शासन ने केंद्र सरकार को पत्र भेजकर कह दिया है कि जुलाई में अगस्त और सितंबर के लिए आयातित कोयला खरीदने की दी गई सहमति को फिलहाल निरस्त माना जाए। राज्य सरकार के इस कदम से प्रदेश को 1098 करोड़ रुपये की बचत हुई है। घरेलू कोयले की कीमत जहां 3000 रुपये मीट्रिक टन है वहीं आयातित कोयला 20000 रुपये मीट्रिक टन में खरीदा जाना था।
उधर, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद और आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन आयातित कोयले की खरीद से उपभोक्ताओं पर दरों का बोझ बढ़ने की बात कहते हुए इसका विरोध कर रहे थे। इस बीच कोयले की उपलब्धता बढ़ने और बिजलीघरों में कोयले की मांग में कमी होने की वजह से विद्युत मंत्रालय ने आयातित कोयले की खरीद की अनिवार्यता संबंधी आदेश को वापस ले लिया।
केंद्रीय विद्युत मंत्रालय की ओर से आयातित कोयले की खरीद को बाध्यकारी किए जाने के बाद पिछले महीने राज्य सरकार की ओर से अगस्त और सितंबर में बिजलीघरों के लिए 5.46 लाख मीट्रिक टन आयातित कोयले की खरीद को मंजूरी देते हुए कोयला मंत्रालय को सहमति भेज दी गई थी।
राज्य सरकार के इस फैसले से काफी राहत मिली है। अगर आयातित कोयले की खरीद की जाती तो दो महीने में 1098 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय भार पड़ने की आशंका थी। हालांकि राज्य सरकार की ओर से इस अतिरिक्त व्यय भार का वहन करने का आश्वासन दिया गया था। केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के दबाव के कारण राज्य सरकार ने दो महीने के लिए आयातित कोयले की खरीद की सहमति कोयला मंत्रालय को भेज दी थी इसलिए अब इसे निरस्त करने का पत्र भेजा गया है।
ब्यूरो रिपोर्ट ‘द इंडियन ओपिनियन’