पिछड़े मुसलमानों महादलितों और अति पिछड़े हिंदुओं को एकजुट कर राजनैतिक संघर्ष करेगा,ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज

ऑल इंडिया पसमानदा मुस्लिम महाज उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राइन ने सट्टी बाजार स्थित कैम्प कार्यलय पर बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा-
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ उ0प्र0 मुस्लमान-ओबीसी-दलित फोर्मूले पर काम कर रहा है. वह दबे-कुचले तबकों की आवाज़ है. क्योंकि, सभी पार्टियां यह ही मानती हैं की वह दबे-कुचलों की आवाज़ हैं इस लिए आपके राजनितिक समीकरण पर ही बात करते हैं. पहले मुसलमानों की बात करते हैं. अगर पहली से लेकर चौदहवीं लोक सभा की लिस्ट उठा कर देखें तो पाएंगे कि तब तक चुने गए सभी ७५०० प्रतिनिधियों में ४०० मुसलमान थे. और इन ४०० मुसलमान प्रतिनिधियों में केवल ६० पसमांदा तबके से थे. अगर भारत में मुसलमानों की आबादी कुल आबादी की १३.४ % (२००१ सेंसस) है तो अशरफिया आबादी २.१ % (जो कि मुसलमान आबादी के १५ % हैं) के आसपास होगी. हालांकि, लोक सभा में उनका प्रतिनिधित्व ४.५ % है जो कि उनकी आबादी से सिर्फ ज्यादा नहीं बल्कि दोगुना है. साफ़ ज़ाहिर है कि मुस्लिम/अल्पसंख्यक सियासत से किस तबके को लाभ मिल रहा. इसी तरह ओबीसी तबकों के करीब २०० मेम्बर, जो की सिर्फ दस-बारह जातियों से आते हैं, अब लोक सभा में पहुँच चुके हैं. यदि दलित तबके को देखें तो उनको चुनाव के संदर्भ में जो आरक्षण मिला हुआ है उसका कुछ ही जातियों ने फायदा उठाया है. ऐसे में आपका मुस्लमान-ओबीसी-दलित समीकरण कितना जायज़ है? क्या अब समय नहीं आ गया है जब पसमांदा-महादलित-अतिपिछड़ा समीकरण पर गंभीरता से सोचना और काम करना चाहिए? उत्तर प्रदेश के आगामी २०१२ के चुनाव के संदर्भ में यह बात और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है जहाँ पर यह समीकरण करीब ५०% आबादी को समेटता है. यह हैरत की बात है की जब जनतंत्र का पहिया आगे बढ़ रहा है और नयी राजनितिक संभावनाएं नज़र आ रही है जो मुस्लिम वोट बैंक की सियासत करते हैं उन्हें करने दीजिए. आप उत्तर प्रदेश में पसमांदा वोट बैंक तैयार कीजिये जो की उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का कम-से-कम १५% होता है और अति-पिछड़ा और महादलित तबके से एकता कायम करे ।

यह भी गौर कीजिये की जिस तरह बाबू जगजीवन राम का इस्तेमाल कांग्रेस ने अम्बेडकर की मौलिक दलित राजनीती को कुचलने के लिए किया था, कहीं आप का इस्तेमाल अशरफिया तबका पसमांदा राजनीती की धार को कुंद करने के लिए तो नहीं कर रहा है अगर पसमांदा मुसलमानों का उद्धार मुस्लिम राजनीती को करना होता तो अब तक कर लिया होता. अब अगर कुछ इंसाफपसंद अशरफिया लोग यह सोचते हैं की मुस्लिम राजनीती के अंदर पसमांदा को इन्साफ दिला देंगे तो या तो वह पसमांदा को बेवकूफ बना रहे हैं अब बहुत देर हो चुकी है हृदयपरिवर्तन के लिए. मामला कुछ भले लोगों के दिल का नहीं बल्कि सत्ता का है जो बहुत निर्मम होती है और संरचनात्मक प्रक्रियाओं से भी नियंत्रित होती है. तारीख गवाह है कि इतिहास का पहिया कभी भी उल्टा नहीं घूमता है. अगर आप गौर से सोचेंगे तो अब मुस्लिम राजनीती घाटे का सौदा है और न्यायोचित भी नहीं है. पसमांदा राजनीती भविष्य की राजनीती है. इस नौका पर जितनी जल्दी सवार हो सकते हैं सवार होने की कोशिश करे ।