ऑनलाइन शॉपिंग का क्रेज लोगों में तेजी से बढ़ रहा है। खासकर युवा ऑनलाइन शॉपिंग को ही महत्व दे रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि एक तो ग्राहक अपने मोबाइल से ही वस्तु को चुनकर उसका आॅर्डर भेज देता है। दूसरा उसे 10%से 15% तक डिस्काउंट भी मिल जाता है। तीसरा उसे कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती और समय भी बचता है। इस ट्रेंड से बाजार के होलसेलरों और रिटेलरों को चपत लग रही है। और रोजी रोटी के लाले पड़ रहे हैं ,करोड़ो लोग बेरोजगारी की कगार पर खड़े हैं
ऑनलाइन शॉपिंग का बढ़ता क्रेज मार्केट रिटेलरों के कारोबार को खत्म करता जा रहा है। इससे परेशान तमाम व्यापारिक संघटनो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सुझाव दिए हैं। साथ ही आग्रह किया है कि इस संबंध में जनरल रिटेलर के हितों को ध्यान में रख कर नीति बनाई जाए।
व्यापारियों का कहना है कि फिलहाल देश में 10% खुदरा बाजार संगठित क्षेत्र में और 90% असंगठित क्षेत्र में है। ऑनलाइन शॉपिंग की हिस्सेदारी 3% से 4% तक है। माना जा रहा है कि वर्ष 2025 तक यह हिस्सेदारी बढ़कर 10% हो जाएगी। इस बढ़ते बाजार को लेकर छोटे रिटेलरों को अपनी हिस्सेदारी बचाने की राह नहीं मिल रही है। रिटेलरों का कहना है कि जनरल डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम में बड़ी कंपनियों को करीब 10% एवं छोटी कंपनियों को 20% तक सेल्स टीम का खर्च और अन्य खर्चे करना पड़ता है जबकि ऑनलाइन रिटेलिंग साइट्स से बिक्री पर यह खर्च बचता है और वे ग्राहक को ज्यादा डिस्काउंट आॅफर कर पाते हैं।
अभी बाजार में बैठे रिटेलर एवं ऑनलाइन शॉपिंग के दाम में औसतन 10% से 15% तक का डिफरेन्स है। इसी के चलते ग्राहक ऑनलाइन को ज्यादा महत्व दे रहा है। इसके अलावा मॉडर्न ट्रेड मसलन बिग बाजार, रिलायंस, ईजी डे, बेस्ट प्राइज इत्यादि भी जनरल रिटेलर की जड़े हिला रहे हैं। ये भी ग्राहकों को सस्ता माल बेचते हैं। इसके अलावा सीएसडी कैंटीन का भी दुरुपयोग हो रहा है। गलत लोग वहां से भी सस्ता सामान निकाल कर मार्केट में बेच रहे हैं। इससे भी रिटेलर का मुनाफा खत्म हो रहा है। तीन साल में जनरल ट्रेडर के कारोबार में 25 फीसद की कमी आई है।
ऑनलाइन शॉपिंग से हो रहे खतरे को देखते हुए देश के तमाम व्यापारिक एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री के अलावा बड़ी कंपनियों को सुझाव दिया है। और आग्रह किया है कि ऑनलाइन ट्रेड एवं ऑफलाइन ट्रेड के लिए उत्पादों की पैकिंग में फर्क किया जाए। पैकिंग की डिजाइनिंग को बदला जाए। इसके अलावा यह सुनिश्चित किया जाए कि ऑनलाइन ट्रेड एवं ऑफलाइन ट्रेड के उत्पादों की कीमतों में केवल 5% से ज्यादा का अंतर न रहे। तभी खुदरा बाजार प्रतिस्पर्धा का मुकाबला कर पाएगा।
रिपोर्ट –रविंनन खजांची/मनीष निगम