क्यों मनाते हैं ? कारगिल विजय दिवस जानिए “द इंडियन ओपिनियन” पर पाकिस्तानी पत्रकार ने किस तरह किया था खुलासा

आज यानि 26 जुलाई को कारगिल युद्ध में भारत की विजय के 20 साल पूरे हो गए हैं. सन् 1998 की सर्दियों में कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कुछ पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने कब्‍जा कर लिया था. जब भारतीय सेना को साल 1999 में गर्मियों की शुरुआत में इस बात का पता चला तो सेना ने उनके खिलाफ ‘ऑपरेशन विजय’ अभियान शुरू किया. करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ी गई. आठ मई को शुरू हुआ सैन्‍य ऑपरेशन 26 जुलाई को खत्म हुआ था. इस सैन्‍य कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए जबकि करीब 1363 घायल हुए थे. 

बताया जाता है कि पाकिस्तान ने कारगिल पर कब्जा करने की साजिश बहुत पहले से रच रहा था. पाकिस्तान इस प्लान को 1984 में ही लागू करना चाहता था लेकिन उसने 1999 में कर पाया. हालांकि हमारे देश की शूरवीरों ने पाकिस्तान के इस नापाक मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया और पाकिस्तान को खदेड़ कर बाहर कर दिया.

कारिगल युद्ध पर बात करते हुए पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार नजम सेठी ने पाक मीडिया को एक इंटरव्यू में बताया कि कारगिल पर हिंदुस्तान में कई तरह की किताबें लिखी गई हैं लेकिन पाकिस्तान में काफी कम किताब लिखी गई हैं.इसके आगे उन्होंने बताया कि सन् 1984 में जब पाकिस्तान में जिला उल हक का शासन था तो भारत ने सियाचिन की पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था. लेकिन जिया उल हक ने देश में इस बात को नहीं बताया क्योंकि उन्हें लगता था कि ऐसे में उनके खिलाफ देश में गुस्सा उबलेगा. जिसके बाद उनके DGMO ने जिया उल हक को एक प्लान बताया और कहा कि हम सियाचिन वापस ले सकते हैं.

DGMO के मुताबिक, अगर हम सियाचिन वापस लेते हैं तो उसमें दिक्कत नहीं होगी क्योंकि जिस तरह हिंदुस्तान ने सर्दियों में कब्जा किया, हम भी अगली सर्दी में ऐसा कर सकते हैं. जिया उल हक ने पूछा कि क्या भारत पलटवार नहीं करेगा. इसके बाद DGMO ने समझाया कि हम सियाचिन में जाएंगे तो कश्मीर बॉर्डर पर फायरिंग हो सकती है ऐसे में हम वहां पर मुजाहिद्दीन को भड़का सकते हैं. लेकिन जिया उल हक को ये प्लान पसंद नहीं आया और मामला टल गया.

पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी की के अनुसार, अगर 1999 की बात करें तब पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ आर्मी चीफ थे और उनका एक ग्रुप था जिस ‘गैंग ऑफ फॉर’. बताया जाता है कि उसमें परवेज मुशर्रफ के अलावा जनरल अजीज (कश्मीर इलाके के हेड), जनरल महमूद और ब्रिगेडियर जावेद हसन शामिल थे.

नजम सेठी के मुताबिक, इन चार लोगों ने प्लान तब बनाया जब 1998 में नवाज शरीफ-अटल बिहारी वाजपेयी बस सर्विस की शुरुआत करने वाले थे. लेकिन परवेज मुशर्रफ को ये मंजूर नहीं था तब गैंग ऑफ फॉर ने अपने प्लान पर आगे बढ़ने का तय किया.

पाक पत्रकार नजम सेठी ने ये भी बताया कि अक्टूबर 1998 में इन्होंने प्लान को मंजूरी दी, जनवरी 1999 में 200 लोगों को ट्रेनिंग देकर ऊपर भेजने को कहा गया. पहले टारगेट था कि भारत के 10 पोस्ट कब्जाएंग लेकिन ऊपर गए तो पूरा इलाका खाली था और बाद में और ज्यादा लोगों को बुलाया गया. नजम सेठी के मुताबिक, भारत को मई में शक हुआ था और बाद में उन्होंने भी अटैक किया.

बताया जाता है कि इस लड़ाई में करीब तीन हजार पाकिस्तानी सैनिक मारे गए. हालांकि इस जंग को लेकर पाकिस्तान का कहना है कि उसके करीब 357 सैनिक ही मारे गए थे.इस जंग में करीब 11 मई को भारतीय वायुसेना भी शामिल हो गई थी लेकिन उसने कभी एलओसी पार नहीं की. वायुसेना का लड़ाकू विमान मिराज, मिग- 21, मिग- 27 और कई लड़ाकू हेलीकॉप्टर ने पाकिस्तानी घुसपैठियों की कमर तोड़ दी थी.

भारत ने यह लड़ाई करीब 16 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ी. तकरीबन दो महीने तक चला यह जंग भारतीय सेना के साहस और ताकत का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर भारतीय को गर्व है.