#विश्व_जल_दिवस पानी नहीं मिलने पर किस तरह होती है मौत?


लोगों के बीच पानी से संबंधिक चुनौतियों को लेकर जागरूकता बढ़े, इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस की घोषणा की थी.

सोशल मीडिया पर इससे जुड़े कई सवाल अक्सर पूछे जाते हैं, जिनमें से एक सवाल है कि पानी के बिना इंसान कितने दिन तक ज़िंदा रह सकता है?

ज़्यादा से ज़्यादा कितने दिन?
कई लोकप्रिय आर्टिकलों का निचोड़ निकालकर, गूगल इसका जवाब देता है कि एक मनुष्य क़रीब बीस दिन तक खाने के बिना तो रह सकता है. लेकिन पानी के बिना तीन-चार दिन से ज़्यादा जीना बहुत मुश्किल है.

जबकि अमरीका में बायोलॉजी के प्रोफ़ेसर रेंडल के पैकर कहते हैं कि इसका जवाब इतना सीधा नहीं हो सकता. मसलन, गर्म मौसम में बंद कार के भीतर बैठा बच्चा और गर्मी में खेल रहा एक एथलीट पानी नहीं मिलने पर कुछ ही घंटों में मर सकते हैं.

पानी का बेलेंस
पर ऐसा क्यों होता है? इसका एक ही जवाब है डी-हाईड्रेशन. यानी शरीर में पानी की कमी होना.

ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस के अनुसार, डी-हाईड्रेशन वो अवस्था है जब आपका शरीर पानी की जितनी मात्रा छोड़ रहा होता है, पानी की उतनी मात्रा उसे मिल नहीं रही होती.

छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों को डी-हाईड्रेशन से सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है. और सही वक़्त पर इसपर ध्यान नहीं दिया जाए, तो ये जानलेवा हो सकती है.

पानी न मिलने पर कैसे आती है मौत?
शरीर में पानी की कमी होने पर सबसे पहले मुँह सूखता है. प्यास लगने लगती है. ये है डी-हाईड्रेशन की पहली निशानी.
इसके बाद पेशाब का रंग गहरा पीला होने लगता है. उसमें दुर्गंध बढ़ जाती है. डॉक्टरों के अनुसार, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पानी की कमी होने पर ख़ूँन में शुगर और नमक (सोडियम) का बेलेंस ख़राब हो जाता है.
कुछ घंटे बाद आपको थकान महसूस होने लगती है. बच्चे रोते हैं तो उनके आँसू आने बंद हो जाते हैं.
अगले कुछ घंटों में पेशाब की मात्रा एकदम से घट जाती है. कुछ लोगों को चक्कर आने लगते हैं और आँखें थकान महसूस करने लगती हैं.
दूसरे दिन शरीर मुँह में थूक बनाने की ज़्यादा कोशिशें करने लगता है. होंठ सूखने लगते हैं और आँखों में दर्द होता है.
दूसरे दिन बहुत ज़्यादा नींद आती है. शरीर हर क़ीमत पर पानी बचाने की कोशिशें करने लगता है.
शुगर के मरीज़, दिल के मरीज़ और डायरिया के शिकार लोगों में ये सारे लक्षण और भी जल्दी दिख सकते हैं. साथ ही ज़्यादा शराब पीने वाले और 38 डिग्री तापमान में काम कर रहे लोगों की भी हालत तेज़ी से बिगड़ती है.
दूसरे दिन के अंत तक पेशाब का अंतराल आठ घंटे से ज़्यादा हो जाता है.
प्लस रेट बढ़ जाता है. त्वचा पर पानी की कमी साफ़ दिखने लगती है. कुछ लोगों को दौरे पड़ने लगते हैं.
लोगों को दिखाई देना बंद हो जाता है या धुँधला दिखाई देने लगता है.
कमज़ोरी इतनी बढ़ जाती है कि खड़े होने में भी दिक्कत होने लगती है. हाथ-पैर ठंडे पड़ने लगते हैं.
पानी है बहुत ज़रूरी
ये स्थिति ख़तरनाक है. इसके बाद किसी की भी मौत हो सकती है या इलाज मिलने के बाद भी डॉक्टरों के लिए मरीज़ को बचाना चुनौती भरा हो सकता है.

मरीज़ के आसपास तापमान कितना है, उसे क्या बीमारी है और उसे अपने शरीर को कितना हिलाना-डुलाना पड़ रहा है, इससे भी मरीज़ की स्थिति तय होती है.

डॉक्टरों की मानें, तो दिन में जितनी बार खाना खाएं, उतनी बार कम से कम पानी ज़रूर पियें. कम पानी पीने से किडनी से जुड़ी समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती है. पाचन ख़राब होता है और ख़ूँन की क्वालिटी बिगड़ती है.

मानव शरीर में पानी का काम?
हार्मोन बनाने के लिए दिमाग को पानी की ज़रूरत होती है.
शरीर पानी से थूक बनाता है जो पाचन क्रिया के लिए ज़रूरी है.
शरीर का तापमान पानी से तय होता है.
बॉडी के सेल पानी के दम पर बढ़ते हैं और नए सेल तैयार करते हैं.
शरीर की गंदगी को बाहर लाने में सबसे ज़रूरी है पानी.
हड्डियों के जोड़ों के बीच चिकनाहट और त्वचा को नमी भी पानी से मिलती है.
शरीर में ऑक्सीज़न की ज़रूरी मात्रा बनाए रखने के लिए ज़रूरी है पानी.
पानी के लिए मारामारी!
22 मार्च 2018: जल दिवस के दिन संयुक्त राष्ट्र ने एक दस वर्षीय एक्शन कैंपेन की भी शुरुआत की है, जिसका लक्ष्य लोगों को सूखे, बाढ़ और पानी से जुड़े अन्य जोखिमों के बारे में जानकारी देना होगा.

कुछ वक़्त पहले ही ग्यारह ऐसे शहरों की एक सूची जारी की जा चुकी है जहां पीने का पानी या तो ज़रूरत से काफ़ी कम बचेगा या ख़त्म ही हो जाएगा. इस लिस्ट में दक्षिण भारतीय शहर बेंगलुरु का भी नाम शामिल था.

यूएन के एक अनुमान के मुताबिक़, साल 2030 तक साफ़ पानी की डिमांड 40 फ़ीसदी तक बढ़ सकती है. ऐसे में पानी के लिए सही मैनेजमेंट नहीं किया गया तो इसके लिए मारामारी बढ़ना लाज़िम होगा.