आनंद मिश्रा लखनऊ,
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं। आज कल कोविड-19 के दौर में योगी आदित्यनाथ की मेहनत का नजारा पूरा भारत देख रहा है। इसी बीच प्रदेश में घटित हो रहे घटनाक्रम से ब्राह्मणों को लेकर सियासत तेज हो गई है कहा जा रहा है कि पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं से आहत ब्राह्मण मतदाता अब उत्तर प्रदेश में एक ब्राम्हण मुख्यमंत्री और स्थानीय ब्राह्मण उपमुख्यमंत्री की मांग कर रहा है जो लोगों की समस्याओं को समझे लोगों से खुलकर मुलाकात करें और लोगों की सहायता करें।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार में डॉ दिनेश शर्मा उप मुख्यमंत्री हैं एवं एक ब्राम्हण चेहरे के रूप में जाने जाते हैं।
भारतीय जनता पार्टी संगठन के पास यूं तो ब्राम्हण नेताओं की भरमार है, जिसमें से कुछ नेता उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं। प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में ऊर्जा एवं अतिरिक्त ऊर्जा विभाग देख रहे पंडित श्रीकांत शर्मा का नाम तो शुरुआती दौर में मुख्यमंत्री के लिए चला था जब योगी आदित्यनाथ का नाम तय हुआ और श्रीकांत शर्मा को कैबिनेट मंत्री से ही संतोष करना पड़ा था। श्रीकांत शर्मा का नाम भाजपा के पुराने धुरंधरों द्वारा चलाया गया था और एक समय तो ऐसा लग रहा था कि श्री शर्मा मुख्यमंत्री हो जाएंगे।
वह अलग बात रही कि जब श्रीकांत शर्मा को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी सामने आया था लेकिन फिलहाल वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए श्रीकांत शर्मा का नाम फिर से सुर्खियों में है।
इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से आने वाले धर्मार्थ कार्य, संस्कृति, पर्यटन राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉक्टर नीलकंठ तिवारी का भी नाम उनके समर्थक उप मुख्यमंत्री के लिए चला रहे हैं। डॉक्टर तिवारी वाराणसी के दक्षिणी विधानसभा से विधायक चुनकर आए और सीधे राज्य मंत्री बना दिए गए थे।
बाद में योगी आदित्यनाथ की सरकार में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बना दिया गया। डॉक्टर नीलकंठ तिवारी के बड़े कद और उनकी मेहनत के बाद उनके समर्थकों मैं विशेषकर उनके छात्र राजनीति के समय के साथी अब मांग कर रहे हैं कि उन्हें अगले मंत्रिमंडल विस्तार में कैबिनेट मंत्री सहित प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बना दिया जाए।
वहीं प्रदेश की राजनीति में दखल रखने वाले ब्राह्मण संगठनों की इस समय उठ रही मांगों को अन्य पार्टी कॉन्ग्रेस सपा और बसपा भी गंभीरता से ले रही है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय होने और ब्राह्मण मतदाताओं तक पकड़ बनाने के निर्देश दे दिए हैं। इसी तरह 2007 में उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े ब्राह्मण नेता के रूप में उभर के आए सतीश चंद्र मिश्रा भी एक बार फिर से सक्रिय हो चुके हैं। श्री मिश्रा ब्राह्मण संगठनों के पदाधिकारियों से सीधा संपर्क भी कर रहे हैं और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उनकी बैठकें जारी हैं। वह कांग्रेस के जितिन प्रसाद भी प्रदेश भर के ब्राह्मणों से संवाद करके उन्हें एकजुट रहे हैं।
इस मुद्दे पर अधिवक्ता कल्याणकारी मंच के अध्यक्ष और उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित विद्याकांत शर्मा कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेश शासनकाल में ही ब्राम्हण मुख्यमंत्री हुआ करता था। इसके बाद प्रदेश में भाजपा सपा बसपा की सरकार बनी लेकिन ब्राह्मणों को केवल वोट बैंक के लिए उपयोग किया गया। ब्राह्मणों को समाज का नेतृत्व करने के लिए कभी किसी दल ने आगे नहीं बढ़ाया। आज समय की मांग है प्रदेश में ब्राम्हण मुख्यमंत्री होना आवश्यक है तभी समाज का संतुलन हो सकेगा और सभी वर्गों को निष्पक्ष शासन-प्रशासन मिल सकेगा।
बता दें वर्ष 2022 में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है एवं इस बार उसमें ब्राह्मण मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है। इसको देखते हुए ब्राह्मण मतदाताओं और संगठनों की मांगों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।