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बाराबंकी में कई दशकों के बाद भाजपाइयों में उत्साह उस वक्त देखने के लायक था जब 10 साल पहले रंजीत बहादुर श्रीवास्तव (लाला रंजीत) भाजपा की ताकत का सहारा पाकर नवाबगंज नगरपालिका के चेयरमैन बने थे ।
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कभी जरायम की दुनिया में लाला रंजीत की बड़ी चर्चा होती थी कुछ लोग उन्हें माफिया भी कहते थे लेकिन बड़ी सफाई से उन्होंने न्यायपालिका से अपने लिए न्याय हासिल किया और अपराध की दुनिया से दूरी बनाकर सियासत की दुनिया में खुद को स्थापित कर लिया ।
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गंभीर मुकदमेबाजी और पुलिस एनकाउंटर के खतरों से भी उनका आमना-सामना हुआ लेकिन महाकाल की भक्ति करने वाले लाला रंजीत को भगवान चित्रगुप्त का पूरा आशीर्वाद है और उनके भाग्य का लेखा-जोखा कुछ ऐसा बना है कि जिंदगी में हारी हुई बाजी को भी उन्हें जीतने का मौका मिला है।
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लेकिन एक बार फिर उन्हें एक बड़ी परीक्षा देनी है पहले खुद चेयरमैन रहे फिर अपनी धर्मपत्नी शशी श्रीवास्तव को भी अपने रसूख के दम पर चेयरमैन बनाया लगातार 10 सालों से बाराबंकी जिला मुख्यालय की नगर पालिका पर भगवा परचम लहरा रहे हैं उन्हीं के नेतृत्व में नगर पालिका परिषद का सीमा विस्तार हुआ उनके कार्यकाल में शहर में अरबों रुपए विकास कार्यों के लिए खर्च हो चुके हैं शहर की रंगत और सूरत में बदलाव भी हुआ है लेकिन विरोधी भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाते हैं ।
अब भाजपा में ही कई ताकतवर चेहरे यह नहीं चाहते कि तीसरी बार भी रंजीत बहादुर श्रीवास्तव के परिवार का ही जलवा कायम हो जाय बहुत से भाजपाई चाहते हैं कि बारी-बारी नगर पालिका चेयरमैन की ताकतवर और मलाईदार कुर्सी पर बैठने का मौका उनको को भी मिले आखिर बहुत से ऐसे लोग हैं जो दशकों से भाजपा का झंडा लेकर दौड़ रहे हैं लेकिन सत्ता का आनंद भोगने का मौका अभी तक नहीं मिला।
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जो बाराबंकी शहर में भाजपा के लिए नगर पालिका चेयरमैन की कुर्सी पर तीसरी बार कमल का फूल खिला सके ऐसे चेहरे की तलाश हो रही है दावेदार बहुत से मैदान में बारी बारी प्रकट होते जा रहे हैं, लेकिन नवाबगंज नगर पालिका क्षेत्र का जातीय समीकरण कुछ ऐसा है कि हर खिलाड़ी यहां अच्छा खेल नहीं खेल पाएगा । जीत हासिल करना और जीत के लिए जरूरी जातीय समीकरण को साध पाना बड़ा मुश्किल काम है ।
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तमाम दांव पेंच आजमाकर हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने में लाला रंजीत ने सफलता हासिल की थी मुस्लिम मतदाता तो बयानों से नाराज़ होकर उनके खिलाफ लगभग एकजुट ही रहे हालांकि इस बार वह मुसलमानों से भी समर्थन मांग रहे हैं क्योंकि वक्त सबका बदलता है और जब वक्त बदलता है तब खिलाड़ी कितना भी बड़ा हो चाल बदलनी ही पड़ती है।
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इस बार लाला रंजीत का मामला भी मुश्किल में पड़ गया है पूर्व जिला अध्यक्ष संतोष सिंह के मैदान में आने से हलचल और मच गई है और भी कई चेहरे हैं जिन्हें जनता ने होर्डिंग और पोस्टर के जरिए देखा है वहीं दूसरी तरफ मैनपुरी जीत से उत्साहित समाजवादी पार्टी हर हाल में इस बार नवाबगंज से भाजपा की विदाई कर देना चाहती है ।
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समाजवादी पार्टी से भी दावेदारों की लंबी सूची तैयार हो गई है सुरेश यादव लगातार 3 विधानसभा चुनाव जीतकर जिले में ताकतवर नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं ऐसे में उनकी बात को अनदेखा करना आसान नहीं होगा उनके भाई धर्मेंद्र यादव और पूर्व जिला अध्यक्ष डॉ कुलदीप सिंह ने भी दावेदारी ठोकी है। वहीं दूसरी ओर पूर्व मंत्री संग्राम सिंह वर्मा के छोटे भाई सुरेंद्र सिंह वर्मा ने समाजवादी पार्टी की ओर से मज़बूत दावेदारी करके सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है क्योंकि वह ना सिर्फ जिले के मजबूत सियासी परिवार से हैं। बल्कि जातीय समीकरण भी अपने मुताबिक सेट करने में माहिर रहे हैं कई बार जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दे चुके हैं।
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सीमा विस्तार के बाद नवाबगंज नगर पालिका में बड़ी संख्या में यादव और कुर्मी वोटर जुड़े हैं शहर में सामान्य वर्गों के मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है जिसमें कायस्थ और ब्राह्मण मतदाता भी चुनाव पर बड़ा असर डाल सकते हैं ।
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लाला रंजीत की टीम का दबी ज़ुबान में कहना है कि भाजपा के बड़े नेता भी यह जानते है कि नवाबगंज नगर पालिका में हमारे अलावा कोई चुनाव नहीं जीत पाएगा यहां 14000 कायस्थ मतदाता हैं सभी वर्गों में हमारे मजबूत वोटर हैं यदि हमें टिकट नहीं मिला तो भारतीय जनता पार्टी का तीसरी बार नगर पालिका जीतना मुश्किल हो जाएगा.
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दूसरी तरफ सुरेंद्र सिंह वर्मा के बारे में कहा जा रहा है कि यदि समाजवादी पार्टी से उन्हें टिकट मिल जाता है तो यादव मुस्लिम और कुर्मी का एक मजबूत गठजोड़ बन जाएगा और यह गठजोड़ जीत का ठोस समीकरण तैयार कर सकता है इसके अलावा सुरेंद्र सिंह वर्मा का सरल व्यवहार और उनके हर समुदाय में रिश्तो की वजह से उन्हें सभी वर्गों का वोट अच्छी संख्या में मिलेगा।
इसी तरह के तर्क सभी दावेदारों और भावी प्रत्याशियों के हैं लेकिन सियासत की जानकारी रखने वाला हर कोई या जरूर कह रहा है की गुटबाजी से जूझ रही भाजपा का तीसरी बार नवाबगंज पर भगवा लहराना आसान नहीं होगा।
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भाजपा से जुड़े सूत्रों के मुताबिक वर्तमान सांसद का खेमा लाला रंजीत को ही तीसरी बार मौका देने की बात कह रहा है वहीं दूसरी तरफ पूर्व सांसद और प्रदेश महामंत्री प्रियंका सिंह रावत चाहती हैं कि दो बार एक ही परिवार को मौका मिल चुका है तो इस बार बदलाव किया जाए और पुराने कार्यकर्ता पूर्व जिलाध्यक्ष बाबू संतोष सिंह मौका दिया जाए।
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यह मामला बाराबंकी शहर का है यह मामला लखनऊ के सबसे नजदीकी शहर का है यह मामला शहर की पढ़ी-लिखी जनता का है जो अपने लिए साफ सुथरा सुरक्षित शहर चाहती है जो चाहती है कि बच्चों को खेलने के लिए पार्क हो मैदान हों बुजुर्गों के टहलने के लिए सुरक्षित स्थान हो सड़कों पर जाम न लगे प्रदूषण न हो कूड़े का अंबार ना हो बाराबंकी भी नजदीकी जनपद और राजधानी लखनऊ के साथ कदम ताल मिला सके इसी भरोसे पर जनता ने दो बार लाला रंजीत के चेहरे और कमल निशान को मौका दिया।
जनता तो जनार्दन है जनता को नासमझ समझने की जिसने भी भूल की है उसने सियासी बनवास भी काटा है अब यह देखने वाली बात होगी कि कि जनता के दिल को जीतने में कौन कितना कामयाब होगा ? बड़ी पार्टियों से कौन महारथी होंगा जिसे नगर निकाय के महासमर में योद्धा बनने के काबिल समझा जाएगा।
ब्यूरो रिपोर्ट, द इंडियन ओपिनियन