सुलगते सवाल: “बड़े अफसरों” की लापरवाही से CO, SO समेत 8 पुलिसकर्मियों को गंवानी पड़ी जान?

रिपोर्ट – देवव्रत शर्मा

कानपुर के सीओ देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की शहादत ने उत्तर प्रदेश को बड़ा दुख पहुंचाया है साथ ही सरकार और पुलिस विभाग की कार्यशैली पर तमाम बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।

पूर्व डीजीपी एके जैन कहते हैं, हर थाने से संबंधित टॉप टेन अपराधियों की लगातार समीक्षा की जाती है उनके मूवमेंट पर नजर रखी जाती है उनके पुराने मुकदमों में भी निगरानी करके उन पर लगातार पुलिस अपना दबाव बना कर रखती है जिससे वह आगे कोई अपराध करने की हिम्मत न कर सके। यह सब कुछ पुलिस की नियमित प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है। इसके अलावा जिले के टॉप टेन अपराधियों की भी मॉनिटरिंग गंभीरता से की जाती है पुलिस विभाग में इस प्रक्रिया का काफी सालों से पालन करने के लिए निर्देश हैl पूर्व डीजीपी ने जो बातें कही हैं उनका कानपुर के संदर्भ में बड़ा महत्व है।

अक्सर जनपदों के, रेंज और जोन के अधिकारी इस प्रक्रिया को लेकर लापरवाह हो जाते हैं जिसकी वजह से अपराधियों को सिर उठाने की हिम्मत होती है वह सफेदपोशो के सहयोग से अपनी ताकत बढ़ाते हैं और कानूनी कार्रवाई से बचे रहते हैं। इतना ही नहीं शासन सत्ता से भी अपराधियों को संरक्षण मिलता है और कानपुर के मामले में भी शायद ऐसा ही हुआ क्योंकि जिस अपराधी विकास दुबे पर 60 से अधिक मुकदमे होने की बात कही जा रही है वह इतने सारे हथियारों का इंतजाम कैसे कर लेता है, वह आजाद कैसे घूम रहा था, वह दूसरों की जमीनों पर कब्जा कैसे कर रहा था,  कानपुर की पुलिस उसके बड़े आपराधिक रिकॉर्ड को नजरअंदाज करके क्यों लंबे समय से खामोश बैठी थी यह वह बड़े सवाल हैं जिनका जवाब कानपुर जोन के अफसरों से मांगा जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश पुलिस बड़े आपराधिक रिकॉर्ड वाले अपराधियों को गिरफ्तार करने और एनकाउंटर करने का अभियान भी चला रही थी लेकिन विकास दुबे पर मेहरबानी क्यों हुई जबकि उसका काफी लंबा आपराधिक इतिहास था और इसके बावजूद वह आजाद घूम रहा था।
बताया जाता है कि घटना के एक दिन पहले चौबेपुर के थानाध्यक्ष विनय तिवारी विकास दुबे के पास किसी मामले की पूछताछ के लिए गए थे तो विकास दुबे ने थानाध्यक्ष के सामने ही शिकायतकर्ता से मारपीट की और थानाध्यक्ष विनय तिवारी से भी उनकी मारपीट हुई, इसके बावजूद पुलिस ने मामले को हल्के में लिया तत्काल विकास दुबे को गिरफ्तार करने के बाद की बजाए उसे 24 घंटे का मौका दिया गया और अगले दिन उसके घर पर दबिश हुई जिसकी जानकारी पुलिस विभाग के गद्दारों ने अपराधी को पहले ही दे दी थी और उसने छतों पर पोजीशन लेकर पुलिस टीम पर फायरिंग की जिसके चलते सीओ देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की मौत हुई।

इस मामले में चौबेपुर के पूर्व थानाध्यक्ष विनय तिवारी को सूचना लीक करने के आरोप में एसटीएफ ने हिरासत में ले लिया है लेकिन यह बात भी कही जा रही है कि इसी विनय तिवारी के साथ घटना के 24 घंटे पहले विकास दुबे ने मारपीट भी की थी, दोनों बातों में विरोधाभास है। हालांकि एसटीएफ अपनी जांच कर रही है और संदेह के आधार पर थानाध्यक्ष विनय तिवारी को निलंबित भी कर दिया गया है।

यह अचानक होने वाली घटना नहीं है इसके लिए पहले से प्लानिंग की गई थी यहां पर फिर बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है कि जो अपराधी इतना दुर्दांत था कि पहले से ही हत्या के कई चर्चित मामलों में उसका नाम था उस अपराधी से निपटने के लिए जाने वाली पुलिस टीम क्या वाकई में हर तरह से मजबूत थी?
वरिष्ठ अफसरों ने जिस टीम को मुठभेड़ के लिए भेजा उसे बुलेट प्रूफ बॉडी कवर क्यों नहीं उपलब्ध कराए गए?

ऐसे कई सवाल हैं जो निष्पक्ष जांच में कानपुर जोन की पुलिस की कार्यशैली का सही परीक्षण करेंगे लेकिन एक बड़ा सवाल और है कि यह सारे सवाल सिर्फ मीडिया की खबरों में रहेंगे या फिर वाकई में प्रदेश सरकार यह सवाल पुलिस और गृह विभाग के जिम्मेदारों के सामने रखेगी।

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