*जातियों के रहते समानता की बात करना अर्थहीन: राजनाथ *


बाराबंकी। सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत डा. अम्बेडकर दलित आन्दोलन के
प्रणेता रहे है। उनके विचार हमेशा शोषितों, पीड़ितों और दलितों के
आन्दोलनों की प्रेरक शक्ति रहे है। डा. लोहिया और डा. अम्बेडकर समकालीन
राजनेता रहे। जातिवाद का विरोध दोनों ही राजनेताओं का प्रमुख एजेंडा था।
इसके बाउजूद दोनों की वैचारिक समानताओं को खोजने का प्रयास बहुत कम हुआ।
जिस कारण सामाजिक असमानता, जातिवाद और धार्मिक उन्मादता का ग्राफ बढता
चला गया।
उक्त विचार गांधी भवन में संविधान निर्माता, भारत रत्न बाबा साहब डा.
भीमराव अम्बेडकर की 127वीं जयन्ती पर गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट द्वारा
आयोजित संगोष्ठी में समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा ने अपने विचार व्यक्त
किए। इस मौके पर डा. अम्बेडकर के चित्र पर माल्र्यापण उनके विचारों को
आत्मसात किया गया।
श्री शर्मा ने कहा कि डा. लोहिया ने जाति तोड़ो का नारा देकर अम्बेडकर के
विचारों को बल दिया। लोहिया और अम्बेडकर ने सामाजिक न्याय की राजनीति का
प्रतिनिधित्व किया। डा. अम्बेडकर ने आजादी से पूर्व भारत में सामाजिक
न्याय के आन्दोलन को जन्म दिया। वहीं डा. लोहिया ने अम्बेडकर की इस सोच
और विचार को आगे ले जाने का काम किया। यही नही उन्होने सामाजिक न्याय के
भविष्य का खांका खीचा। दोनो चिंतको का कहना था कि जातियों के रहते समानता
की बात करना अर्थहीन है। उनका मानना था कि समानता, निष्पक्षता, बन्धुत्व
और न्याय के बिना समतामूलक समाज की स्थापना असम्भव है।
इस मौके पर संगोष्ठी का संचालन पाटेश्वरी प्रसाद ने किया। संगोष्ठी में
प्रमुख रुप से जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष बृजेश दीक्षित,
समाजसेवी अशोक शुक्ल, विनय सिंह, मृत्युंजय शर्मा, हुमायूं नईम खां ने
अपने विचार व्यक्त किये। इस मौके पर रंजय शर्मा, नीरज दूबे, रवि प्रताप
सिंह, सत्यवान वर्मा, मनीष सिंह, दिनेश चन्द्र श्रीवास्तव, संतोष शुक्ला,
नदीम वारसी, शिवा शर्मा, सोनू यादव, वरुण सिंह चैहान सहित कई लोग मौजूद
रहे।