माया अखिलेश के बाद योगी को भी मीडिया मैनेजमेंट के लिए नवनीत सहगल का सहारा!

तो अब उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी यह मान लिया है की उत्तर प्रदेश की आईएएस लॉबी में मीडिया को सरकार के हितों के लिए सरकार के हिसाब से नियंत्रित रखने में या फिर मैनेज करने में एक ही अफसर माहिर है और उस अफसर का नाम है नवनीत सहगल !

जी हां, योगी आदित्यनाथ यूपी के पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं जो अपनी सरकार पर मीडिया के सवालों की बौछार से बचने के लिए नवनीत सहगल की काबिलियत का इस्तेमाल करना चाहते हैं इसके पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भी कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर मीडिया को मनमाफिक रास्ते पर लाने के लिए सूचना विभाग का प्रमुख सचिव बनाकर नवनीत सहगल को जिम्मेदारी सौंपी थी और नवनीत सहगल ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख पत्रकारों को हर तरह से मैनेज करके माया सरकार को यह दिखाने की कोशिश की थी कि अब उन्होंने मीडिया मैनेज कर दिया है चुनाव में नुकसान नहीं होगा,  लेकिन 2012 के चुनाव में बसपा का भारी नुकसान हुआ सत्ता भी गई और अखिलेश यादव नए मुख्यमंत्री बनकर सिंहासन पर बैठे।

फिर अखिलेश यादव ने भी कई महीनों तक नवनीत सहगल की तरफ ठीक से देखा नहीं उन्हें मायावती का आदमी समझा लेकिन कई महीनों की सरकार चलाने के बाद जब अखिलेश यादव भी मीडिया के हमलों से घबराने लगे तो उनका भी पुराना संकल्प डगमगा गया और कुछ पत्रकारों और अफसरों की सलाह पर उन्होंने नवनीत सहगल पर ही भरोसा करना बेहतर समझा और नवनीत सहगल को अपना खासम खास प्रमुख सचिव सूचना बनाया और भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी।

नवनीत सहगल ने सूचना विभाग के करोड़ों के बजट का इस्तेमाल अखिलेश यादव के हित में मीडिया को मैनेज करने के लिए किया, चैनलों और अखबारों को खूब विज्ञापन दिए गए लेकिन डिजिटल मीडिया के इस दौर में बड़ी खबरों को छिपाना आसान नहीं है किसी नेता और सरकार के लिए पूरी मीडिया की दिशा मोड़ देना बच्चों का खेल नहीं है और हुआ वही जो जनता ने चाहा 2017 में अखिलेश यादव की भी उत्तर प्रदेश की सत्ता से विदाई हो गई नवनीत सहगल का जादू नहीं चल पाया ना तो मीडिया मैनेज हो पाया और ना ही मतदाता।

अंततः योगी जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए अब योगी जी की सरकार को भी 3 साल बीत चुके हैं आए दिन हत्या लूट बलात्कार और भ्रष्टाचार की खबरों से पहले तो मुख्यमंत्री दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर निपट रहे थे लेकिन पिछले कुछ दिनों में आपराधिक घटनाओं में वृद्धि होने के बाद लगातार मीडिया और विपक्ष के हमलों से ऐसा लगा कि योगी जी भी घबराहट में संतुलन खो रहे हैं और आखिरकार उन्होंने अपने भरोसेमंद अवनीश अवस्थी को संवेदनशील सूचना विभाग से बाहर का रास्ता दिखाया और मीडिया के तेज दौड़ते घोड़ों पर लगाम लगाने के लिए नवनीत सहगल को तीसरी बार उत्तर प्रदेश में सूचना विभाग का मुखिया बनाने का फैसला कर लिया।

योगी जी यह भूल गए कि बसपा और सपा की सरकारों में भी यह फैसला हुआ था और दोनों ने भारी अंतर से चुनाव हारा था अब नवनीत सहगल की योग्यता का फायदा लेने के बावजूद सपा और बसपा विपक्ष की शोभा बढ़ा रहे हैं।

योगी जी का फैसला कितना फायदा या नुकसान पहुंचाएगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन इस फैसले के बाद न सिर्फ उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी बल्कि आम जनता में भी यही संदेश गया है कि सरकार इस समय भारी दबाव में है और अब डिफेंसिव मोड में आ गई है।
करोना में भ्रष्टाचार के आरोपों  के बाद हाथरस और बलरामपुर की घटना विपक्ष और मीडिया के तीखे सवालों का जवाब देने के लिए सरकार और पार्टी के प्रवक्ता उतने कारगर नहीं साबित हो रहे इसीलिए एक बार फिर उसी चर्चित अधिकारी पर दांव आजमाया गया है जिसे पहले भी उन नेताओं ने उन सरकारों ने आजमाया था जिन्हें मुख्यमंत्री योगी जनता के लिए ठीक नहीं समझते।

अब यह देखने वाली बात होगी की योगी सरकार के हित में नवनीत सहगल मीडिया के भाइयों को मैनेज करने के लिए कौन सा चारा लगाते हैं यानी किस अंदाज में प्रदेश की सूचनाओं समाचारों और पत्रकारों का प्रबंधन करते हैं!

द इंडियन ओपिनियन के लिए दीपक मिश्रा की रिपोर्ट।

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