दीपक कुमार
THE INDIAN OPINION
LUCKNOW
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दशकों में विचारधाराओं के आधार पर राजनीति करने वाली तीन प्रमुख पार्टियों ने लंबे समय तक सत्ता चलाई, जिनमें भाजपा, सपा और बसपा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। 2024 में अचानक भाजपा का ग्राफ उत्तर प्रदेश में तेजी से गिरने के तमाम कारणों पर विवेचना जारी है, लेकिन एक बड़ी बात जो कार्यकर्ताओं की ओर से पार्टी के प्रमुख नेताओं को बताई जा रही है, वह यह है कि उत्तर प्रदेश के ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में भाजपा समर्थकों और उनके वर्गों की सुनवाई नहीं हो रही। इसी वजह से चुनाव में बूथ स्तर पर संघर्ष करने वाले समर्थक 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी निराशा और शिथिलता का प्रदर्शन कर चुके हैं।
तमाम भाजपा नेता, समर्थक और कार्यकर्ता दबी जुबान में कहते हैं कि माहौल अभी कुछ खास नहीं बदल रहा है। यही हाल रहा, तो 2027 में समाजवादी पार्टी आसानी से सत्ता हासिल कर लेगी।
योगी ईमानदार मुख्यमंत्री हैं, इसमें ज्यादातर लोगों को कोई संदेह नहीं है। लेकिन लोगों के दिलों में यह सवाल है कि जब सपा और बसपा की सरकारें थीं, तो उनके समर्थकों की हर जगह सुनवाई होती थी, उन्हें प्राथमिकता मिलती थी, और उनके जरूरी काम आसानी से थानों, तहसीलों और सरकारी दफ्तरों में निपट जाते थे। लेकिन जिस भाजपा सरकार के लिए वे कई सालों से संघर्ष कर रहे थे, उसी भाजपा की सत्ता आने के बाद सरकारी मशीनरी भाजपा समर्थकों को तवज्जो नहीं दे रही है। इसलिए उनका मनोबल गिरा हुआ है।
भाजपा समर्थकों के झुके मनोबल की वजह से ही 2024 में बड़ा नुकसान हुआ, और 2027 में भी हालात अच्छे नहीं दिखाई दे रहे हैं। कई कार्यकर्ता कह रहे हैं कि विपक्षी उनका मजाक उड़ाते हैं, “सरकार भले तुम्हारी हो, सिस्टम तो हमारा है।”
भाजपा से जुड़े कई लोग दबी जुबान में कहते हैं कि “उनकी सरकार में भी सपा, बसपा, कांग्रेस से जुड़े लोग बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि वे सरकारी तंत्र से ‘येन केन प्रकारेण’ अपना काम करवा लेते हैं, जबकि हम, सत्ताधारी दल से लंबे समय से जुड़े होने के बावजूद अपनी स्थितियों में सुधार नहीं कर पा रहे। न ही सरकारी योजनाओं का लाभ उठा पा रहे हैं, क्योंकि अधिकारी सहयोग नहीं करते। भाजपा के नेता भी कार्यकर्ताओं का खुलकर सहयोग नहीं करते।”
यह कहा जा रहा है कि शस्त्र लाइसेंस की बात हो, सरकारी ठेके, सप्लाई, जमीनों के पट्टे, या सरकारी योजनाओं का फायदा उठाने की बात हो—सपा और बसपा समर्थकों को प्राथमिकता मिलती थी। तत्कालीन प्रशासन और अधिकारियों का भी उन्हें पूरा सहयोग मिलता था। जबकि भाजपा सरकार में ज्यादातर जिलों के जिला अधिकारी न तो आसानी से शस्त्र लाइसेंस बनाते हैं, न ही भाजपा समर्थकों को सरकारी तंत्र में प्राथमिकता मिल रही है और न ही उन्हें योजनाओं का समुचित लाभ मिल रहा है।
लोकतंत्र में पक्षपात की बात उचित नहीं है, लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि जिस दल की सरकार होती है, उस दल से जुड़े लोगों का सशक्तिकरण प्राथमिकता के आधार पर होता रहा है। भाजपा में इसी बात का अभाव कार्यकर्ताओं और समर्थकों को तकलीफ दे रहा है।
उत्तर प्रदेश की सियासत में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन के बाद जब योगी को पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार का नेतृत्व मिला, तो एक उत्साह का वातावरण था। 2017 से लेकर 2022 तक यह उत्साह बना रहा। 2022 में कुछ कमी हुई, लेकिन भाजपा की इज्जत बच गई और योगी के राजनीतिक कौशल और नेतृत्व पर मुहर लग गई।
लेकिन 2024 का सियासी झटका न सिर्फ भाजपा के सम्मान और उसकी ताकत पर, बल्कि योगी के व्यक्तित्व और कार्यशैली पर भी सवालिया निशान बन गया है। कोई कुछ भी कहे, लेकिन योगी आदित्यनाथ भी जवाबदेही से नहीं बच सकते। उनका दूसरा कार्यकाल लगभग आधा बीत चुका है, और तीसरे कार्यकाल की सियासी तैयारी में उन्हें अभी से जुट जाना चाहिए, क्योंकि इस बार 2027 का चुनाव उनके सियासी भविष्य को तय करने वाला हो सकता है।
योगी ने एक ईमानदार और प्रभावशाली नेता का व्यक्तित्व दिखाया है और कानून व्यवस्था पर प्रशंसनीय काम किया है। बावजूद इसके, उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार और अधिकारियों की मनमानी की तमाम शिकायतें हैं। परीक्षा भर्ती पेपर लीक, युवाओं के मुद्दों के अलावा कार्यकर्ताओं और समर्थकों की समस्या भी बड़े पैमाने पर है। जातिवाद और अपेक्षा की चर्चाओं के चलते भाजपा के परंपरागत वोटर वर्गों में भी उत्साह की कमी है। 2024 में इसका परीक्षण हो चुका है। 2027 के लिए पार्टी में सुधार होते नहीं दिख रहे हैं। विपक्ष के ऊंचे मनोबल और आक्रामक रणनीति के आगे भाजपा डिफेंसिव (रक्षात्मक) नजर आ रही है, जो पार्टी को और नुकसान की ओर ले जा रही है।
योगी आदित्यनाथ को अच्छे सलाहकारों और रणनीतिकारों की जरूरत है। जातिवाद और सामाजिक विघटन को रोकने की आवश्यकता है, जिससे न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश में भगवा सियासत का सम्मान बचा रहे। अगर भाजपा के रणनीतिकार सरकार और संगठन की कार्यशैली में सुधार नहीं कर पाए, तो उत्तर भारत में भाजपा का पुनः सत्ता में आना आसान नहीं होगा।