कोविड उपचार के लिए बदलते प्रोटोकॉल से हैरान मरीज़ और तीमारदार।

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी, “हाथी और छः अंधे व्यक्ति”। कहानी कुछ इस तरह से थी-

बहुत समय पहले की बात है , किसी गावं में 6 अंधे आदमी रहते थे. एक दिन गाँव वालों ने उन्हें बताया , ” अरे , आज गावँ में हाथी आया है.” उन्होंने आज तक बस हाथियों के बारे में सुना था पर कभी छू कर महसूस नहीं किया था. उन्होंने ने निश्चय किया, ” भले ही हम हाथी को देख नहीं सकते , पर आज हम सब चल कर उसे महसूस तो कर सकते हैं ना?” और फिर वो सब उस जगह की तरफ बढ़ चले जहाँ हाथी आया हुआ था।

सभी ने हाथी को छूना शुरू किया।

मैं समझ गया, हाथी एक खम्भे की तरह होता है”, पहले व्यक्ति ने हाथी का पैर छूते हुए कहा।

“अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है.” दूसरे व्यक्ति ने पूँछ पकड़ते हुए कहा।

“मैं बताता हूँ, ये तो पेड़ के तने की तरह है.”, तीसरे व्यक्ति ने सूंढ़ पकड़ते हुए कहा।

” तुम लोग क्या बात कर रहे हो, हाथी एक बड़े हाथ के पंखे की तरह होता है.” , चौथे व्यक्ति ने कान छूते हुए सभी को समझाया।

“नहीं-नहीं , ये तो एक दीवार की तरह है.”, पांचवे व्यक्ति ने पेट पर हाथ रखते हुए कहा।

” ऐसा नहीं है , हाथी तो एक कठोर नली की तरह होता है.”, छठे व्यक्ति ने अपनी बात रखी।

ऐसा ही कुछ हाल रहा पिछले लगभग सवा साल में कोविड 19 के इलाज के प्रोटोकॉल का । समय के साथ ये प्रोटोकॉल भी बदलते गए ।स्वाभाविक ही था ऐसा होना क्योंकि वायरस भी दिन प्रतिदिन अपना स्वरूप बदल रहा था ।

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन आँधी की तरह आई और चली गयी । इसकी आपूर्ति को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को दबे शब्दों में धमकी तक दे डाली थी । बाद में कुछ अध्ययनों में पता चला कि यह दवा कारगर नहीं है और हृदय को प्रभावित करती है ।

8-10 महीने तक चिकित्सकों ने जम कर लोगों को आइवरमैकटिन टेबलेट खिलाई। अंत में उसे भी मना किया गया। उपरोक्त दोनों दवाओं को तो प्रिवेंटिव मेडिसिन के तौर पर निःशुल्क वितरित तक किया गया ।

एंटीबायोटिक्स पर प्रारंभ से ही विवाद रहा कि बैक्टीरिया को मारने वाली दवा का वायरस के इलाज में क्या काम?

रेमडेसीवीर के विषय में चिकित्सकों से लेकर सरकार तक को बार-बार कहना पड़ा कि यह जीवन रक्षक दवा बिलकुल भी नहीं है।

अब लगभग 14-15 महीने के बाद प्लाज्मा थैरेपी को निरर्थक बताया जा रहा है। सिर्फ इस थैरेपी को निरर्थक ही नहीं बताया गया अपितु यह शक भी ज़ाहिर किया गया कि वायरस के म्यूटेशन के कारकों में यह भी एक कारक हो सकता है।

अब स्टेरॉइड्स और एन्टीकोगूलेंट को अंतिम इलाज माना जा रहा है । डी आर डी ओ द्वारा विकसित नई दवा को आशा की एक नई किरण माना जा रहा है । कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ समय बाद इन दवाओं को भी कोविड उपचार के प्रोटोकॉल से हटा दिया जाए।

कुल मिला-जुला कर करोड़ों लोगों पर ये प्रयोग हुए, लाखों जानें चली गईं और किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा ,कहते भी तो क्या सभी तो अपनी और अपनों की जान बचाने में व्यस्त थे । क्या ये सशक्त फार्मा लॉबी की कोई साज़िश तो नहीं है ? यह कोई गुप्त बात नहीं है कि इस आपदा में फार्मा कम्पनियों ने बेइन्तहा दौलत कमाई है ।

हमारे डॉक्टर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ अपनी जान हथेली पर लेकर बीमारों का इलाज कर रहे हैं और न जाने कितनों ने इस प्रयास में अपनी जान गवां दी है । उन सभी को मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। सभी डॉक्टर्स देश और विदेश के शीर्ष चिकित्सा संस्थानों , संगठनों और नीति निर्धारकों द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुरूप ही संक्रमितों का इलाज कर रहे हैं। इसलिए बहुत ज़रूरी हो जाता है कि ये सभी अत्याधिक सावधानी के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन करें ताकि देश भर के डॉक्टर मरीजों का सही दिशा में इलाज कर सकें ।

कल ब्लैक फंगस के संक्रमण बढ़ने के कुछ कारण बताए गए हैं । परन्तु इस फंगस को फैलाने वाले मोल्ड्स नए नहीं है और न ही अनियंत्रित मधुमेह और स्टेरॉइड्स का उपयोग । फिर ऐसा क्या हुआ कि ब्लैक फंगस के केस अचानक बढ़ने लगे? कुछ स्रोत औद्योगिक ऑक्सिजन को मेडिकल ऑक्सीजन की जगह और ऑक्सिजन फ्लो मीटर में डिसटिल वाटर की जगह अशुद्ध पानी के इस्तेमाल को इसका कारण मान रहे हैं । कारण कुछ भी हों हज़ारों इंसान आज एक बार फिर इस नई महामारी से अपने जीवन की जंग लड़ रहे हैं । एक बार फिर इस बीमारी के इलाज के लिए आवश्यक दवाओं की बाज़ार में किल्लत है।

देश अभी भी कॅरोना की त्रासदी से पूरी तरह बाहर निकला नहीं है और तीसरी, चौथी संक्रमण की लहरों के आने का खतरा हम सब के सर पर मंडरा रहा है । लाखों ने अपनों को खोया है बहुत मुश्किल होगा उनके लिए इस सच्चाई को मानना कि इस देश का चिकित्सा तंत्र उनके अपनों की जान की रक्षा नहीं कर पाया ।

एक बार यह तूफान थम जाये तो हर नागरिक इस सवाल का जवाब ज़रूर चाहेगा कि , ” चूक कहाँ हुई*? और कैसे इस तरह के महामारी संक्रमण से भविष्य में नागरिकों की जान की रक्षा की जाएगी?

आलेख- विकास चन्द्र अग्रवाल

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