*हम अलग से मुस्लिम आरक्षण विरोधी हैं :वसीम राईन*



हम अल्पसंख्यक नहीं बल्कि बहुसंख्यक हैं। हम मुसलमानों में 85% पसमांदा मुसलमान हैं।
संवैधानिक (एससी) आदेश, 1950 के सब-सेक्शन (तीन) को खत्म करना जिससे दलित मुस्लिम और दलित ईसाइयों को एससी लिस्ट में जगह मिल सके और धार्मिक आधार पर भारतीय संविधान के आर्टिकल 341 के तहत उनसे भेदभाव समाप्त हो।सभी राजनीतिक दलों में टिकट वितरण में पसमांदा मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुसार मुसलमानों का 85% सम्यक भागीदारी। उक्त विचार ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने महाज़ के जिला महामंत्री नफीस राईन अध्यक्षता में सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा की की हम अलग से मुस्लिम आरक्षण विरोधी हैं इसके के बरक्स  राज्य और केन्द्र के स्तर पर ओबीसी कोटे के अन्दर अत्यंत पिछड़े (एमबीसी) को अलग से आरक्षण मिलना जिससे हिन्दू और मुस्लिम पिछड़ी जातियां एक साथ एक ही सूची में जगह पा सके। यह ओबीसी मुसलमानों को अलग से साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण देने से ज्यादा न्यायोचित और गैर-साम्प्रदायिक मांग है। हमारे पास उन आंकड़ों का अभाव है जो यह बता सके कि बिहार में अत्यंत पिछड़ा सूची में आरक्षण मिलने से हमें क्या लाभ मिला है। किन्तु हम अपने अनुभव से जानते हैं कि हमने काफी कुछ हासिल किया है और हमारे ऊपर साम्प्रदायिकता (मुस्लिम तुष्टीकरण) का आरोप भी नहीं लगा है। आज बिहार सरकार में सभी ग्रेडों में पसमांदा की अच्छी नुमाईंदगी है। इसके अलावा शिक्षण संस्थानों ख़ास कर सरकारी आईटीआई, पोलिटेक्निक, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज में भी एमबीसी आरक्षण का लाभ पसमांदा लड़के-लड़कियों को मिला है। कारीगर, दस्तकार, खेतिहर मजदूर और छोटे और कुटीर उद्योगों को सब्सिडी, लोन, तकनीकी सहायता और विपणन में सरकारी सहायता मिलना।
पसमांदा महिलाओं की खास समस्यायों को लेकर प्रगतिशील नीतियों पर निर्णय और क्रियान्वयन।
पसमांदा मुसलमान न केवल सत्ता प्रतिष्ठानों में भागीदारी से वंचित हैं बल्कि अपनी जाति और इससे जुड़े पेशे और अपनी ख़ास सांस्कृतिक संवेदनाओ के चलते रोज ही अपमानित होते हैं और गाली-गलौज और हंसी के पात्र बनाये जाते हैं. लोकतांत्रिक राजनीति के तहत हिस्सेदारी पाने की पसमांदा की सभी कोशिशें साम्प्रदायिक हिंसा और आतंकवाद के इर्द गिर्द सवर्ण/अशराफों द्वारा चलाये जानी वाली बहस से पैदा होने वाली ‘भयादोहन की राजनीति’ की भेंट चढ़ जाती है. गैर भागीदारी और अपमान की कभी न खत्म होने वाले सिलसिले के खिलाफ परिवर्तन के मुद्दे को लेकर पसमांदा आन्दोलन का जन्म हुआ है। इस मौके पर मुख्य रूप से मलिक समाज के जिलाध्यक्ष इरसाद मलिक,ख़्वाजा अंसारी, महमूद चौधरी,जहरुद्दीन अंसारी, मुख्तार मंसूरी,ईस्माइल राईन, इमरान राईन, सईद राईन, सिराज अहमद, अशफ़ाक़ राईन, कमाल अंसारी आदि लोग मौजूद रहे।