भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है अवसानेश्वर महादेव! मुगल शासक ने भी मानी जहाँ अपनी हार

बाराबंकी: सनातन धर्म मे आस्था रखने वालों का पवित्र श्रावण मास का प्रारंभ हो चुका है और इस माह में शिव भगवान की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है, शिव भक्तों में गजब का उत्साह होता है और शिव भक्त मंदिरों पर शिवलिंग पर जलाभिषेक कर पूजन पाठ करते है। जब शिवलिंग की बात आती है तो जनपद में हैदरगढ़ तहसील अंतर्गत गोमती नदी के किनारे स्थित अतिप्राचीन पांडवकालीन औसानेश्वर शिवलिंग का नाम अग्रणी हो जाता है।

किवंदंतियों की माने तो पांडवो द्वारा पूजित इस शिवलिंग को क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने नष्ट करने के लिए आरे से काटने का प्रयास किया, स्थानीय लोग बताते है कि उनके पूर्वजों द्वारा बताया गया कि शिवलिंग काटे जाने के कारण शिवलिंग से खून बहने लगा और बिच्छू भरैया आदि जीव जन्तु निकलकर सैनिकों को काटने लगे, जिस कारण औरंगजेब को पीछे लौटना पड़ा और वह वापस चला गया।

प्रचलित कथाओं के अनुसार शिवलिंग पर हुए घाव को ठीक करने के लिए यहां के पुजारियों ने कई वर्षों तक घी में डूबा रूई का फीहा घाव पर लगाया, जिससे घाव तो भर गया परंतु चिन्ह आज भी विद्यमान है।

मंदिर की प्राचीनता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ आज भी अत्यन्त प्राचीन मूर्तियाँ रखी हुई है जिनके दर्शन सर्व सुलभ है एवं श्रद्धालु गण यहाँ प्रतिदिवस पूजन अर्चन करते है।

मंदिर के नाम के इतिहास के बारे में यदि बात की जाए तो इस पावन तपोभूमि के प्रथम मठाधीश महंत पूजनीय अवसान गिरी हुए और इन्हीं के नाम पर दिव्य शिवलिंग का नाम अवसानेश्वर महादेव पड़ा। महंत अवसान गिरी जी के बाद बाघम्बर गिरि पीतांम्बर गिरि शाध गिरी आदि करके कुल 14 मंहंत हुए, जोकि निहंग रहे। जिन के समाधि स्थल आदि गंगा गोमती की धारा परवर्तित होने के कारण जलमग्न हो चुके हैं।

14 पीढ़ी निहंग बीतने के पश्चात 15वें महंत गोमती गिरी हुए, जो कि सिद्ध पुरुष थे। उनके विषय में कहा जाता है कि वह नदी के एक छोर से दूसरे छोर तक जल पर चलकर जाते थे। मंदिर पर आने वाले श्रद्धालु अपनी आस्था के चलते प्रतिदिवस दर्शन करने आते है।

स्थानीय लोगो से बात करने एवं मंदिर स्थल पर लगे मंदिर के इतिहास की गवाही देते शिलापट्ट की माने तो एक बार एक सेठ ने बाबा को एक दुशाला और कुछ सर्वण मुद्राएं भेंट में दी जिसे बाबा जी ने धूनी में डाल दिया, जिससे सेठ चिढ़ गया और अपनी दी हुई भेंट वापस मांगने लगा, जिस पर बाबा ने उससे कहा कि यहां माया किसी काम की नहीं इसे निर्धन लोगों को दान करो और अपनी दी हुई।भेंट को कुटिया से प्राप्त कर लो। बाबाजी का कथन सुनकर सेठ कुटिया में गया और अपनी दी हुई। भेंट को वहां देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने बाबा जी के चरण पकड़ लिए और अपनी भूल की क्षमा मांगने लगा।

महंत गोमती गिरी और उनके शिष्य श्री गणेश गिरी ने कुछ समय बीतने पर ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। और कुछ वर्षों पश्चात सन् 1886 में जीवित समाधि लेके दोनों महापुरुष ब्रह्मलीन हो गए। महंत गोमती गिरी व शिष्य गणेश गिरी के स्मृति चिन्ह समाधि स्थल आज भी गोमती तट पर गिरी परिवार के संरक्षण में सुरक्षित है।

वर्तमान समय में महंत गोमती गिरि व शिष्य गणेश गिरि की छठी पीढ़ी आवसानेश्वर महादेव के पूजा अर्चन व प्रबंधन के कार्य में सेवारत है।

गिरि परिवार का संबंध दशनामी संप्रदाय से है, जिसका निर्माण जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था। कुल मिलाकर औसानेश्वर
मंदिर हिन्दू सनातियो की आस्था का प्रमुख केंद्र है जहाँ दूर दूर से भक्तगण दर्शन प्राप्त करने आते है एवं शिव आराधना में लीन हो जाते है। कोविड के चलते श्रवण मास के मेले का आयोजन नही होगा किन्तु भक्त अपनी आस्थानुसार पँहुचकर दर्शन प्राप्त कर रहे है।

मनोज मिश्रा के साथ नितेश मिश्रा की रिपोर्ट!

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