जानिए भारतीय संविधान के मुताबिक क्या है नागरिकता कानून की स्थिति कितना जायज है “असंवैधानिक” कहकर विरोध करना?

आराधना

नागरिकता संशोधन बिल 2019 अब 10 जनवरी से प्रभावी होकर कानून का रूप ले चुका है। जबसे बिल पास हुआ है, पूरे देश में इसके विरोध और समर्थन में लोग एकजुट होकर प्रदर्शन कर रहे हैं। लगातार केंद्र सरकार पर यह दबाव बनाया जा रहा है, कि इस बिल को वापस ले लिया जाए।

इसी क्रम में केरल सरकार ने एक आश्चर्यजनक फैसला लेते हुए 13 दिसंबर 2019 को सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया और 4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया।

इस बात को लेकर पूरे देश में एक बार फिर बहस छिड़ गई कि क्या वास्तव में ऐसा किया जा सकता है,कि संघ सूची में शामिल विषय में बने किसी भी कानून को कोई राज्य सरकार भंग कर सकती हैं?

कानून के जानकारों ने इसे केरल सरकार की मूर्खता करार दिया। क्योंकि नागरिकता संघ सूची का विषय है और राज्य सरकारों का यहां कोई औचित्य नहीं बनता। उन्हें केंद्र के इस फैसले को मानना ही होगा। भारतीय संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि नागरिकता केंद्र सरकार से जुड़ा विषय है और इसके नियम कानूनों को तय करने का अधिकार केंद्र सरकार का ही है और भारतीय संसद ने जब नागरिकता संशोधन का विषय पारित कर दिया है तो यह सभी नागरिकों पर लागू माना जाएगा और यह एक संवैधानिक कानून का रूप ले चुका है जिसमें कोई भी राज्य सरकार दखल नहीं दे सकती और भारत के सभी नागरिकों को यह कानून मानना उनका संवैधानिक कर्तव्य है उनका फर्ज है।

सिर्फ केरल सरकार ने ऐसा किया हो यह भी नहीं है। अगला नंबर पंजाब सरकार का रहा उसने भी 17 जनवरी को विधानसभा में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। अब इस कड़ी में अगला राज्य बंगाल जुड़ने जा रहा है। बंगाल की ममता सरकार ने ऐलान किया है कि वह भी सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पेश करेंगीं। 27 जनवरी को दोपहर 2:00 बजे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है।

नागरिकता संशोधन बिल -2019 को देश के इन 8 राज्यों ने अपने यहां लागू करने से मना कर दिया था-बंगाल, राजस्थान,केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़। भारतीय संविधान के प्रावधानों के मुताबिक राज्य सरकार स्वयं असंवैधानिक कार्रवाई कर रही है इस कानून का विरोध करकेl और यह विरोध केवल राजनीतिक लाभ के लिए है मुसलमानों के एक वर्ग में उनकी नाराजगी का सियासी फायदा लेने के लिए है यथार्थ में इसका कोई भी फायदा किसी को नहीं मिलने वाला है क्योंकि यह कानून अब संवैधानिक कानून का रूप ले चुका है।

इस बिल के समर्थन में लखनऊ में आयोजित रैली में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सीएए वापस नहीं होगा जिसे प्रदर्शन करना है वे करते रहें।

केंद्र सरकार के रूख से स्पष्ट है कि वह इस कानून पर पीछे हटने वाली नहीं है क्योंकि राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों में पास होने के बाद नागरिक संशोधन कानून पूरी तरह से संवैधानिक कानून बन चुका है और इसके पीछे संविधान की पूरी ताकत सरकार के साथ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *