“पत्रकार या पक्षकार” नफरत परोसने वाली “मुनाफाखोर” मीडिया क्या देश में गृह युद्ध चाहती है?

देवव्रत शर्मा-

ज़्यादातर मीडिया भी हिंदू-मुस्लिम सत्ता/विपक्ष के खेल में शामिल हैं ऐसे में सावधानी से खबरों को जांच पड़ताल कर परखे और समझें!!

पिछले कुछ वर्षों में देश की जनता ने मीडिया की बेशर्मी को भी अपनी नंगी आंखों से देखा है, पत्रकारिता नहीं कर रही मीडिया अब पक्षकारिता कर रही है।

कुछ दशक पहले तक पत्रकारिता में राष्ट्रहित सर्वोपरि रखा जाता था और इसके लिए समाज में जातीय और सांप्रदायिक द्वेष ना फैले इस बात का किसी भी खबर के कवरेज प्रकाशन और प्रसारण में विशेष ध्यान दिया जाता था।

लेकिन पिछले  कुछ वर्षों में देश की राजनीति के साथ-साथ देश के अधिकांश मीडिया संस्थानों ने मुनाफाखोरी के चक्कर में उन सिद्धांतों की बड़ी बेशर्मी से हत्या कर दी जिन सिद्धांतों पर पत्रकारिता की रीढ़ टिकी है।

भारत के अधिकांश मीडिया संस्थान बड़ी सरलता के साथ देखने पर दो खेमों में विभाजित दिखाई पड़ते हैं।

न्याय और अन्याय सत्य और असत्य की बात ईमानदारी से करने की बजाय अपने व्यवसायिक फायदे और सोशल मीडिया पर ज्यादा शेयर लाइक पाने के चक्कर में मीडिया संस्थान जमकर अपुष्ट संदिग्ध और झूठी खबरें दे रहे हैं।

नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में और इससे संबंधित हिंसा और दंगों में कई मीडिया संस्थानों ने गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग करके नफरत और हिंसा को बढ़ाने में योगदान दिया है।

कई नामी-गिरामी मीडिया संस्थान आगजनी और खून खराबे में अपना मुनाफा ढूंढ रहे  हैं वह शर्मसार करने वाला है।

कुछ खबरें तो सीधे अपनी जान पर खेलकर सुरक्षा ड्यूटी करने वाली पुलिस और अर्धसैनिक बलों का मनोबल तोड़ने वाली है तो वहीं कुछ खबरें साफ तौर पर हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत को बढ़ाने वाली है।

तमाम खबरों को उनकी हेडिंग को पढ़ते ही यह पता चल जाता है कि इन खबरों के पीछे कैसी “मानसिकता” काम कर रही है
साफ जाहिर होता है कि यह मीडिया संस्थान देश को गृह युद्ध की ओर ढकेलना चाहते हैं।

मीडिया की आजादी का नाजायज इस्तेमाल करके अपनी मुनाफाखोरी को बढ़ाने वाले यह मीडिया संस्थान कभी जातिवाद तो कभी सांप्रदायिकता को बढ़ाने वाले संदिग्ध और झूठे मामले पेश करते हैं।

दिल्ली के दंगों में सभी मीडिया संस्थानों की खबरों की अगर निष्पक्ष जांच कराई जाए तो बहुत से संस्थान ऐसे अपराध के लिए दोषी पाए जाएंगे जिन्हें भारतीय कानूनों में दंडनीय अपराध का दर्जा दिया गया है।

निश्चित तौर पर सरकार को यदि देश में अमन-चैन और अनुशासन कायम रखना है तो समाज को जाति धर्म में बांटने वाले कथित मीडिया संस्थानों पर भी ध्यान रखना होगा और यह भी देखना होगा कि सोशल मीडिया की आजादी का नाजायज इस्तेमाल करके समाज में नफरत हिंसा और भेदभाव बढ़ाने में सक्रिय लोगों के खिलाफ ठोस कार्रवाई में यदि देरी की जाएगी तो देश का बड़ा हिस्सा नफरत की आग में दिल्ली की तरह जलने लगेगा।

इस आर्टिकल में हमने  फेसबुक पर दिखने वाली कुछ ऐसी खबरों और पोस्ट के स्क्रीनशॉट शेयर किए हैं जिनको पढ़ने के बाद आप खुद ठंडे दिमाग से निर्णय लें.. कि क्या ऐसी हेडिंग ऐसी खबरें समाज के हित में हैं अथवा समाज में हिंसा और नफरत और अराजकता को बढ़ावा देने वाली है?

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