अवध के संस्कार लखनऊ की तहजीब, मुश्किल दौर में बने एक दूसरे का संबल!

किसी भी शहर की पहचान न तो वहाँ कंक्रीट से बनी आलीशान इमारतों के कारण होती है और न ही चमचमाती सड़कों पर दौड़तीं लंबी-लंबी गाडिय़ों से । शहर की पहचान होती है वहां के लोगों की संवेदनशीलता से । जो घर-परिवार के दायित्वों का निर्वहन करते हैं। ईश्वर की उपासना करते हैं। वे मानते हैं कि जो उनके पास है, वह सब ईश्वर का दिया है। मानवता की सेवा कर वे उसे ईश्वर को अर्पित करने में भरोसा रखते हैं। इसलिए किसी को मदद की जरूरत पड़ती है तो दौड़ पड़ते हैं।

कुछ ऐसा ही है मेरा शहर लखनऊ। बहुत से लोग हैं जो सुबह आरती करके निकलते हैं -तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा। ऐसे बहुत से लोग लखनऊ की हर कॉलोनी में हैं, जो जरूरतमंदों को इस महामारी काल में दवा-आक्सीजन, राशन और अन्य वस्तुएं उपलब्ध करा रहे हैं।

सोशल मीडिया पर ऐसे संदेशोँ की भरमार रहती है जो कोविड संक्रमित लोगों के यहाँ खाना,राशन और दवाइयां मुफ्त अथवा उचित मूल्य पर पहुचाने के लिए तत्पर हैं । ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो घर से तो नहीं निकल रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन,दवाओं,और अस्पतालों में बेड की उपलब्धता पर नज़र बनाये हुए हैं और किसी ज़रूरतमंद का संदेशा आते ही उसे प्रामाणिक सूचना उपलब्ध करा उसकी हर सम्भव मदद करने की कोशिश करते हैं।

लॉक डाउन में पिछले वर्ष भी हमने हज़ारों लोगों को श्रमिकों, प्रवासी मज़दूरों को भोजन और अन्य सामग्री उपलब्ध कराते हुए देखा था । इन लोगों का भी घर परिवार है। इनको भी कॅरोना से संक्रमित होने का भय सताता है पर इनके लिए दूसरों का दर्द अपनी व्यक्तिगत तकलीफ से कहीं ज्यादा बड़ा होता है। शायद ऐसे ही लोगों के कारण आज भी शब्दकोष में इन्सानियत शब्द शामिल है । हमें नाज़ है अपने शहर के इन बेनाम रत्नों पर ।

बेहद मुश्किल समय है। हर इंसान है सहमा सहमा, बहुत सारी शंकाओं और दुराषाओं से घिरा हुआ । लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि अंधेरा कितना भी घना क्यूँ न हो प्रकाश की एक किरण भी उसके अस्तित्व के लिए चुनौती होती है । सोशल मीडिया पर चन्द पंक्तियाँ पढ़ी थीं । अज्ञात रचयिता को आभार ज्ञापित करते हुए उद्धृत कर रहा हूँ-

लखनऊ चाँद है, कोई टूटता तारा नहीं है,
लखनऊ खामोश है बस,लखनऊ हारा नहीं है…!!

बहुत शान्त हैं गलियां अमीनाबाद की,
चहल कदमी भी कम है चौक में,

हां ये सच है –
लखनऊ खामोश है, मगर लखनऊ हारा नहीं है….!!

सच है कि आज ऐश करता नहीं ऐशबाग,
आलम बाग का आलम भी बहुत गमगीन है,

लखनऊ ये कर रहा है अपनी हिफाजत के लिये,
लखनऊ आज चुप है कल ये फिर तराने गायेगा..!!

लखनऊ आज खामोश है, मगर
कल ये फिर मुस्कुरायेगा..

हम सब एकजुटता , धैर्य और हौसले से एक बार फिर इस महामारी की दूसरी लहर पर काबू पाएँगे और कल ये शहर फिर मुस्कुराएगा । लखनऊ वासी यूँ ही तो नहीं कहते हैं-

लखनऊ हम पर फिदा और हम फिदा ए लखनऊ,
क्या है ताक़त आसमां की ,हमसे छुड़ाए लखनऊ

आलेख-विकास चन्द्र अग्रवाल

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