कृषि कानून: 6 सालों में पहली बार विपक्ष के जाल में फंसी हुई दिख रही है मोदी सरकार!

देश में 6 साल से ज्यादा शासन करने के बाद पहली बार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार किसी मुद्दे पर सबसे ज्यादा परेशान और किंकर्तव्यविमूढ़ दिख रही है।

दरअसल सरकार का धर्मसंकट यह है कि वह खुद को किसान हितैषी बताती है किसानों ने उसे वोट भी दिया है और वह किसानों के कल्याण के लिए किसान सम्मान राशि जैसी नगद लाभ की योजनाएं भी चला रही है, लेकिन तीन कृषि संबंधी कानूनों को लेकर सरकार बुरी तरह विपक्ष के जाल में फंस चुकी है।

कृषि कानूनों का प्रारंभ से ही मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और पंजाब हरियाणा से संबंधित दलों ने विरोध किया था, तो सरकार ने तभी इसको हल्के में लिया जब उनकी सरकार के ही पंजाब से आने वाली मंत्री और शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने इस्तीफा दे दिया था।

शुरू में तो किसान संगठनों और राजनीतिक विरोधियों ने सरकार को बार-बार चेतावनी दी और छोटे स्तर पर धरना प्रदर्शन और विरोध के कार्यक्रम आयोजित किए लेकिन जब सरकार अपनी बात पर अडिग रहे तो सभी विरोधी दिल्ली में जमा हो गए पिछले करीब ढाई महीनों से दिल्ली के चारों तरफ आंदोलन का माहौल बना हुआ है।
26 जनवरी को लाल किले पर बवाल हुआ पूरी दुनिया में भारत की फजीहत हुई और अरबों की संपदा को नुकसान।

विपक्ष ने किसानों को सरकार के खिलाफ एकजुट करके ऐसा पासा फेंक दिया है जिसका सरकार के पास कोई जवाब नहीं है सरकार किसानों के ऊपर कठोर कार्रवाई करने का साहस नहीं कर सकती नहीं तो पूरे देश और पूरी दुनिया में गलत संदेश जाएगा सरकार किसानों को समझाने और मनाने के भी दर्जनों प्रयास कर चुकी है ज्यादातर प्रयास विफल ही दिखाई पड़ रहे हैं।

वहीं दूसरी तरफ सरकार ने इन कानूनों को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। बड़े आंदोलन के बावजूद अभी तक सरकार ने ऐसा संदेश नहीं दिया है कि वह कानूनों को वापस ले लेगी हां सरकार ने अगले कुछ समय तक इन्हें लागू न करने पर सहमति जताई है और ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा है लेकिन किसान न तो सरकार की सुनने को तैयार हैं ना तो सुप्रीम कोर्ट की और जिस तरह से पूरा विपक्ष किसानों को हर तरह का समर्थन उपलब्ध करा रहा है कनाडा के सिख समाज भी किसानों को हर तरह का समर्थन मिल रहा है कनाडा के नेताओं ने भी कथित किसान आंदोलन इसलिए समर्थन दिया है क्योंकि सिखों की संवेदनाएं इस आंदोलन से जुड़ गई हैं और कनाडा में एक बड़ा वोट बैंक है।

मिया खलीफा और रेहाना जैसे अश्लीलता के बाजार के मशहूर कलाकारों ने इस आंदोलन को समर्थन देकर पूरी दुनिया में चर्चा फैला दी है कुल मिलाकर सरकार पूरी तरह से गिरी हुई लग रही है कानून वापस लेने में भी उसे पराजय दिख रही है और किसानों पर कठोर कार्रवाई करने में भी उसकी और फजीहत होगी।

वही राकेश टिकैत जो कि पहले भी लोकदल जैसी विपक्षी पार्टियों से चुनाव लड़ चुके हैं जिनका झुकाव भाजपा विरोधी दलों की ओर शुरू से रहा है उनको मनाना बीजेपी सरकार के लिए आसान नहीं हो रहा इस आंदोलन का नेतृत्व अब पंजाब के किसान नेताओं की बजाय टिकैत के हाथों में लगभग चला ही गया है हर टीवी और अखबार में टिकैत की ही फोटो दिखाई दे रही है उन्हें भी भारत की राजनीति में चर्चित होने का इससे बड़ा अवसर नहीं दिखाई पड़ रहा है इसलिए यह उम्मीद है कि समस्या और गंभीर होगी।

रिपोर्ट – दीपक मिश्रा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *