*तहजीब के शहर लखनऊ से बेहतर साबित हुआ बाराबंकी का मतदाता और प्रशासन, स्वीप में कम पैसे खर्च करके भी बढ़ाया मतदान प्रतिशत, लखनऊ में 53.94 %के मुकाबले बाराबंकी में 63% मतदाताओं ने निभाई देश के प्रति जिम्मेदारी किया मतदान l पांचवें चरण में खीरी धौराहरा के लोगों ने किया सबसे ज्यादा 64% मतदान l*



राजनीति के महासमर में लाख प्रयासों के बावजूद मतदाता अपनी भागीदारी को लेकर सुस्त बने हुए हैं।

मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए गए और करोड़ों रुपया जागरुकता गतिविधियों पर खर्च किए गए इसके बावजूद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ जिसे शरीफों का शहर कहा जाता है तहजीब का शहर कहा जाता है वहां के मतदाताओं ने खुद को गैर जिम्मेदार साबित किया और वहां के प्रशासन के प्रयासों पर भी सवालिया निशान खड़ा किया ।

पड़ोस के जिले बाराबंकी में जहां मतदान प्रतिशत 63% रहा वहीं नवाबों नेताओं अफसरों के शहर लखनऊ में मतदान प्रतिशत मात्रा 53 दशमलव 94% ही रहा हालांकि यह मतदान प्रतिशत 2014 के चुनाव की तुलना में थोड़ा सा बढ़ा है पिछली बार लखनऊ के सुस्त मतदाताओं ने 52 दशमलव 94% वोट डाले थे और इस बार मात्र 1% की वृद्धि करके नवाबों के शहर में 53 दशमलव 94% वोट डाला है ।

वहीं लखीमपुर खीरी के धौराहरा लोकसभा के लोगों ने सबसे ज्यादा मतदान कर के पांचवें चरण में नंबर एक का स्थान हासिल किया हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में धौराहरा में भी मतदान प्रतिशत गिरा है 2014 के लोकसभा चुनाव में धौराहरा के मतदाताओं ने 68.02% मतदान किया था वही इस बार उनका मतदान प्रतिशत गिर गया हालांकि पांचवें चरण में वह भी नंबर एक पर हैं धौराहरा के लोगों ने इस बार 64.00% मतदान किया है ।

कुल मिला के लखनऊ के लोगों ने जहां मतदान प्रतिशत के मामले में निराश किया वहीं धौराहरा के लोगों ने फिर भी इज्जत बचाई।

लेकिन बाराबंकी का प्रदर्शन बेहतर माना जा सकता है क्योंकि कम शिक्षा होने के बावजूद यहां के मतदाताओं ने खुद को पड़ोसी जनपद लखनऊ के मतदाताओं से ज्यादा जागरूक साबित किया ।

सबसे कम मतदान गोंडा लोकसभा में हुआ है बाहुबली नेता और माफियाओं के गोंडा में इस बार केवल 51.3 हुआ है हालांकि यह पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा सा ज्यादा है लेकिन उम्मीद से कम है।

यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि हमारे देश में लोकसभा चुनाव जैसे लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम में भी देश की लगभग 40% की जनसंख्या भागीदारी नहीं करती है यानी देश के 40% मतदाता इतने गैर जिम्मेदार हैं कि उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि उनके क्षेत्र में कौन सांसद बनेगा और देश के लिए कौन प्रधानमंत्री बनेगा।

देश की सरकार को, देश के निर्वाचन आयोग को निश्चित तौर पर इस मामले में कठोर नियम बनाकर कम से कम 90% मतदान सुनिश्चित करना ही होगा नहीं तो अयोग्य लोग देश की सबसे बड़ी पंचायत में बैठकर देश को अधूरा नेतृत्व और संदिग्ध भविष्य ही देने का काम कर पाएंगे।

द इंडियन ओपिनियन के लिए देवव्रत शर्मा की रिपोर्ट।