किया गया है ।जिस तरह से सपा व बसपा ने कांग्रेस को अछूत मानकर गठबंधन से उसे यूपी में अलग रखा। कांग्रेस ने उसे कडुवे घूट की तरह पिया और अपनी अगली रणनीति पर काम करना प्रारम्भ कर दिया। इसी रणनीति के तहत प्रियंका को सियासी मैदान में उतारा गया। उधर दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य राज सिंधिया को भी उत्तर प्रदेश में पश्चिमी इलाके की जिम्मेदारी सौपी गई। अर्थात युवाओ को कांग्रेस से जोड़ने एवं अमेठी तथा रायबरेली सहित पूरे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए यह दांव खेला गया?
दरअसल अभी हाल ही के विधानसभा चुनाव में 3 राज्यों में सत्ता वापसी के बाद कांग्रेस इस सत्य को समझ गई है कि जब तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ताकत में नहीं आती तब तक उसके लिए दिल्ली दूर ही रहेगी। क्योंकि कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश से होकर ही दिल्ली का रास्ता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक जाता है ।प्रियंका गांधी में कांग्रेस एवं देश के लोग उनकी दादी स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी की छवि को देखते हैं। यह भी माना जाता है कि प्रियंका ने समय-समय पर अपने भाई राहुल गांधी का खूब मार्ग दर्शन भी किया है ।ऐसे में जब वह खुलकर सियासी पलटवार गैर कांग्रेसी दलो पर करेंगी तो यह भाई बहन की जोड़ी भाजपा के विरोध में सपा एवं बसपा तथा स्वयं भाजपा भी पर भारी पड़ सकती है? उधर दूसरी और भाजपा एवम कांग्रेस विरोधी दल भले ही प्रियंका आगमन को बहुत हल्के में लेना दर्शा रहे हो, लेकिन अंदर ही अंदर इन सभी दलों में कही न कही खलबली मच गयी है? चर्चा यह भी है कि कांग्रेस को इस चुनाव में प्रियंका को बचा के रखना चाहिए था, क्योंकि अभी भी कहीं न कहीं पूरे देश में मोदी फैक्टर चल रहा है भले ही तीन राज्यों में कमजोर पड़ा हो। यहां यह भी है कि अब प्रियंका पर उनके पति रॉबर्ट वढ़ेरा को ले कर राजनैतिक हमले तेज होंगे। लेकिन राजनीत के मैदान की कई बहनों एवं दीदियों के आभामंडल पर कांग्रेस की प्रियंका दीदी का जलवा भी आने वाले समय में भारी पड़ सकता है। नवनियुक्त कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव ने जिस समय राजनीति की पिच पर अपने कदम रखे हैं वह समय कांगेस के लिए अत्यधिक मुसीबतों भरा समय चल रहा है। ऐसे में यदि प्रियंका गांधी का आगमन कांग्रेस को संजीवनी देने में असफल रहा तो यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत बड़ी क्षति भी होगी । कयास यह भी है कि जिस तरह से कांग्रेस ने सपा एवं बसपा के द्वारा गठबंधन से अपने को अलग किए जाने के बाद पूरे प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने की बात कही थी उसमें कहीं न कहीं प्रियंका रणनीति का हुनर जरुर शामिल था । क्योंकि कांग्रेश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो गठबंधन के बिल्कुल खिलाफ है। जब भी कांग्रेस ने किसी क्षेत्रीय दल से गठबंधन किया है तब उसे स्वयं घाटा ही सहना पड़ा है और उसके अपने समर्पित कार्यकर्ता उत्पीड़ित ही हुए हैं ।फिलहाल यह तो सत्य है कि अब आगामी लोकसभा चुनाव का महाभारत भीषण होगा। इसके आसार बिल्कुल सामने नजर आ रहे है।