देशभक्त और शाकाहारी,गीता कुरान के विद्वान, फौजियों को सबसे बढ़कर देते थे सम्मान, ऐसे थे भारत के रत्न अब्दुल कलाम!

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की आज 89वीं जन्मशती है। रामेश्वरम में 15 अक्टूबर 1931 को उनका जन्म हुआ था उनकी जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी समेत कई राजनीतिज्ञों नें उन्हें याद किया। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘डॉक्टर कलाम को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि। भारत राष्ट्रीय विकास के प्रति उनके अमिट योगदान को कभी नहीं भूल सकता, चाहे वह एक वैज्ञानिक या फिर भारत के राष्ट्रपति के तौर पर रहा हो उनकी जीवन यात्रा लाखों लोगों को ताकत देती है।’

डॉ कलाम भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो किसी भी राजनीतिक पार्टी से सम्बन्ध नहीं रखते थे, वे पहले गैर राजनीतिक व्यक्ति थे जिन्होनें राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया। उनके 89वें जन्मदिवस पर कुछ प्रेणादायक कहानियां जिनसे हर व्यक्ति कुछ न कुछ सीख सकता है-

●सिर्फ दो सूटकेस लेकर पहुंचे थे राष्ट्रपति भवन
कलाम को जब राष्ट्रपति चुना गया तब उनके स्वागत के लिए भवन को खूब सजाया गया और तमाम तैयारियाँ की जानें लगी कि नए राष्ट्रपति का सामान सही ढंग से रखा जा सके, लेकिन जब वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे तब उनके हाथ में दो सूटकेस थे, जिनमें किताबें और उनके कपडे थे और जब वे रिटायर हुए थे तब इन्हीं दो सूटकेसों के साथ अपनें फेयरवेल में भी गए थे।

●अपने परिवार को राष्ट्रपति भवन में ठहराने के लिए स्वयं उठाया खर्चा
जब कलाम भारत के राष्ट्रपति थे, उनके परिवार के करीब 52 लोग दिल्ली उनसे मिलने के लिए आए और आठ दिन तक राष्ट्रपति में राष्ट्रपति भवन में रुके। कलाम ने उनके राष्ट्रपति भवन में रुकने का किराया अपनी जेब से दिया था यहां तक कि एक प्याली चाय तक का भी हिसाब रखा गया। वे लोग एक बस में अजमेर शरीफ भी गए जिसका किराया तक कलाम ने भरा था। उनके जाने के बाद कलाम ने अपने अकाउंट से तीन लाख बावन हजार का चेक काट कर राष्ट्रपति भवन कार्यालय को भेजा।

●इफ़्तार का पैसा अनाथालय को देनें का निर्णय लिया
रमजान के महीनें में हर साल राष्ट्रपति भवन में इफ़्तार पार्टी का आयोजन किया जाता रहा है लेकिन जब कलाम साहब राष्ट्रपति थे तब उन्होंने फैसला किया कि पार्टी में खर्च होनें वाला पैसा अनाथालयों को दिया जाए। कलाम के सचिव रहे पीएम नायर बताते हैं कि राष्ट्रपति भवन की ओर से इफ़्तार के लिए निर्धारित राशि से आटे, दाल, कंबल और स्वेटरों का इंतजाम किया गया और उसे 28 अनाथालय के बच्चों में बांटा गया। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती उन्होंने कहा यह सामान तो सरकार के पैसे से खरीदा गया है इसमें मेरा तो कोई योगदान है ही नहीं इसलिए उन्होंने एक लाख रूपए का चेक दिया और कहा ये बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए।

●सैम मानेक शॉ और अर्जन सिंह को दिलाया उनका हक
जब कलाम साहब का कार्यकाल खत्म होने लगा तो उन्होंने 1971 की लड़ाई के हीरो फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ से मिलने की इच्छा जताई। फरवरी 2007 में कलाम मानेक शॉ से मिले थे तभी उनको अंदाजा हो गया था कि मानेकशॉ को फील्ड मार्शल जैसे पदवी तो दे दी गई है लेकिन उनको मिलने वाले भत्ते और सुविधाएं नहीं दी गई। उन्होंने इस पर विचार किया और कुछ करने का फैसला किया। फील्ड मार्शल मानेकशॉ के साथ-साथ मार्शल अर्जन सिंह को भी सारे बकाया भत्तों का भुगतान कराया गया, उस दिन से जिस दिन से उन्हें ये पद दिया गया था।

●गीता और कुरान दोनों का अध्ययन
वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखते हुए कलाम साहब का सौहार्दयपूर्ण व्यवाहर सभी लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। डॉक्टर कलाम के प्रेस सचिव रहे एसएम खान बताते हैं, ‘वे धार्मिक मुसलमान थे और हर दिन सुबह यानी फज्र की नमाज पढ़ा करते थे। मैंने अक्सर उन्हें कुरान और गीता पढ़ते हुए भी देखा था। वह स्वामी थिरुवल्लूर के उपदेशों की किताब ‘थिरुक्कुरल’ तमिल में पढ़ा करते थे। वे पक्के शाकाहारी थे और शराब से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था पूरे देश में उन्होंने निर्देश भेज दिए थे कि वह जहां भी ठहरे उन्हें सदा शाकाहारी खाना ही परोसा जाए। उनको ‘महामहीम’ या ‘हिज एक्सीलेंसी’ कहलाना भी पसंद नहीं था।”
कलाम साहब को रूद्र वीणा बजानें का बहुत शौख था। जब भी उन्हें खाली समय मिलता था वे बजानें में लग जाते थे। उनकी इच्छा थी कि दुनिया उन्हें एक अध्यापक के तौर पर याद रखे इसको ध्यान में रखते हुए 2010 में संयुक्त राष्ट्र संघ नें 15 अक्टूबर को ‘विश्व छात्र दिवस’ मनाये जानें की घोषणा की और तब से हर साल यह मनाया जाता है।
इस वर्ष इसकी थीम है- लर्निंग फॉर पीपल, प्लैनेट, प्रोस्पेरिटी एंड पीस”।

-अराधना शुक्ला

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