निजी क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष दरवाजे खोलेगा “इसरो”, रोजगार और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर संचार नेटवर्क का मिलेगा वरदान!

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो अपनी सुविधाओं को निजी क्षेत्र के लिए पूरी तरह से खोलने को तैयार है। केंद्रीय परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह नें कहा कि अब निजी क्षेत्र भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में भागीदार हो सकेंगें, यह परिकल्पना मोदी सरकार के “आत्मनिर्भर भारत” अभियान का हिस्सा है।
गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन नें इसी साल मई में आर्थिक पैकेजों की घोषणा करते हुए एलान किया था कि अब निजी क्षेत्र को भी उपग्रहों के प्रक्षेपणो और अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अवसर दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्व में अंतरिक्ष विभाग में हुए कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सुधारों का जिक्र करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि संभवत: स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ग्रहों से संबंधित अनुसंधान की भविष्य की परियोजनाएं, बाहरी अंतरिक्ष की यात्राएं आदि निजी क्षेत्र के लिए खोल दी जायेंगी। उन्होंने कहा कि यह कदम भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मोदी सरकार के “आत्मनिर्भर” योजना का भी हिस्सा है। इसमें अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने की पहल की परिकल्पना की गयी है।
अंतरिक्ष राज्य मंत्री ने आगे कहा कि भारतीय निजी क्षेत्र भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की यात्रा में सहयात्री होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि निजी कंपनियों को उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष आधारित गतिविधियों में बराबरी का अवसर प्रदान किया जायेगा।

केंद्र सरकार की तरफ से लगातार यही प्रयास किये जा रहे हैं कि जितना अधिक हो सके अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी आत्मनर्भर बना जाए इसी उद्देश्य से निजी क्षेत्र को इसमें भागीदार बनाया गया है। डॉ. जितेंद्र सिंह नें कहा कि, नए सुधार देश में अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों को “आपूर्ति आधारित मॉडल” से “मांग आधारित मॉडल” में बदलने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (आईएन-एसपीएसीई, इन-स्पेस) के निर्माण के साथ हमारे पास इसके लिए एक निश्चित तंत्र होगा और निजी क्षेत्र को अपनी क्षमता में सुधार करने के लिए इसरो की सुविधाओं तथा अन्य प्रासंगिक संपत्तियों का उपयोग करने की अनुमति होगी।

●भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र यानी (आईएन-एसपीएसीई)
अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्योग की गतिविधियों को अनुमति एवं विनियमन के लिए एक अलग वर्टिकल के तौर पर इन-स्पेस (इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन ऐंड अथॉराइजेशन सेंटर) को इसी साल 25 जून को स्वीकृति प्रदान की गई थी। केंद्र सरकार ने 360 अरब डॉलर के वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग में अपना 2 फीसदी योगदान बढ़ाने के प्रयास में इस नए सेंटर पर ध्यान केंद्रित किया है।
अंतरिक्ष विभाग के सचिव और इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने सरकार के इस कदम को एक महत्त्वपूर्ण सुधार करार देते हुए कहा, ‘हमारे पास सुरक्षा और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए निजी कंपनियों की अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए एक तंत्र होना चाहिए। मौजूदा समय में, इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं है।’
इन-स्पेस में तकनीक, कानूनी, सुरक्षा निगरानी के साथ साथ निजी उद्योग की जरूरतों के आकलन के लिए गतिविधियों के प्रोत्साहन आदि के लिए अपने स्वयं के स्वतंत्र निदेशालय होंगे। इन-स्पेस में उद्योग, शिक्षा क्षेत्र और सरकार से प्रतिनिधि शामिल होंगे।

●निजी क्षेत्र के कदम रखनें से बदल जाएगी इसरो की सूरत
अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी कोई नई बात नहीं है। 1985 में प्रोफ़ेसर यू आर राव जब इसके चेयरमैन थे तब इसे एक बड़ा प्रोत्साहन मिला था और पिन्या इंडस्ट्रियल एस्टेट में सहायक यूनिटों की स्थापना हुई थी पिन्या एशिया की सबसे बड़ी लघु उद्योग इकाइयों में से एक है।
इसरो के पूर्व मुखिया आर माधवन नायर के अनुसार, सैटेलाइट बनानें में 60 फीसदी से अधिक का योगदान निजी क्षेत्र की कंपनियां ही करती हैं लेकिन इस प्रक्रिया का नकारात्मक पहलू यह है कि निजी क्षेत्र लंबे समय तक के निवेश में भरोसा नहीं करते। अब जो नई नीति बनी है उसके अनुसार निश्चित तौर से अंतरिक्ष परियोजनाओ में बड़े निवेश को बढ़ावा मिलेगा।”

चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 के परियोजना निदेशक और मून मैन के नाम से प्रसिद्ध इसरो उपग्रह केंद्र, बैंगलुरू के निदेशक एम॰ अन्नादुरै के अनुसार, ” भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए नया लीगल फ्रेमवर्क अहम भूमिका निभाएगा इससे इसरो का बोझ भी कम हो जाएगा। इसरो की सर्विस की मांग पड़ोसी देशों में बढ़ रही है इसलिए मुझे लगता है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में कम्युनिकेशन सेटेलाइट की मांग और ज्यादा हो जाएगी इस समय जो कनेक्टिविटी है उससे आप शहर में घर से बैठ कर काम कर सकते हैं लेकिन अपने गृह नगरों से नहीं।”

कई बड़े देशों में उपग्रह के प्रक्षेपण समेत असैन्य अंतरिक्ष गतिविधियां निजी क्षेत्र के लिए खुली हैं लेकिन भारत में अभी तक निजी क्षेत्र के लिए इसे पूरी तरह से नहीं खोला गया है। नई नीति से भविष्य में भारत का निजी क्षेत्र वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष आधारित अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभा सकता है जिससे भारत वैश्विक तकनीकी क्षेत्र में शक्तिशाली तो बनेगा ही, देश में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर भी खुलेंगे।

-अराधना शुक्ला

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