*आरक्षण के मुद्दे पर अंबेडकर महासभा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए साथ ..अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली स्थित जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में आजादी के बाद से अब तक दलितों और पिछड़ों के लिए क्यों बंद रखे गए हैं दरवाजे .. जब बी एच यू में लागू है आरक्षण तो ए एम यू में में क्यों नहीं.. आरक्षण न देना बनेगा बड़ा राजनैतिक मुद्दा .. होगा आंदोलन… इंडियन ओपिनियन पर आदित्य यादव की खास रिपोर्ट*.


बहुत से लोगों के लिए यह वाकई में हैरान करने वाली बात है भारी भरकम सरकारी बजट से संचालित सरकारी विश्वविद्यालयों में भी सांप्रदायिक राजनीति इस कदर हावी है कि .. देश के बहुत से नियम कानून लागू नहीं हो पा रहे .अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आजादी के बाद से आज तक आरक्षण का नियम लागू नहीं किया जा सका.. यही हाल दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय का है मुस्लिम संस्थान की पहचान रखने वाले इन विश्वविद्यालयों मैं वोट बैंक की राजनीति के चलते आरक्षण का नियम आजादी के बाद से अब तक कोई भी सरकार लागू नहीं करा पाई ..पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह बयान दिया था कि यदि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में और देश के अन्य शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया जा रहा है तो.. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में भी दलितों और पिछड़ों को देश के कानूनों के मुताबिक समुचित आरक्षण मिलना चाहिए.. योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद इस विषय पर चर्चाएं तेज हो गई हैं और कई दलित संगठनों ने भी इन संस्थानों में आरक्षण की मांग पर आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है ..अंबेडकर महासभा ने सरकार से मांग की है कि इन संस्थानों में भी 50 फ़ीसदी आरक्षण का नियम उसी तरह लागू किया जाए जिस तरह देश के अन्य संस्थानों में लागू है ..महासभा ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि आजादी के बाद से आज तक सरकारों ने इस संस्थानों में आरक्षण लागू नहीं किया .जिसके चलते आरक्षित वर्गों से जुड़े लाखों को दलित और पिछड़े छात्र इन संस्थानों में उच्च शिक्षा से वंचित रह गए और उनका आर्थिक और सामाजिक नुकसान हुआ.. ..
इस मुद्दे पर मुस्लिम नेताओं के विरोध के चलते.. देश में कांग्रेस की अब तक की सरकारों ने साथ ही तीसरे मोर्चे और भाजपा की गठबंधन सरकारों ने .. कोई ठोस कदम उठाने की हिम्मत नहीं की है.. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का कार्यकाल केवल 1 वर्ष का बचा है.. ऐसे में एक बार फिर यह मुद्दा गरम हो रहा है.. अब यह देखने वाली बात होगी कि इन संस्थानों में आरक्षण लागू करवा कर नरेंद्र मोदी सरकार दलितों और पिछड़ों के प्रति अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को साबित कर पाती है ..या फिर यह मुद्दा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक राजनैतिक शिगूफा ही बनकर रह जाएगा.. फिलहाल इस मुद्दे को 2019 के लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है यह भी हो सकता है कि भाजपा राजनीतिक लाभ के लिए इस मामले को गर्म कर रही हो क्योंकि यह मामला राजनीतिक चर्चाओं से नहीं केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देश से हल होगा..