कारगिल युद्ध के 21 वर्ष बाद रक्षा नीति पर सवाल? लद्दाख के गलवान में भी हमने वैसा ही दर्द झेला!

आलेख – संजय शुक्ला,

आज दिनांक 26 जुलाई को हम सभी देशवासी कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं कारगिल युद्ध का दंश 20वीं सदी के अंतिम वर्ष में हमारे राष्ट्र को पड़ोसी पाकिस्तान की वजह से झेलना पड़ा।
21 वर्ष बीतने के बाद भी पाकिस्तान के चाल एवं चरित्र में कोई बदलाव नहीं आया यह देश पहले भी विरोधी था और आज भी चाइना की गोद में बैठ कर वही कुटिल कार्य  अनवरत रूप से कर रहा है।
वह तो भारतीय सेना का पराक्रम था जो कारगिल जैसे युद्ध में अपना कौशल दिखा कर भारत की सरहद की रक्षा की।

कारगिल युद्ध में भारत माता के कई सपूत शहीद हुए जिनको याद कर आज  21 वर्ष बाद भी आंखें नम हो जाती हैं, यह भारत भूमि इन वीर सपूतों की युगो युगो अंतर तक सदैव ऋणी रहेगी
कारगिल युद्ध से हमारी सेना का पराक्रम और भी निखर कर सामने आया यह युद्ध मई माह से शुरू हुआ एवं जुलाई तक चला इस युद्ध में दुश्मन पाकिस्तान की सेना पहाड़ी पर ऊंचाई से हमला कर रही थी जबकि हमारे जवान नीचे रहकर उसका जवाब दे रहे थे जोकि सबसे कठिन परिस्थिति मानी जाती है लेकिन भारतीय सेना ने दुनिया को दिखा दिया की किसी भी कठिन परिस्थिति से निपटने में भारतीय सेना सक्षम है और दुनिया ने हमारी सेना के पराक्रम का लोहा माना।

लेकिन कारगिल युद्ध में भारत की प्रतिरक्षा नीति और सरकारों की गंभीरता पर एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया था, हमने पाकिस्तान से जितने भी युद्ध लड़े अपनी ही भूमि पर लड़े चीन से भी हमने जितने युद्ध लड़े अपनी ही भूमि पर लड़े l दुश्मन पहले हमारी धरती में घुस आया हमारे क्षेत्र में घुस आया वहां उसने मजबूत सैनिक अड्डे बना लिए और उसके बाद उसे बाहर करने में हमने अपने सैनिकों का बड़ा बलिदान चुकाया, यानी हमारी रक्षा नीति की कमजोरी की वजह से हमारी सीमा के अंदर घुस चुके दुश्मनों को अपनी ही धरती से बाहर करने में हमें अपने सैनिकों का बलिदान देना पड़ा।

यह स्पष्ट है कि भारतीय सीमाओं की समुचित सुरक्षा के लिए आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमारी सरकारों ने गंभीरता से काम नहीं किया कारगिल युद्ध में बिल्कुल वही हालात थे जिस तरह के हालात चीन ने लद्दाख के गलवान क्षेत्र में बनाए।

करगिल में भीषण सर्दियों में पाकिस्तानी फौजी कारगिल की  पहाड़ियों में ऊंचाई पर अपने मजबूत सैनिक अड्डे बनाकर छिपे हुए थे ,इसी तरह गलवान की पहाड़ियों में चीन ने अपने सैनिक अड्डे बना लिए और जब तक भारतीय सेना वहां प्रतिकार करने पहुंची तब तक चीन बहुत मजबूत स्थिति में अपनी तैयारी कर चुका था।

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