हाथरस कांड के हंगामे में योगी सरकार को इतना हिला दिया था कि परेशान होकर योगी सरकार ने एक तरफ जहां पूरे मामले की जांच को सीबीआई को सौंप दिया था वहीं दूसरी तरफ मीडिया में उत्तर प्रदेश सरकार की फजीहत को देखते हुए मीडिया मैनेजमेंट की जिम्मेदारी संभालने वाले सूचना विभाग के मुखिया और सरकार के ताकतवर अफसर अवनीश अवस्थी को सूचना विभाग के प्रमुख के पद से हटा दिया गया था।
हालांकि उनका गृह विभाग कायम रखा गया था लेकिन जिस तरह से इस मामले में उस समय पुलिस के अधिकारियों ने गैर जिम्मेदाराना कम करते हुए योगी सरकार की फजीहत कराई थी उसके बाद निश्चित तौर पर पुलिस विभाग की भी जिम्मेदारी तय होने की जरूरत थी। हालांकि सरकार ने हाथरस के तत्कालीन एसपी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए यह संदेश दिया था, लेकिन एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के पद पर बैठे जिम्मेदार अधिकारी प्रशांत कुमार ने जिस तरह से इस मामले में पीड़िता के साथ गैंगरेप ना होने की बात कही वह अपने आप में बहुत बड़ा विषय है क्योंकि जांच पूरा होने के पहले ही उन्होंने इस तरह से निष्कर्ष दे दिया जो कि एक निष्पक्ष अधिकारी के लिए उचित नहीं होता।
वहीं सीबीआई ने अपनी जांच पूरी करके चारों आरोपियों को गैंगरेप और हत्या का दोषी मानते हुए चार्जशीट लगाई है जिसके बाद यह साबित हो जाता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यशैली उस मामले में सही नहीं थी और तत्कालीन एसपी समेत रेंज और जोन के बड़े अफसरों के साथ-साथ एडीजी लॉ एंड आर्डर की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है।
इतना ही नहीं डीजीपी के नेतृत्व और नियंत्रण पर भी प्रश्न खड़े हो रहे हैं आखिर किस आधार पर एडीजी लॉ एंड आर्डर गैंगरेप ना होने की बात कह रहे थे और उन्हीं परिस्थितियों में सीबीआई ने गैंगरेप और हत्या की बात को सही मानते हुए चार्ज शीट लगा दी है।
जिस तरह से यूपी पुलिस की पूरी स्टोरी सीबीआई जांच में झूठ साबित हुई है उसके बाद न सिर्फ यूपी सरकार बल्कि पुलिस की लीडरशिप पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।