आरक्षण और सम्मान के लिए गरीब मुसलमान वसीम राइन में देख रहे हैं “अपना अंबेडकर”,फिर बुलंद की आवाज!

द इंडियन ओपिनियन
बाराबंकी

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने गरीब मुसलमानो के आरक्षण और सम्मान के लिए देश में एक बड़ा मूवमेंट शुरू किया है उत्तर प्रदेश में गरीब और पिछड़े मुसलमान के लिए कई सालों से वसीम राइन सार्थक अभियान चला रहे हैं उनका मानना है कि गरीब मुसलमान को भी अपने अंबेडकर की तलाश है उनके साथ जुड़े सैकड़ो गरीब पिछडे मुसलमान उनमें अपने बच्चों के भविष्य के लिए संघर्ष करने वाले मसीहा को देखते हैं लोग उनमें मुसलमानो का अंबेडकर देखते हैं ।

वसीम राइन कहते हैं कि कांग्रेस ने इस देश में मुसलमान को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है उनकी कोशिश है कि मुसलमान को भी दलितों को मिलने वाले आरक्षण में हिस्सेदारी मिले इसके लिए उन्होंने आज बाराबंकी में डीएम को ज्ञापन देकर देश की सरकार के सामने अपनी बातें रखी।

” कांग्रेस सरकार में देश के 85 फीसदी पसमांदा मुस्लिम समाज पर आर्टिकल 341 के जरिए लगाए गए धार्मिक प्रतिबंध का आज जोरदार विरोध किया गया। इस बंदिश के खिलाफ ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की ओर से शनिवार को राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर सौंपा गया। ज्ञापन के माध्यम से बरसो से पसमांदा समाज पर लगाए गए प्रतिबंध समाप्त करने वा समानता का अधिकार प्रदान करने की मांग की गई है।”

ज्ञापन सौंपने के दौरान ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने पसमांदा मुसलमान के साथ शत्रुता भरा व्यवहार किया गया। जबकि इसी समाज ने इस दल को सत्ता में बने रहने के मौके दिए। इसके बावजूद कांग्रेस अपने अत्याचारी रवैए से बाज नहीं आई। इनके जुल्म का ही परिणाम है कि पसमांदा समाज से सैकड़ों आईएएस, इंजीनियर, डॉक्टर, जज और राजनीतिज्ञ बनने से वंचित रह गए लेकिन अब वक्त के साथ यह समाज जागरूक हुआ है और अपने अधिकारों की रक्षा करना जानता है।


उन्होंने कहा कि इस समाज को वर्तमान केन्द्र सरकार से बड़ी उम्मीद है। इस सरकार ने ट्रिपल तलाक समेत कई साहसिक फैसले लेकर यह साबित किया है कि उनमें बदलाव लाने का जज्बा है। इसी तरह सरकार आर्टिकल 341 के जरिए लगाए गए धार्मिक प्रतिबंध से पसमांदा समाज को आजादी दिलाने की पहल करे, ताकि यह समाज भी समानता का अधिकार हासिल करने के साथ ही मुल्क की तरक्की में अपनी भूमिका निभा सके।

राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि भारतीस संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 25 में साफ लिखा है कि भारत में बसने वाला इंसान, चाहे वह किसी धर्म, जाति, लिंग, नस्ल का हो उसके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा, मगर आजादी के बाद 10 अगस्त 1950 को राष्ट्रपति अध्यादेश शेड्यूल कास्ट 341 के पैरा 3 के तहत सिर्फ हिंदू दलित को अनुसूचित जाति का लाभ दिया गया। दूसरे धर्म के मानने वालों को अनुसूचित जाति का लाभ लेने से वंचित कर दिया गया है। सिखों को 1956 में और बौद्धों को 1990 में उसका लाभ मिला लेकिन मुसलमान और ईसाई आज तक इस लाभ से वंचित हैं। दलित तो दलित हैं, उसका धार्मिक विश्वास और पूरा कुछ भी हो क्या यही सामान नागरिकता का संदेश है? यदि ऐसा हे तो समानता में असमानता मौलिक अधिकार का हनन है और जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 25 की खिलाफ वर्जी है और संविधान विरूद्ध है जो हिंदुस्तान को एक सेक्यूलर और लोकतांत्रिक मुल्क होने की जमानत देता है।

मांग की गई कि उक्त मांगों की प्रतिपूर्ति महामहिम के स्वविवेक पर आधारित है, जिसे प्रदान कर हम सभी पसमांदा समाज के नागरिकों की सच्ची समाजवादी सहानुभूति एवं विचारधारा का प्रकटीकरण होगा। तथा दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों की तरक्की का रास्ता खुलेगा।
इस दौरान महाज़ जिलाउपाध्यक्ष नूरुलहसन अंसारी,ज़िलामहामंत्री नफ़ीस राईन, सलमानी समाज के जिलाध्यक्ष जुबेर सलमानी, क़ुरैशी समाज के ज़िलाध्यक्ष सदाब क़ुरैशी,एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन, सुएब नेता,इखलाक राईन, एसराफील राईन,सूफ़ियान राईन, सूफ़ियान समानी, आलम सलमानी, अनस सलमानी, ग़ुलाम रासुल सलमानी, हसन सलमानी, सईद राईन ,निसार राईन, हाफिज मुशरफ़ अंसारी, इमाम मक़बूल ,मैनुद्दीन अंसारी, आज़म क़ुरैशी आदि सैकडो लोग मौजूद थे।

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