*दलितों से ही नहीं सर्व समाज से था डॉ आंबेडकर का प्रेम… इन दो ब्राह्मणों से मिला उन्हें सर्वाधिक सहयोग और स्नेह. जानिए पूरी सच्चाई..*

बाबा साहब भीमराव रामजी अंबेडकर वास्तव में भारत वर्ष के उन महापुरुषों में से हैं जिन्होंने भारतीय समाज के उत्थान के लिए उल्लेखनीय कार्य किया… लेकिन पिछले कुछ दशकों से बाबा साहब अंबेडकर जो कि सर्व समाज के महापुरुष पुरे देश के प्रिय नेता थे उन्हें राजनीतिक लाभ के लिए जाति की जंजीरों में जकड़ कर जाति वर्ग का नेता बनाने की साजिश की जा रही है ..इसीलिए बाबा साहब अंबेडकर से जुड़े बहुत से तथ्यों ..बहुत सी सच्चाइयों को छिपाने का भी प्रयास किया जा रहा है .
कुछ लोग अंबेडकरवाद के नाम पर गुमराह होकर धर्म की आलोचना करने लगते हैं तो कुछ लोग ब्राह्मणों को लेकर गलतफहमी बना लेते हैं लेकिन वह यह जानने का प्रयास नहीं करते डॉक्टर भीमराव अंबेडकर स्वयं शिक्षित ब्राह्मणों का बहुत सम्मान करते थे और उनके जीवन में शुरू से अंत तक ब्राह्मणों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान था ..आज बहुत से लोग बड़े शौक से अपने नाम के आगे अंबेडकर शब्द जोड़ रहे हैं.. इसमें कोई बुराई भी नहीं है लेकिन अंबेडकर शब्द या डॉक्टर अंबेडकर की पहचान से खुद को जोड़ने के पहले उनके उदार व्यक्तित्व उनकी महान विचारधारा को समझना होगा ..
डॉ आंबेडकर हर उस व्यक्ति के मददगार थे जो किन्ही भी परिस्थितियों की वजह से कमजोर है गरीब है पिछड़ा है वह किसी जाति के प्रतिनिधि नहीं थे वह सर्व समाज के दुखी मनुष्यों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना चाहते थे ..
डॉ आंबेडकर के शुरुआती छात्र जीवन से ही उन के सबसे बड़े सहयोगी बने उनके प्रिय गुरु पंडित महादेव अंबेडकर पंडित महादेव अंबेडकर. डॉ आंबेडकर के सबसे प्रिय और निकट शिक्षक थे विद्वान ब्राह्मण और संवेदनशील गुरु के रुप में उन्होंने डॉक्टर अंबेडकर को श्रेष्ठ ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान किया वह बाल्यावस्था में डॉक्टर अंबेडकर को अपने साथ बैठकर भोजन कराते थे और खुद अपने घर से उनके लिए भोजन लेकर आते थे विद्यालय में डॉक्टर अंबेडकर खुद को किसी रूप में उपेक्षित न समझें अशिक्षित समाज में फैले जातिवाद से भीमराव रामजी सकपाल का मनोबल न टूटे इसलिए उनके गुरु पंडित महादेव अंबेडकर ने उन्हें अपना पुत्र स्वरूप अधिकार और स्नेह दिया और उन्हें अपना उपनाम प्रदान किया डॉ आंबेडकर स्वयं भी अपने गुरु पंडित महादेव अंबेडकर से बहुत स्नेह और सम्मान रखते थे और उन्होंने अपने गुरु पंडित महादेव अंबेडकर का उपनाम जो कि ब्राह्मण समाज का टाइटल माना जाता है उसे अपने नाम से जोड़कर अपना पूरा नाम भीमराव रामजी अंबेडकर रखा और जीवन भर डॉ भीमराव अंबेडकर भारत से लेकर विदेशों तक हर जगह अपना यही पूरा नाम लिखते रहे अपने नाम के आगे ब्राह्मण टाइटल लगाते रहे और आज भी उनके नाम के आगे उनके गुरु पंडित महादेव अंबेडकर का ही उपनाम यानी टाइटल लगाया जाता है..

हाल ही में यूपी सरकार के द्वारा उनका पूरा नाम लिखने के शासनादेश जारी करने पर भी कुछ लोगों ने समाज में भ्रम फैलाने और द्वेष फैलाने का प्रयास किया जबकि सच्चाई और समस्त प्रमाण यह स्पष्ट करते हैं कि स्वयं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अनेकों स्थानों पर अपना पूरा नाम ही लिखते थे जिसमें उनके पिता का नाम और उनके ब्राह्मण गुरु का उपनाम भी शामिल था..
डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर के शुरुआती छात्र जीवन से ही उनके ब्राह्मण गुरु पंडित महादेव अंबेडकर का उनके जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा और उनकी शिक्षाओं और मार्गदर्शन से प्रभावित होकर डॉक्टर अंबेडकर ऊंचे मनोबल के स्वामी बने और भारत ही नहीं विश्व स्तर पर उन्होंने सम्मान हासिल किया और समाज के दुखी कमजोर व्यक्तियों के लिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लगाया.. और जब तक डॉक्टर अंबेडकर जीवित रहे उन्होंने हमेशा अपने गुरु पंडित महादेव अंबेडकर को सम्मान देते हुए अपने नाम के आगे अंबेडकर टाइटल लगाते रहे…

पंडित महादेव अंबेडकर के के बाद उनके जीवन में जिस दूसरे ब्राह्मण व्यक्तित्व का सर्वाधिक योगदान रहा वह थी उनकी दूसरी पत्नी..
1935 में डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर की पहली पत्नी माता रमाबाई का बीमारी के चलते निधन हो गया था जिसके बाद डॉक्टर अंबेडकर अकेले पड़ गए और डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की वजह से उनका स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा ऐसे में उन्हें एक संवेदनशील निष्ठावान सहयोगी की आवश्यकता भी थी महाराष्ट्र के कुलीन ब्राह्मण परिवार की बेटी डॉक्टर सविता से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का संपर्क उनके इलाज के संबंध में हुआ डायबिटीज की वजह से जब उनकी हालत बिगड़ने लगी तो डॉक्टर सविता ने बड़ी गंभीरता से उनका इलाज किया जिसकी वजह से उन्हें आराम मिला और डॉक्टर सविता के प्रति वह कृतज्ञ और सम्मानित भाव रखने लगे डॉ आंबेडकर विनम्र व्यवहार और आग्रह से डॉक्टर सविता उनके साथ विवाह करने के लिए राजी हो गई सूत्रों के मुताबिक 15 मई 1948 को डॉक्टर अंबेडकर ने ब्राह्मण समाज की डॉक्टर सविता के साथ दूसरा विवाह किया कुछ दलित नेताओं और कुछ ब्राह्मण नेताओं ने इस बात के लिए उनका विरोध भी किया डॉक्टर सविता और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर दोनों को आलोचना भी सहनी पड़ी लेकिन दोनों ने आजीवन एक दूसरे का साथ निभाने का व्रत ले लिया था.. जब तक डॉक्टर अंबेडकर जीवित रहे तब तक पूरी निष्ठा से डॉक्टर सविता ने उनकी सेवा की. डॉक्टर आंबेडकर अपने निकट सहयोगीयों से अपनी दूसरी पत्नी डॉक्टर सविता यह सेवा भाव और सद्व्यवहार की प्रशंसा करते नहीं थकते थे.. डॉ अंबेडकर अपने शिष्यों को यह समझाते थे की व्यवस्था की कमियों के खिलाफ संघर्ष करना है व्यक्तियों या जातियों के खिलाफ नहीं किसी भी समाज या वर्ग से हमारा विरोध नहीं है गलत नियमों से हमारा विरोध है गलत परंपराओं से हमारा विरोध है ..बड़ी संख्या में तत्कालीन समाज के कथित उच्च वर्ग से ताल्लुक रखने वाले शिक्षित लोग डॉ आंबेडकर के निकट मित्र और सहयोगी थे डॉ अंबेडकर की दूसरी पत्नी ब्राह्मण समाज से होते हुए भी आजीवन पूर्ण निष्ठा से पत्नी धर्म का पालन करते हुए उनकी सेवा करती रही उन्होंने स्वयं भी डॉ आंबेडकर के साथ उनके कहने पर बौद्ध विचारधारा को स्वीकार किया.. और उन्हें सविता माई के नाम से प्रसिद्धि मिली.
डॉ आंबेडकर से जुड़ी ऐसी कई सच्चाईयां हैं जो जानबूझकर छिपा दी गई दबा दी गई क्योंकि बहुत से लोग और राजनीतिक दल नहीं चाहते कि डॉक्टर अंबेडकर का सर्व समाज को जोड़ने वाला व्यक्तित्व खुलकर सामने आए बहुत से लोग उन्हें केवल किसी जाति वर्ग का ही उद्धार बनाए रखना चाहते हैं और राजनीतिक लाभ लेने के लिए अंबेडकर की विचारधारा को हिंदू विरोधी या ब्राह्मण विरोधी विचारधारा के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है..
डॉ अंबेडकर किसी के विरोधी नहीं थे उन्होंने विरोध किया तो सिर्फ भेदभाव और अत्याचार का …विरोध किया तो गलत परंपराओं और गलत नियमों का और इसीलिए उन्होंने जीवन के अंतिम समय में भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों से ही उपजे शांति अहिंसा और समानता पर आधारित बौद्ध विचारधारा के प्रति अपनी आस्था को व्यक्त किया.