चीनी App पर भारत की स्ट्राइक, लेकिन मोबाइल बाजार पर अब भी है दुश्मन चीन का कब्ज़ा।

एक ओर जहां भारत सरकार द्वारा लगातार तीसरी बार चीनी App पर रोक लगाई है, जिसमे पहली बार 47 पर, दूसरी बार 59 पर और इस बार 118 app, बन्द करके चीन पर व्यापारिक सर्जिकल अटैक का दौर जारी रखा है और इसकी वजह से चीन को करोड़ों डालर का नुकसान जरूर होगा।

लेकिन एक दुखद पहलू यह है कि आज भी हर रोज भारत में चीन के बने मोबाइल फोन और मोबाइल एसेसरीज भारी मात्रा में बेचे रहे हैं। लगभग 70 फ़ीसदी मोबाइल और मोबाइल एसेसरीज के बाजार पर चीन का अभी भी कब्जा है।

सिर्फ चीन की चार मोबाइल कम्पनियों ने भारत के कुल मोबाइल बाजार के लगभग 69% ग्राहकों को अपनी और आकर्षित कर रखा है जिसमे मुख्यत: शयोमी मोबाइल भारत देश मे एक नंबर पर अपना कारोबार करती है जिसका लगभग एक चौथाई बाजार पर कब्जा है जो लगभग 30% है वहीं वीवो मोबाइल दूसरे नंबर पर आती है जिसकी हिस्सेदारी करीब 16% है ओप्पो मोबाइल तीसरे नंबर की चाइनीज कंपनी है जिसकी बाजार लगभग 12% पकड़ है रियल मी मोबाइल कंपनी चौथे नंबर पर है जिसकी बाजार में लगभग 11% की हिस्सेदारी है।

भारत मे निर्मित लावा और माइक्रोमैक्स जैसी भारतीय कंपनियों की महज 1% हिस्सेदारी है अगर ये कंपनियां vocal for local मूवमेंट का फायदा उठाती है तो बाजार में इनकी फिर वापसी हो सकती है।

सन 2018 तक भारतीय मोबाइल कंपनियों की मार्किट में अच्छी पकड़ थी लेकिन भारत सरकार कीे लचर आयात नीति और चीन की सस्ती टेक्नोलॉजी और आकर्षक डिजाइन की विदेशी चकाचौंध में भारतीय ग्राहक खासतौर पर युवा डूब गया, और इन कंपनियों को अपने ही देश के बाजार में अपनी हिस्सेदारी खोनी पड़ी।

सूत्रों द्वारा पता चला है कि मैक्रोमैक्स और लावा जैसी कंपनी जल्दी ही भारतीय ग्रहको की पसंद के हिसाब से स्मार्ट फ़ोन, और फीचर फ़ोन की लंबी रेंज लानी वाली है भारतीय बाजार में फिर से जहां बनाने के लिए भारत सरकार से मदद की जरूरत पड़ेगी। भारत सरकार को चीन से आने वाली सभी वस्तुओं पर आयात शुल्क कम से कम 4 गुना बढ़ाने की जरूरत है जिससे भारतीय कंपनियां चीन की प्रतिस्पर्धा में खड़ी हो सके।

अगर चाइनीज़ मोबाइल कंपनियों का पूरी तरह बहिष्कार हो जाता है तो इन भारतीय कंपनियों को तो फायदा होगा ही, साथ ही साथ माननीय प्रधानमंत्री जी के vocal for local को भी बल मिलेगा।

एक ओर जहां भारत का आम नागरिक चीनी समान के बहिष्कार की बात करता है, वहीं भारतीय बाजार में चीन का मकड़जाल इतना मजबूत है कि ग्राहक उसमें उलझ ही जाता है और ना चाहते हुए भी उसकी पसंद  चीनी वस्तुएं बनी हुई है।

रिपोर्ट – रविंनन खजांची/मनीष निगम।

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