“छपाक”का विरोध बस मूर्खता है,यह “अवसरवादी”दीपिका पादुकोण की नहीं “संघर्षवीर” लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी है।

इंटरनेट पर कुछ लोगों ने एक जंग छेड़ दी है शिक्षित समाज में मतभेद हमेशा से रहे हैं । विषयों पर मतभेद होना और दुश्मनी होने में फर्क है लेकिन “मूर्खों”ने अब मतभेद को दुश्मनी में बदल दिया है ।
अरे भाई! मतभेद होने का मतलब यह है कि किसी विषय पर आप अलग सोचते हैं दूसरा अलग सोचता है और अपनी सोच दूसरे पर थोपना दुनिया में कहीं भी सही नहीं माना जाता । हां ,आप दूसरे को शालीनता के साथ अपने तर्कों से समझाने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन गुमराह करके धमका कर और “गरिया” कर किसी को अपने विचारों का समर्थक नहीं बनाया जा सकता ।
दुर्भाग्य से हमारे देश में पिछले कुछ दशकों में ऐसी ही “वैचारिक गुंडागर्दी”की प्रवृति बढ़ती जा रही है लोग अपने ही विचारों को सही मानते हैं और दूसरे के विचारों को जरा भी स्थान नहीं देना चाह रहे हैं l

जिस दिन फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण दिल्ली में जवाहरलाल लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र गुट के कथित आंदोलन को समर्थन देने पहुंची, उसी दिन से देश के एक वर्ग में दीपिका पादुकोण ही नहीं बल्कि उनकी चर्चित नई फिल्म छपाक को लेकर भी दृष्टिकोण अचानक ही बदल गया। समाज में यह संदेश फैलाया गया कि दीपिका देशद्रोहियों का समर्थन करने गई थी उन लोगों का समर्थन करने गई थी जो छात्र आंदोलन की आड़ में देश विरोधी अभियान चलाते हैं ।

जेएनयू के छात्र गुटों में संघर्ष और कथित तौर पर नकाबपोश लोगों के हमले के बाद दीपिका पादुकोण वहां गई थीl दीपिका के सामने वहां भारतीय जनता पार्टी और हिंदू संगठनों के खिलाफ नारेबाजी हुई थी इसी बात से समाज में यह संदेश गया कि दीपिका पादुकोण हिंदू विरोधियों का पक्ष ले रही है इसीलिए इंटरनेट और सोशल मीडिया पर एक अभियान चलाया गया “बायकॉट छपाक”!
यह कहा गया कि छपाक का बायकॉट करके दीपिका पादुकोण को उस गलती की सजा दी जाए जो उन्होंने जेएनयू जाकर की है,हिंदू विरोधियों का समर्थन करके की है । खैर आप दीपिका के समर्थक हैं या विरोधी यह तो आप ही जाने लेकिन यह तो जान लीजिए की छपाक नाम की यह फिल्म दीपिका पादुकोण के संघर्ष पर नहीं है, फिल्म है एसिड सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के संघर्ष पर जिसे कथित तौर पर एक युवक ने जबरदस्ती विवाह प्रस्ताव ना मानने पर तेजाब से जला दिया था।

इसके बावजूद पीड़ित लक्ष्मी हिम्मत हिम्मत नहीं हारी इंसाफ के लिए संघर्ष करती रही और अपने जीवन को एक सम्मानित स्थान भी दिया । तेजाब से अपना चेहरा जलाए जाने के बावजूद लक्ष्मी अग्रवाल ने जिस तरह अपने जीवन के महान संघर्ष को आगे बढ़ाया और तमाम पीड़ितों के लिए एक उदाहरण बनने का काम किया उनके इस संघर्ष को उनकी जिजीविषा को छपाक फिल्म में पर्दे पर उतारा गया है ।

यह एक महान विषय पर बनी महान फिल्म कही जा सकती है और दीपिका पादुकोण ने बतौर अभिनेत्री इस फिल्म के संदेश को सार्थक करने में, समाज को एक प्रेरणा देने में और एसिड सर्वाइवर को एक सम्मानित अवधारणा देने में, माध्यम का काम किया है।

यह फिल्म देखकर आप दीपिका पादुकोण से ज्यादा इस विषय को सम्मान देने का काम करेंगे जो हमारे देश की उन बेटियों से जुड़ा विषय है जिन्हें तेजाब से हमला करके जलाया गया है जो कुछ घटिया मानसिकता वाले सिरफिरे लोगों की सनक का शिकार हुई है ।

आप व्यक्तिगत तौर पर दीपिका पादुकोण को कुछ भी समझो लेकिन एक संवेदनशील विषय पर बनी यह फिल्म जरूर आपका समर्थन चाहती है।  इसलिए समर्थन चाहती है कि जिनके लिए यह फिल्म बनी है उन्हें जरूर यह एहसास हो कि देश के लोग उनके लिए फिक्र मंद है।

आप दीपिका पादुकोण की आने वाली तमाम फिल्में ना देखिए प्यार मोहब्बत रोमांस और दूसरे विषयों पर बनने वाली दीपिका पादुकोण की फिल्मों का आप भले ही “बायकॉट” करें लेकिन छपाक नाम की इस फिल्म या देश हित और समाज हित के किसी भी विषय पर बनने वाली किसी भी अभिनेता या अभिनेत्री की फिल्म का जरूर सम्मान करें । संवेदनशीलता और सभ्यता के विकास के लिए अच्छी फिल्मों का जरूर समर्थन करें जिससे समाज में अच्छे विषयों पर फिल्म बनाने वाले निर्माता निर्देशकों का मनोबल न टूटे ।

रिपोर्ट – देवव्रत शर्मा